Thursday, March 13, 2025
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जो कोरोनो वायरस इंफेक्शन से निकल आए हैं, क्या वो सही में रिकवर हो चुके हैं? – Coronavirus outbreak survived infection recovered covid 19 patients experience after effects

  • रिकवरी के बाद पोस्ट-वायरल थकान या संक्रमण का असर जारी
  • न्यूयॉर्क में पोस्ट-रिकवरी कोविड क्लिनिक्स बनाने का काम शुरू

SARS-CoV-2 वायरस और इससे फैली COVID-19 महामारी सिर्फ चार-पांच महीने पुराने हैं. बहुत कुछ ऐसा है कि डॉक्टर और वैज्ञानिक वायरस के बारे में नहीं जानते हैं. हालांकि वो इसकी तमाम भौगोलिक क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकृति से जूझ रहे हैं. उन्हें जो पता है, वो ये है कि वायरस के कई स्ट्रेन्स और म्युटेशन्स (उत्परिवर्तन) हैं. इसीलिए दुनियाभर में इसका असर अलग-अलग है, क्योंकि इसकी घातकता हर जगह समान नहीं है. कुछ देशों में स्ट्रेन बहुत मजबूत है, जिसकी वजह से वहां गंभीर लक्षण और ऊंची मृत्यु दर दिखती है. जबकि अन्य देशों में अधिकांश केस बिना लक्षण वाले हैं और और मृत्यु दर भी नीची है.

इतने बड़े पैमाने की महामारी राष्ट्रों को गहराई से प्रभावित करेगी. COVID-19 का जिक्र हर जगह है. सोशल मीडिया और न्यूज बुलेटिन्स में भी. इसका इंसानों पर अहम मनोवैज्ञानिक असर है.

कुछ देश कोरोनो वायरस वक्र को समतल करने में कामयाब रहे, लेकिन अधिकतर अभी भी बढ़ती संक्रमण संख्या को काबू में लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. रिकवरी की दरें हालिया SARS (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) या MERS (मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) महामारियों की तुलना में बहुत बेहतर हैं. लेकिन फैलाव की दर इतनी अधिक है कि सक्रिय केसों का आंकड़ा लगातार ऊंचा बना हुआ है. ये सब बहुत हाल में हुआ है, इसलिए जो मरीज रिकवर हो चुके हैं, उनके आफ्टर-इफेक्ट्स (बीमारी के बाद के प्रभाव) से जुड़े अनुभवों के बारे में बहुत कम शोध या लिखे हुए पेपर्स मौजूद हैं.

पोस्ट-वायरल थकान

अधिकतर वायरल संक्रमण में आमतौर पर बाद में पोस्ट-वायरल थकान का सामना होता है. इसमें कमजोरी और सुस्ती कुछ और समय तक बनी रहती हैं. यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से सच है, जिन्होंने संक्रमण के दौरान अधिक गंभीर या मध्य गंभीर लक्षणों का अनुभव किया है. दुनियाभर के डॉक्टरों और थकान विशेषज्ञों ने (खास तौर पर ब्रिटेन और अमेरिका से) पहले से ही COVID -19 से रिकवर मरीजों में थकान और मांसपेशियों में दर्द देखना शुरू कर दिया है. यह केवल कुछ ही प्रतिशत मरीजों में होता है. यह देखते हुए कि दुनिया में 50 लाख से अधिक केस सामने आ चुके हैं, ऐसे में उन मरीजों की खासी संख्या होगी, जो वायरस के लिए टेस्ट में निगेटिव आने के बाद भी थकान या मांसपेशियों में दर्द जैसी शिकायतों से जूझते दिखेंगे.

महामारियों में निगेटिव टेस्ट सिर्फ इस बात का संकेत देता है कि एक व्यक्ति के शरीर में वायरस की घातकता या ताकत कम हो गई है. रिकवरी पीरियड को कुल मिलाकर ऐसा वक्त कहा जा सकता है, जो मरीज के निगेटिव टेस्ट आने के बाद से शुरू होता है और फिटनेस दोबारा हासिल करने तक रहता है.

