Friday, December 27, 2024
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आज भी पुराने तरीके से खेती करते हैं ये किसान, जिंदा रखे हैं अपनी विरासत, बैल हल करते हैं उपयोग


कोरबा. एक समय ऐसा भी था जब हाथ से बने लकड़ी के कृषि यंत्र इस्तेमाल होते थे. इनकी बिक्री के लिए बड़े-बड़े मेलों का आयोजन हुआ करता था. लेकिन अब आधुनिकता की चकाचौंध में परंपरागत कृषि उपकरण गायब होते जा रहे हैं. मगर कोरबा के एक गांव के किसान पुरानी परंपरागत तरीके से खेती कर विरासत को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं.

90 के दशक में खेती करने के लिए परंपरागत उपकरणों का इस्तेमाल होता था. जैसे बैल हल लकड़ी से बना कॉपर, बेलन, धान काटने के लिए हाशिया, धान की मिसाई भी बैलों द्वारा होती थी. जिसे ‘दौरी’ करना कहा जाता था. आधुनिकीकरण की चकाचौंध में ये तमाम परंपरागत कृषि उपकरण कहीं गुम हो गए. मगर गोपालपुर गांव में विरासत की झलक जरूर देखने को मिलती है.

कुछ किसान आज भी जिंदा रखे हैं विरासत
मशीनीकरण की क्रांति इस कदर हावी हुई है कि अब फसल खलिहान तक भी नहीं पहुंचते. थ्रेसर मशीन से खेतों में ही धान की मिसाई कर ली जाती है. इससे समय की भी बचत होती है और मजदूरी भी कम लगती है. जिले के अधिकांश किसानों ने आधुनिकीकरण को अपना लिया है. हालात ये है कि आज के बच्चों को पुराने कृषि यंत्रों का नाम भी नहीं पता. मगर गोपालपुर, चैतमा क्षेत्र के किसान पारंपरिक तरीके से खेती कर रहे हैं ताकि विरासत में मिले कृषि यंत्रों को जीवित रख सके. खेती में मशीनी युग भारी पड़ने के कारण इन औजारों को अब लोग शो पीस के रूप में घरों में सजाने लगे हैं. अब बैल पालने में भी किसी की रुचि नहीं है. खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर का इस्तेमाल होता है.

FIRST PUBLISHED : December 26, 2024, 16:34 IST


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