Thursday, September 19, 2024
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गबरघिंचोर – मंडली

भिखारी ठाकुर की कृति – गबरघिंचोर

निर्विवाद रूप से भिखारी ठाकुर का सबसे प्रसिद्ध नाटक  ‘बिदेसिया’ है। इसे ‘बहरा बहार’ कहा जाता था। बहार तब नाटक का पर्यावाची हुआ करता था। बिदेसिया के बिदेसी कलकत्ता जाकर अपनी पत्नी को भूल जाते हैं। उन्हें खोजने गये बटोही उन्हें समझा बुझा कर घर लाते हैं। पीछे से बिदेसी की कलकतिया ब्याहता भी उनके घर आ जाती हैं।

‘बिदेसिया’ पलायन की समस्या का एक पहलू बताता है। ‘गबरघिचोर’ में दूसरा पहलू दिखता है जो बेहद जटिल है। नाटक के नायक गलीच अपनी ब्याहता को घर छोड़कर शहर में कमाने चले जाते हैं। वह वर्षों तक न उसकी कोई खोज-खबर लेते हैं, न चिठ्ठी-पत्री या संदेश भेजते हैं और न ही घर खर्च के लिए कोई मनीऑर्डर। पन्द्रह वर्ष बाद गलीच घर लौटकर आते हैं, वो भी तब जब उन्हें किसी से यह पता चलता है कि उनको एक बेटा हुआ है। उनके घर आने का उद्देश्य भी यही होता है कि वह अपने बेटे को साथ लेकर वापस लौट जाएँगे।

गलीच के घर आने पर उनकी पत्नी बहुत खुश होती हैं और उनके पैर पखारती हैं। इस सत्कार से अप्रभावित गलीच अपने बेटे को लेकर वापस जाने की बात ही कहते हैं। गलीच बो अर्थात गलीच की पत्नी उनसे दुबारा बसे घर को नहीं उजाड़ने की हजारों मिन्नतें करती हैं। तभी वहाँ गलीच बो का बेटा गबरघिंचोर आता है। माँ उसे बाबूजी के पैर छूने को कहती हैं। गलीच बेटे को गले लगाते हैं और बेटे को अपने साथ ले जाने  लगते हैं।

गलीच बो गलीच से ऐसा नहीं करने को कहती हैं। वह उन्हें बेटे के अपने जीवन का आधार होने का हवाला देती हैं लेकिन गलीच कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। वह बेटे को अपने साथ लेकर जाने वाले ही होते हैं कि नाटक के तीसरे चरित्र गड़बड़िया का प्रवेश होता है। गड़बड़िया का यह दावा स्थिति को और जटिल बना देता है कि गबरघिंचोर उनका बेटा है।

गड़बड़िया और गलीच के बीच बेटे की छीना-झपटी शुरू हो जाती है। इस क्रम में गलीच और गड़बड़िया के बीच मल्लयुद्ध भी होता है। ताल ठोंककर दोनों एक दूसरे को एक-एक बार पटक देते हैं लेकिन कोई हल नहीं निकलता। गलीच बो का पक्ष गबरघिंचोर पर एक तरह से गौण हो जाता है।

झगड़े का स्वत: संज्ञान लेते हुए एक पंच आ धमकते हैं – बाबा। बाबा गड़बड़िया को हड़काते हैं कि पत्नी गलीच की तो बेटा तु्म्हारा कैसे हुआ रे, मारो गाड़कर और बाजन बजवा कर बियाह तो गलीच ने किया है। गड़बड़िया बताता है कि एक दिन लड़के की माँ रास्ते से आ रही थी। वह उससे मिली और उनसे गलती हो गयी और … बाबा बात समझ नहीं पाते और गड़बड़िया से अपना पक्ष साफ करने को कहते हैं।

गड़बड़िया अपना पक्ष कुछ यूँ रखता है, “हमरा रास्ता में एगो डोरा मिलल। हम ओमे आपन रोपेया-पइसा धइनी। डोरा वाला आपन डोरा खोजत आ गइल तs ओकरा के डोरा देवे से पहिले हम आपन पइसा निकालेब कि ना, ए बाबा?” रास्ते में मिले पर्स में मैंने अपने रूपये रखे। पर्स वाला अपना पर्स खोजते हुए आ गया तो उसे उसका पर्स लौटाने से पहले मैं अपने पैसे निकालूँगा ना, बाबा?