हमारे पास पोस्ट-वायरल थकान को लेकर अतीत से सीखने को कुछ मौजूद है. 2009 में हांगकांग विश्वविद्यालय के डॉक्टरों के एक ग्रुप ने SARS सरवाइवर्स में मानसिक दिक्कतों और कभी दूर न होने वाली थकान का अध्ययन किया. COVID -19 के उलट SARS तेजी से नहीं फैला था. इसलिए सैंपल साइज सिर्फ 369 के आसपास था. दुनियाभर में SARS के कुल संक्रमण सिर्फ 8,098 थे, इसलिए सैंपल साइज कुल संक्रमणों का 4.5% हिस्सा था. प्रतिभागियों में से, 40% ने रिकवरी के बाद एक मनोरोग का अनुभव किया. 40.3% ने कभी न जाने वाली थकान की शिकायत बताई. 27.1% ने क्रोनिक थकान सिंड्रोम के मानदंडों को पूरा किया. सर्वेक्षण में शामिल कई रोगियों में संक्रमित होने के तीन से चार साल बाद भी समस्या थी.

मौजूदा महामारी में अभी इस बारे में निश्चित नहीं हुआ जा सकता कि चीज़ें किस तरह आकार लेती हैं. लेकिन कोरोना केसों की संख्या को देखते हुए, समान नतीजों की उम्मीद करना केवल तर्कसंगत है.

भारत भी इससे अलग नहीं रहेगा. मैक्स हेल्थकेयर के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर और इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनल मेडिसिन के सीनियर डायरेक्टर डॉ. संदीप बुद्धिराजा के मुताबिक 30-40 फीसदी मरीजों में पोस्ट वायरल थकान और सुस्ती होती है. उन्होंने बताया, “इसकी पहचान थकान का अनुभव, कम ऊर्जा और भूख न लगना है. यह स्थिति कुछ दिनों से कुछ हफ्तों तक रहती है. लोगों को सामान्य हेल्दी डाइट लेनी चाहिए. अधिकतर डिस्चार्ज किए गए कोरोना मरीजों को कम से कम एक सप्ताह तक घर पर ही रहने के लिए कहा जाता है.”

क्या यह पोस्ट-वायरल थकान है या वायरल संक्रमण का असर?

ब्रिटेन के लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के एक्सपर्ट, मेडिकल रिसर्चर और महामारी विज्ञानी डॉ. पॉल गार्नर (@PaulGarnerWoof) ने हाल मे अपने कोरोना संक्रमण के अनुभव को लिखा है. डॉ गार्नर ने बताया, “मार्च के मध्य में मुझे COVID-19 संक्रमण हुआ. लगभग सात हफ्ते तक मैं खराब सेहत, ऊंचे इमोशन्स और भारी थकावट से घिरा रहा. हालांकि अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया, लेकिन ये भयभीत करने वाला और लंबा समय था. बीमारी रहती है और बहती है, लेकिन कभी दूर नहीं जाती.”

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उन्होंने चेताने के नोट में कहा, “हेल्थ प्रोफेशनल्स, नियोक्ताओं, साझेदारों और बीमारी वाले लोगों को यह जानना होगा कि यह बीमारी हफ्तों तक बनी रह सकती है और इसकी लंबी पूंछ सिर्फ ‘पोस्ट-वायरल थकान सिंड्रोम’ नहीं है, यह बीमारी है.”

डॉ. पॉल को अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था और उनमें उस वक्त दो हफ्ते से वायरस था. लेकिन उनका कहना है कि वह अभी भी “रिकवर्ड” नहीं हुए हैं. डॉ पॉल ने कहा, “लोग ऐसे कमेंट करते थे कि ये पोस्ट-वायरल थकान है, मैं जानता था कि ये गलत है.

