झूमरनाथ मंदिर में भगवान शिव की प्राकृतिक प्रतिमा
– फोटो : LALITPUR
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पुलवारा। ब्लॉक तालबेहट के गांव रजपुरा के पास सिद्ध क्षेत्र झूमरनाथ धाम मंदिर में भगवान शिव पिंडी के स्वरूप में गुफा के अंदर विराजमान हैं। यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र है, जब लोग परेशान होते हैं तो यहां आते हैं, इससे उन्हें सुकून मिलता है। भगवान शिव का प्राकृतिक स्वरूप निरंतर बढ़ रहा है।
ऐसी लोककथा है कि 17 वीं शताब्दी में ग्राम रजपुरा के गांव के लोगों को भगवान शिव ने रात में स्वप्न दिया कि वह ग्राम रजपुरा एवं बठवाहा की पहाड़ी पर स्थित गुफा में शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। जिन लोगों को स्वप्न आया था, अगले दिन उन्होंने अन्य गांव वालों को स्वप्न के बारे में बताया। इसके बाद गांव की लोग एकत्रित होकर उक्त स्थल पर गए एवं गुफा में पहुंचकर देखा तो वहां भगवान शिव पिंडी के रूप में विराजमान थे। भगवान शिव की नित्य पूजा पाठक परिवार के लोग करते हैं। उसी समय से यह स्थान श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। वर्तमान समय में स्थानीय लोगों के अलावा दूरदराज से आकर श्रद्धालु पुण्य अर्जित करते हैं। भगवान शिव के दर्शन करने को पहुंचने के लिए ब्लॉक बार से पारौन होते हुए मार्ग झूमरनाथ तक जाता है।
बांस के डंडे में लोटा बांधकर होता था जलाभिषेक
श्री झूमरनाथ मंदिर में प्राकृतिक पिंडी के स्वरूप में भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं। उनका आकार दिन- प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। करीब चालीस वर्ष पहले तक यहां दूर-दराज के श्रद्धालु दर्शन को आने से कतराते थे। क्योंकि, जंगली क्षेत्र व आसपास बस्ती नहीं होने के कारण लोगों में जंगली जानवरों का डर रहता था। केवल आसपास के लोग ही यहां दर्शन को आते थे। स्थानीय लोगों द्वारा प्रतिदिन भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए लंबे डंडे का सहारा लिया जाता था, क्योंकि गुफा का आकार छोटा होने के कारण श्रद्धालु प्राकृतिक शिव की पिंडी के समीप नहीं पहुंच पाते थे। इसलिए श्रद्धालु लंबे डंडे में लोटा बांधकर जलाभिषेक करते थे। धीरे-धीरे भगवान शिव की छोटी सी पिंडी का स्वरूप और गुफा बढ गई तथा श्रद्धालु लेटकर (पेंढ़ भरकर) गुफा के अंदर भगवान शिव के समीप पहुंचने लगे। आज भगवान शिव का आकार पांच फिट के करीब हो गया है। अब श्रद्धालु खड़े- खड़े गुफा के अंदर प्राकृतिक शिव पिंडी स्वरूप में विराजमान भगवान आशुतोष के समीप से दर्शन एवं जलाभिषेक करते हैं। दूर-दराज से श्रद्धालु अपने निजी वाहनों से दर्शन के लिए आते हैं। महाशिवरात्रि पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करने आते हैं।
तांत्रिक चंद्रास्वामी ने किया था महायज्ञ
देश-विदेश के राजनेताओं से घनिष्ठ संबंध रखने वाले प्रख्यात तांत्रिक चंद्रास्वामी ने प्रधानमंत्री नरसिंहाराव के किसी कार्य सिद्धि के लिए 1991 में झूमरनाथ धाम में महायज्ञ किया था। उन्होंने वाराणसी स्थित दुर्वासा आश्रम के महंत संतोषी महाराज को महायज्ञ की जिम्मेदारी दी थी। संतोषी महाराज ने झूमरनाथ गुफा के समीप यज्ञशाला का निर्माण कराया था। इसके बाद तांत्रिक चंद्रास्वामी ने कार्य सिद्धि के लिए यज्ञ किया था।
मंदिर का ऐसे नाम पड़ा झूमरनाथ