बाबा गड़बड़िया के तर्क से प्रभावित होकर पंचायत करते हैं कि बेटा गड़बड़िया के पास ही रहेगा। बेटा गबरघिंचोर इस व्यवस्था से खुश नहीं है लेकिन बाबा उसे गड़बड़िया को दे देते हैं। एक बार फिर गड़बड़िया और गलीच के बीच झगड़ा होने लगता है। झगड़ा शांत करके बाबा पक्ष रखने का एक मौका गलीच को देते हैं।

गलीच का तर्क है, “हम कोहरा रोपनी। ओकर लत्तर पसर पसरके पड़ेसी के छान्ह पर चल गइल आ ओही जा कोहरा फर गइल। कोहरा पड़ोसी के ना नु होई – जेकर थान ओकर फल।” मैंने कोहरे का पौधा लगाया। उसकी लत्ती पसरकर पड़ोसी के छप्पड़ पर चली गयी तो वहाँ फला कोहरा पड़ोसी का नहीं हो जाएगा ना – जिसका पेड़ उसका फल।

गलीच का तर्क सुनकर बाबा अपना निर्णय पलट देते हैं और बेटा को गलीच को दे देते हैं। गबरघिंचोर अब भी खुश नहीं है लेकिन उसका अनसुना कर दिया जाता है। एक बार फिर गलीच व गड़बड़िया झगड़ने लगते हैं। लड़के की माँ पंचायत पर असंतोष जताते हुए बाबा को बुरा-भला कहने लगती है और बेटे पर अपना अधिकार बताती है। वह गलीच को इस बात के लिए धिक्कारती है कि पन्द्रह वर्ष से उससे दूर रहकर उसकी खोज-खबर नहीं लेने वाले पति को चौदह वर्ष के उसके बेटे पर अपना दावा करते हुए लोकलाज में डूब मरना चाहिए। बाबा गबरघिंचोर की माँ को भी एक मौका देते हैं।

गलीच बो कहती हैं, “पाँच सेर के दूध हमार रहे, हम अउँटनी आ पझइनी। दही के करना एक धार जोरन देवे वाला के कइसे हो जाई, ए बाबा।” मेरे पास पाँच सेर दूध था। इसे मैंने उबाला और पकाया। दही जमाने के लिए थोड़ा सा जोरन वाला देने वाला मटके की दही का मालिक कैसे हो जाएगा, ए बाबा?

बाबा गलीच बो के तर्क से भी प्रभावित हुए। इस बीच बाबा को गड़बडिया की ओर से 200 और गलीच की ओर से 500 रूपये का प्रलोभन मिलता है। बाबा का मन इन प्रलोभनों पर डोलने लगता है। गलीच बो के पास पैसे नहीं थे। उसने पैसे देने में असमर्थता दिखायी लेकिन उसने बाबा की सेवा-टहल करने का वादा करते हुए निवेदन किया कि बाबा बेटा उसे दे दें।

प्रलोभनों से परे बाबा के अंदर का पंच-परमेश्वर जाग गया। वह तीनों पक्षों के तर्कों को तौलने लगे लेकिन किसी एक के पक्ष में निर्णय नहीं दे सके। अंत में उन्होंने जल्लाद बुलाकर लड़के के तीन टुकड़े करके तीनों पक्षों को देने को कहा। इसके बाद गलीच व गड़बड़िया बेटे के तीन बराबर-बराबर टुकड़े करने के लिए लड़ने लगे। गलीच और गड़बड़िया की लड़ाई के बीच गबरघिंचोर की माँ बेटे के तीन टुकड़ों में काटे जाने पर विलाप करने लगी। बेटे को बचाने की गरज से उसने बाबा से गुहार लगाया, “ए बाबा, एह दुनु जने में से केहु के लड़िका दें दीं बाकिर हमरा बबुआ के मत काटीं।” दोनों में से किसी को दीजिए लेकिन मेरे बबुआ को मत काटिए।

गलीच और गड़बड़िया को बेटे के बराबर-बराबर टुकड़े करने पर लड़ने झगड़ने के लिए धिक्कारते हुए बाबा का न्याय होता है …

जे बेटा माता संग जाई रामा हो रामा …

अब ई गड़हडिया गलीच न जाए रामा हो रामा …

बोलिए सियाबर रामचन्द्र की जय

बोलिए सकल समाज की जय

बोलिए भिखारी ठाकुर की जय


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