निगेटिव टेस्ट आ जाने के बाद भी इस तरह के लक्षणों का अनुभव करने वाले लोगों की खोज करते हुए डॉ पॉल को एक फेसबुक ग्रुप दिखा. उन्होंने कहा, “मैं एक फेसबुक पेज [COVID -19 Support group (Have it/Had it)] से जुड़ा. इसमें ऐसी कहानियों को ही लोगों ने साझा कर रखा था. कुछ ब्रिटेन और कुछ अमेरिका से भी लोग थे. लोग बीमारी से पीड़ित थे लेकिन अपने लक्षणों को असल मानने को तैयार नहीं थे. उनके घर वाले समझ रहे थे कि ये बेचैनी है, उनके नियोक्ता काम पर लौटने के लिए कह रहे थे. क्योंकि निगेटिव टेस्ट आए दो हफ्ते हो चुके थे. पोस्ट यही सब दर्शाती थीं. जैसे कि ‘मैंने सोचा कि मैं उनकी समय सीमा में बेहतर नहीं होने की वजह से क्रेजी हो रहा था’, एक ‘डॉक्टर ने कहा कि इस बात के शून्य कारण है कि बीमारी लंबी चलती है. और लोगों ने ये भी लिखा उनके परिवार उनके बदलते लक्षणों को नहीं मानते, वो इसे मनोवैज्ञानिक या तनाव ही बताते.”

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डॉ पॉल इस तथ्य पर जोर देते हैं कि कई मरीज कोरोना टेस्ट निगेटिव आने के हफ्तों बाद भी गंभीर से मध्य गंभीर लक्षण रैंडम रूप से अनुभव कर रहे हैं. डॉ. पॉल मानते हैं कि यह जरूरी नहीं कि वो पोस्ट-वायरल थकान ही हो, लेकिन असल में वायरस से संपर्क में रहने का असर हो सकता है, फेसबुक को गहराई से खंगालने पर ये साफ था कि कई रोगी वायरस से उभरने के बाद अपनी कमजोरियों को बड़े स्तर पर महसूस कर रहे थे.

डॉ. पॉल के मुताबिक मरीजों को ठीक होने में कभी-कभी महीनों भी लग सकते हैं. उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “लक्षण आते हैं और जाते हैं, अजीब और भयावह हैं. थकावट गंभीर, वास्तविक और बीमारी का हिस्सा है.”

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नई दिल्ली स्थित जूनियर डॉक्टर हज़ाएफा रशीद, जिनमें कोरोना बीमारी ट्रेस हुई थी, डिस्चार्ज होने के एक महीने बाद भी दस्त का अनुभव करते हैं. दो बार निगेटिव टेस्ट आने के बाद वो रिकवर हुए हैं. उन्होंने कहा, ”मेरे साथ बिना लक्षण वाले केस जैसा ट्रीट किया जा रहा था. जब मेरा इलाज चल रहा था तो मुझे दस्त की शिकायत हुई. ये समस्या मामूली रूप में आज भी जारी है.”

पोस्ट-वायरल थकान पर हेल्थ एक्सपर्ट्स की क्या है सलाह?

सही तरीका एक समय में एक कदम उठाना है. ठीक होने वाले मरीज जल्द से जल्द अपने पैरों पर लौटने के लिए ललचा सकते हैं. पॉजिटिव दृष्टिकोण को बनाए रखना अच्छा है, लेकिन शरीर और मन की सीमाओं का सम्मान करना भी अहम है. खास तौर पर दुनियाभर को आतंकित करने वाले वायरस से संक्रमित होने के बाद.