ग्रामीणों के अनुसार ब्रिटिश शासन काल में यह क्षेत्र झांसी जिले में आता था। पुलिस महकमे के एक अधिकारी के यहां संतान नहीं थी। पुलिस अधिकारी जब झूमरनाथ मंदिर आए तो उन्होंने अपनी परेशानी पुजारी को बताई। पुजारी ने कहा की आप भगवान शिव से अपनी प्रार्थना कीजिए, मनोकामना पूरी होगी। इसके बाद पुलिस अधिकारी को इच्छा के अनुसार पुत्र की प्राप्ति हुई। उन्होंने प्राचीन शिवलिंग पर झूमर चढ़वाए। तभी से इस मंदिर का नाम झूमरनाथ पड़ गया। खास बात यह भी है कि झूमरनाथ धाम में महाशिवरात्रि पर मेला लगता था। यह मेला जिले का पहला प्रशासन द्वारा रजिस्टर्ड मेला था, लेकिन अब मेला नहीं लगता है।
झूमरनाथ मंदिर की विशेषताएं
झूमरनाथ मंदिर की कुछ अद्भुत विशेषताएं हैं। भगवान शिव को अर्धनारीश्वर कहा जाता है। जब भी लोग भगवान शिव की परिक्रमा लगाते हैं, उनकी आधी ही परिक्रमा लगाई जाती है। झूमरनाथ मंदिर में भगवान शिव की परिक्रमा लगाने के लिए गुफा के नीचे परिक्रमा मार्ग है, जो प्राकृतिक रूप से आधा ही है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसी तरह हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर के ऊपर कलश को शुभ माना जाता है। प्राकृतिक शिवलिंग गुफा के ऊपर कलशनुमा पत्थर स्थापित है, जिससे यह अपने आप में अद्भुत है। श्रद्धालु अब यहां भजन कीर्तन करके रात्रि जागरण करने लगे हैं।
प्राकृतिक गुफा के अंदर पिंडी रूवरूप में विराजे भगवान शंकर लोगों की आस्था का केंद्र हैं। यह सिद्ध क्षेत्र है। यहां दूर – दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। भगवान शंकर के आशीर्वाद से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
– चंद्रशेखर दास महाराज
महंत झूमरनाथ
झूमरनाथ मंदिर में विराजमान भगवान शंकर बहुत जल्दी – जल्दी अपना आकार बढ़ा रहे हैं। भगवान शिव की यह पिंडी काफी छोटी थी। लेकिन, मेरे देखते-देखते आज यह बड़ा रूप धारण कर चुके हैं।
– खलक सिंह बुंदेला, ग्रामरजपुरा
झूमरनाथ मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। इससे कुछ हद तक यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार भी मुहैया हो सकता है। प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे प्राकृतिक सिद्ध क्षेत्र झूमरनाथ मंदिर का विकास हो एवं लोगों को रोजगार मिल सके।
– महेंद्र सिंह बुंदेला, ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रजपुरा
ऐसी लोककथा है कि 17 वीं शताब्दी में ग्राम रजपुरा के गांव के लोगों को भगवान शिव ने रात में स्वप्न दिया कि वह ग्राम रजपुरा एवं बठवाहा की पहाड़ी पर स्थित गुफा में शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। जिन लोगों को स्वप्न आया था, अगले दिन उन्होंने अन्य गांव वालों को स्वप्न के बारे में बताया। इसके बाद गांव की लोग एकत्रित होकर उक्त स्थल पर गए एवं गुफा में पहुंचकर देखा तो वहां भगवान शिव पिंडी के रूप में विराजमान थे। भगवान शिव की नित्य पूजा पाठक परिवार के लोग करते हैं। उसी समय से यह स्थान श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। वर्तमान समय में स्थानीय लोगों के अलावा दूरदराज से आकर श्रद्धालु पुण्य अर्जित करते हैं। भगवान शिव के दर्शन करने को पहुंचने के लिए ब्लॉक बार से पारौन होते हुए मार्ग झूमरनाथ तक जाता है।
बांस के डंडे में लोटा बांधकर होता था जलाभिषेक
श्री झूमरनाथ मंदिर में प्राकृतिक पिंडी के स्वरूप में भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं। उनका आकार दिन- प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। करीब चालीस वर्ष पहले तक यहां दूर-दराज के श्रद्धालु दर्शन को आने से कतराते थे। क्योंकि, जंगली क्षेत्र व आसपास बस्ती नहीं होने के कारण लोगों में जंगली जानवरों का डर रहता था। केवल आसपास के लोग ही यहां दर्शन को आते थे। स्थानीय लोगों द्वारा प्रतिदिन भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए लंबे डंडे का सहारा लिया जाता था, क्योंकि गुफा का आकार छोटा होने