- चीन के वुहान में कोरोनावायरस से तबाही, 1500 लोगों की मौत
- भारतीय छात्रों को बचाने के लिए भेजे गए थे इंडिया के दो विमान
‘चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. चमकीली सड़कों पर मुर्दनी छायी थी. एयरपोर्ट को हवाई जहाजों के साथ बंद कर दिया गया था. वहां के दृश्य ऐसे थे जैसे यह कयामत का दिन हो.’ कुछ ऐसा वर्णन है चीन के शहर वुहान का, जहां कोरोना वायरस तबाही मचा रहा है. यह वर्णन करने वाले एयर इंडिया के शीर्ष पायलट अमिताभ सिंह हैं, जिन पर वुहान से भारतीयों को बचाकर लाने का जिम्मा था.
एयर इंडिया के इस शीर्ष पायलट ने बताया कि जिस क्षण उनके हवाई जहाज ने भारतीयों को चीनी शहर वुहान से बचाने के लिए उड़ान भरी, उस समय वहां का माहौल कैसा था. वुहान ही इस घातक वायरस के प्रकोप का केंद्र है जहां कोरोना वायरस का मामला सामने आया और अब तक यह करीब 1500 लोगों की जान ले चुका है और 65000 लोग इसकी चपेट में हैं.
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वहां शहर को बंद कर दिया गया था
इस महीने की शुरुआत में एयर इंडिया के बोइंग 747 विमान ने चीन के वुहान से भारतीयों को लाने के लिए दो आपातकालीन उड़ानें भरीं. इन भारतीयों में ज्यादातर छात्र हैं. वुहान में खतरनाक कोरोना वायरस फैलने के बाद वहां पूरे शहर को बंद कर दिया गया था, ताकि वायरस फैलने से रोका जा सके. इसलिए भारतीयों को वहां से निकालने का फैसला किया गया और इसके लिए एयर इंडिया के दो विमान भेजे गए थे.
एयर इंडिया का यह विमान पहली उड़ान में 324 लोगों को और अगले दिन दूसरी उड़ान में 323 लोगों को भारत लाया, जिसमें सात लोग मालदीव के थे.
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चालक दल के सामने चुनौतियां?
एयर इंडिया के सीनियर पायलट और ऑपरेशन डायरेक्टर कैप्टन अमिताभ सिंह को इस पूरे ऑपरेशन का जिम्मा सौंपा गया था, उन्होंने ही इसकी योजना बनाई और इस ऑपरेशन को संपन्न किया. इस अभियान में वे अपने डबल डेकर विमान में बतौर एक्जीक्यूटिव कमांडर तैनात भी थे.
कैप्टन अमिताभ सिंह ने इंडिया टुडे से बात की और बताया कि उन्होंने अभियान की योजना कैसे बनाई और चालक दल के सामने क्या चुनौतियां थीं?
वुहान जाने से ठीक एक दिन पहले एयर इंडिया को बताया गया कि वहां फंसे भारतीयों को बचाने के लिए उड़ान भरनी है. आपातकालीन उड़ान की तैयारी की गई. अमिताभ सिंह बताते हैं, ‘चूंकि एयर इंडिया हमेशा इस तरह के ऑपरेशन में शामिल रही है इसलिए सौभाग्य से हमारे पास एक टीम है जो हमेशा तैयार रहती है. हमें बस टीम को सूचित करना था कि इस ऑपरेशन पर चलना है.
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उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती चालक दल के सदस्यों और कर्मचारियों के लिए वीजा सुनिश्चित करना था. कुछ क्रू मेंबर्स को 31 जनवरी को सुबह 7 बजे वीजा मिला, जबकि कुछ ही देर बाद दोपहर को उड़ान भरनी थी.
क्या कोरोना वायरस से प्रभावित शहर में जाने को लेकर क्रू मेंबर डरे हुए थे? इसके जवाब में अमिताभ कहते हैं, ‘नहीं, किसी ने न नहीं कहा. किसी में कोई डर नहीं था, लेकिन उनके पास सवाल थे.’ वे सवाल इस तरह थे कि क्या सावधानियां बरतनी हैं कि उन्हें भी कोरोना संक्रमण न हो जाए.
दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के एक टॉप डॉक्टर ने एयर इंडिया की टीम को जानकारी दी कि क्या-क्या सावधानी बरतनी हैं. इसमें सबसे ज्यादा अहम बात यह थी कि अपने को अलग-थलग रखना है. इसके अलावा सूट, मास्क, आई ग्लास आदि के बारे में निर्देश थे.
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वुहान में उड़ान भरना डरावना अनुभव
कैप्टन अमिताभ ने बताया कि वुहान के यात्रियों को इकोनॉमी सेक्शन में, डॉक्टरों और इंजीनियरों को प्रथम श्रेणी के केबिन में, जबकि शेष चालक दल को विमान के ऊपरी डेक में बैठाया गया.
आने वाले यात्रियों के साथ न्यूनतम संपर्क हो, इसलिए टीम ने यह भी निर्णय लिया कि वुहान में उड़ान भरने से पहले सीटों पर पानी की बोतलें और खाने के पैकेट रख दिए जाएं. पूरी टीम तैयारी के साथ 31 जनवरी को यहां से वुहान के लिए रवाना हुई. साथ में एक डॉक्टरों की टीम, इंजीनियर और अधिकारी भी थे.
अमिताभ बताते हैं, ‘वुहान शहर में उड़ान भरना सबसे डरावना अनुभव था. किसी शहर में उड़ान भरते हुए आम तौर पर हवाई जहाज और रेडियो चैटर मौजूद होते हैं, लेकिन वहां कोई नहीं था. शहर में मरघट जैसा सन्नाटा था. जमीन से कुछ सौ फीट ऊपर से हमने देखा तो तेज चमकदार सड़कें तो दिखाई दीं लेकिन उन पर न तो कोई आदमी थे, न ही वाहन नजर आ रहे थे. यहां तक कि वुहान एयरपोर्ट पर घुप्प अंधेरा था और कोई हरकत नहीं हो रही थी. सारे जहाज बंद खड़े थे. यह कयामत के दिन जैसा था.’
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एयरपोर्ट पर ही यात्रियों की जांच
वहां लैंड करने के बाद टीम कई घंटे तक वहां रुकी. भारतीय इंजीनियरों ने विमान को डिपार्चर के लिए तैयार किया, तब तक भारतीयों को एयरपोर्ट तक लाया जा चुका था. एयरपोर्ट पर ही सभी यात्रियों की कई लेवल पर जांच की गई.
वे बताते हैं, ‘भारतीय लोग जब हमारे पास आए तो चेहरे पर डर था. लेकिन जब वे विमान में बैठ गए तो उनके चेहरे पर राहत दिखने लगी.’ वहां से लौटकर हर किसी को कम से कम एक हफ्ते तक अलग-थलग रहना था और किसी से मिलना-जुलना नहीं था. अब यह समय बीत चुका है. कैप्टन अमिताभ से हमने पूछा कि क्या वे फिर वुहान जाना चाहेंगे? उन्होंने कहा, ‘यदि जरूरत पड़ी तो जरूर जाएंगे’.
(पॉलोमी साहा के इनपुट के साथ)