मेडिकल प्रैक्टीशनर्स के मुताबिक जो लोग नियमित रूप से व्यायाम करते थे, उन्हें रिकवरी पीरियड के दौरान इसमें धीमा रहने की जरूरत है. यदि कोई सामान्य स्थिति में एक दिन में 10 किमी दौड़ता था, तो उसे तेज चाल, 2 किमी दौड़, 5 किमी दौड़ से शुरुआत करनी चाहिए. यानी धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आना चहिए. यही बात काम पर लौटने वालों के लिए भी है. काम पर लौटना चरणबद्ध होना चाहिए, क्योंकि शरीर और मन 100% वर्कआउट के लिए तैयार नहीं हो सकते.

भारतीय परिस्थितियां

भारत सरकार के पास मौजूदा स्थिति में कोरोना मरीजों के फॉलोअप के लिए कोई गाइडलाइंस नहीं हैं. दिल्ली सरकार के संचालित LNJP अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. पर्व मित्तल कहते हैं, ”न्यूयॉर्क ने पोस्ट-रिकवरी कोविड क्लिनिक्स बनाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन हमें अभी ऐसा करना बाकी है.”

डॉ. मित्तल ने कहा, “जहां तक ​​कोविड से रिकवर्ड मरीजों में आफ्टर इफेक्ट्स की बात है, तो इस पर पर्याप्त लिट्रेचर मौजूद नहीं है. हालांकि, अमेरिका में ऐसे अध्ययन किए गए हैं जो बताते हैं कि रिकवर्ड मरीज में संभावित दुष्प्रभावों में स्केलेटल मांसपेशियों की क्षति (शरीर की कमजोरी), फेफड़ों और गुर्दे में बची हुई चोट हो सकते हैं. हालांकि रिकवरी के बाद के नुकसान का स्तर हर केस में बीमारी की गंभीरता पर निर्भर होता है.”

उन्होंने कहा, “रिकवरी के बाद के डैमेज को कम करने के लिए, मैं ग्रेडेड एक्सरसाइज, फिजियोथेरेपी और फेफड़ों के व्यायाम जैसे गहरी सांस लेने, योग और प्राणायाम करने का सुझाव दूंगा.”

डॉ. शशांक जोशी मुंबई के लीलावती अस्पताल से जुड़े हैं. वे मुंबई के लिए कोविड टास्क फोर्स का भी हिस्सा हैं, जहां केस की संख्या तेजी से बढ़ रही है. उनके मुताबिक कोविड से उभरने वाले रोगियों को अपने पोषण, मानसिक स्वास्थ्य का अत्यधिक ध्यान रखने और सभी स्टैंडर्ड सावधानियों के पालन की जरूरत है.

डॉ. जोशी ने कहा, “कोरोना एक नई वायरल महामारी है, जो 4 महीने से कम पुरानी है. आठ घंटे की नींद के अलावा पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और विटामिन लेना उपयोगी है. डिस्चार्ज के बाद मरीजों को 14 और दिनों तक आराम करना चाहिए. साथ ही अपने मेडिकल प्रोफेशनल्स के संपर्क में रहें. हाइपरटेंशन और डायबिटीज जैसी बीमारियां जिन्हें पहले से है, ऐसे लोगों पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है. वे अन्य संक्रमणों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं. खासकर मानसून के पास आने पर स्वच्छता, मास्क और डिस्टेंसिंग का हमेशा ध्यान रखें. ”

भारत में, लोगों को विपत्तियों के बाद बहुत जल्दी पटरी पर लौटने की आदत है. यह बाढ़ हो, भूकंप हो या सुनामी हो, भारतीय अमूमन अपने पैरों पर जल्दी वापस आ जाते हैं. क्या इस बार भी ऐसा होगा या इससे अलग होगा? यह समय बताएगा. लेकिन इस स्थिति का हम संज्ञान लें, इसके लिए यही सही समय है.

नई दिल्ली में मिलन शर्मा, ईशा गुप्ता और मुंबई में साहिल जोशी के इनपुट्स के साथ

(लेखक सिंगापुर स्थित ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस एनालिस्ट हैं)




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