के कारण श्रद्धालु प्राकृतिक शिव की पिंडी के समीप नहीं पहुंच पाते थे। इसलिए श्रद्धालु लंबे डंडे में लोटा बांधकर जलाभिषेक करते थे। धीरे-धीरे भगवान शिव की छोटी सी पिंडी का स्वरूप और गुफा बढ गई तथा श्रद्धालु लेटकर (पेंढ़ भरकर) गुफा के अंदर भगवान शिव के समीप पहुंचने लगे। आज भगवान शिव का आकार पांच फिट के करीब हो गया है। अब श्रद्धालु खड़े- खड़े गुफा के अंदर प्राकृतिक शिव पिंडी स्वरूप में विराजमान भगवान आशुतोष के समीप से दर्शन एवं जलाभिषेक करते हैं। दूर-दराज से श्रद्धालु अपने निजी वाहनों से दर्शन के लिए आते हैं। महाशिवरात्रि पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करने आते हैं।
तांत्रिक चंद्रास्वामी ने किया था महायज्ञ
देश-विदेश के राजनेताओं से घनिष्ठ संबंध रखने वाले प्रख्यात तांत्रिक चंद्रास्वामी ने प्रधानमंत्री नरसिंहाराव के किसी कार्य सिद्धि के लिए 1991 में झूमरनाथ धाम में महायज्ञ किया था। उन्होंने वाराणसी स्थित दुर्वासा आश्रम के महंत संतोषी महाराज को महायज्ञ की जिम्मेदारी दी थी। संतोषी महाराज ने झूमरनाथ गुफा के समीप यज्ञशाला का निर्माण कराया था। इसके बाद तांत्रिक चंद्रास्वामी ने कार्य सिद्धि के लिए यज्ञ किया था।
मंदिर का ऐसे नाम पड़ा झूमरनाथ
ग्रामीणों के अनुसार ब्रिटिश शासन काल में यह क्षेत्र झांसी जिले में आता था। पुलिस महकमे के एक अधिकारी के यहां संतान नहीं थी। पुलिस अधिकारी जब झूमरनाथ मंदिर आए तो उन्होंने अपनी परेशानी पुजारी को बताई। पुजारी ने कहा की आप भगवान शिव से अपनी प्रार्थना कीजिए, मनोकामना पूरी होगी। इसके बाद पुलिस अधिकारी को इच्छा के अनुसार पुत्र की प्राप्ति हुई। उन्होंने प्राचीन शिवलिंग पर झूमर चढ़वाए। तभी से इस मंदिर का नाम झूमरनाथ पड़ गया। खास बात यह भी है कि झूमरनाथ धाम में महाशिवरात्रि पर मेला लगता था। यह मेला जिले का पहला प्रशासन द्वारा रजिस्टर्ड मेला था, लेकिन अब मेला नहीं लगता है।
झूमरनाथ मंदिर की विशेषताएं
झूमरनाथ मंदिर की कुछ अद्भुत विशेषताएं हैं। भगवान शिव को अर्धनारीश्वर कहा जाता है। जब भी लोग भगवान शिव की परिक्रमा लगाते हैं, उनकी आधी ही परिक्रमा लगाई जाती है। झूमरनाथ मंदिर में भगवान शिव की परिक्रमा लगाने के लिए गुफा के नीचे परिक्रमा मार्ग है, जो प्राकृतिक रूप से आधा ही है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसी तरह हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर के ऊपर कलश को शुभ माना जाता है। प्राकृतिक शिवलिंग गुफा के ऊपर कलशनुमा पत्थर स्थापित है, जिससे यह अपने आप में अद्भुत है। श्रद्धालु अब यहां भजन कीर्तन करके रात्रि जागरण करने लगे हैं।
प्राकृतिक गुफा के अंदर पिंडी रूवरूप में विराजे भगवान शंकर लोगों की आस्था का केंद्र हैं। यह सिद्ध क्षेत्र है। यहां दूर – दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। भगवान शंकर के आशीर्वाद से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
– चंद्रशेखर दास महाराज
महंत झूमरनाथ
झूमरनाथ मंदिर में विराजमान भगवान शंकर बहुत जल्दी – जल्दी अपना आकार बढ़ा रहे हैं। भगवान शिव की यह पिंडी काफी छोटी थी। लेकिन, मेरे देखते-देखते आज यह बड़ा रूप धारण कर चुके हैं।
– खलक सिंह बुंदेला, ग्रामरजपुरा
झूमरनाथ मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। इससे कुछ हद तक यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार भी मुहैया हो सकता है। प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे प्राकृतिक सिद्ध क्षेत्र झूमरनाथ मंदिर का विकास हो एवं लोगों को रोजगार मिल सके।
– महेंद्र सिंह बुंदेला, ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रजपुरा