- जेपी नड्डा ने संभाली बीजेपी की कमान
- अकाली दल बीजेपी के साथ नहीं लड़ेगी चुनाव
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान जगत प्रकाश नड्डा को सौंपी गई. नड्डा की सोमवार को एक तरफ ताजपोशी हो रही थी तो दूसरी तरफ बीजेपी के 21 साल पुराने सहयोगी अकाली दल का सुर बदल गया. नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को आधार बनाते हुए अकाली दल ने दिल्ली में बीजेपी से दूरी बना ली. यानी गठबंधन टूट गया है. यह नड्डा के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा रहा है.
दिल्ली में अकाली दल और बीजेपी हमेशा से एक साथ मिलकर चुनाव लड़ते रहे हैं. इस बार अकाली दल ने सीएए के चलते दिल्ली विधानसभा चुनाव में नहीं लड़ने का फैसला किया था. दिल्ली में अकाली दल का करीब आधा दर्जन सीटों पर राजनीतिक प्रभाव है. दिल्ली में राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, राजेंद्र नगर, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा और गांधी नगर सीट पर सिख मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं.
बीजेपी सीएए को बना रही चुनावी हथियार
दिलचस्प बात यह है कि अकाली दल ने बीजेपी का साथ सीएए के मुद्दे पर छोड़ा है जबकि बीजेपी दिल्ली में इसे सबसे बड़े चुनाव हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है. इतना ही नहीं बीजेपी सीएए को लेकर घर-घर जनजागरण अभियान चलाने से लेकर रैली कर रही है. ऐसे में अकाली दल ने सीएए के मुद्दे को आधार बनाते हुए दिल्ली चुनाव से अपने आपको दूर कर लिया है.
सीएए के चलते बीजेपी से अलग हुए अकाली
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष और अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने मीडिया से कहा कि सीएए पर स्टैंड बदलने की बजाय हमने विधानसभा चुनाव में नहीं उतरने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि सीएए की मांग अकाली दल ने ही की थी, लेकिन उसमें किसी धर्म को निकालने की बात नहीं थी. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ित होने वाले हिंदू, सिख, ईसाई व बौद्ध को भारत में नागरिकता देने का हम स्वागत करते हैं, लेकिन इसमें मुस्लिमों को भी शामिल किया जाना चाहिए.
सिरसा ने कहा कि विधानसभा को लेकर बीजेपी नेताओं के साथ बैठक में भी यह मुद्दा उठा था. बीजेपी नेता पार्टी से सीएए को लेकर अपने रुख पर विचार करने को कह रहे थे, लेकिन सुखबीर सिंह बादल ने इससे इनकार कर दिया है. अकाली दल लंबे समय से बीजेपी की सहयोगी है, लेकिन अपने सिद्धांत से समझौता नहीं किया जा सकता है. हम धर्म व जाति के नाम पर समाज को बांटने में विश्वास नहीं रखते हैं. ऐसे में अकाली दल का कोई भी नेता दिल्ली में चुनाव न तो पार्टी से और न ही निर्दलीय लड़ेगा.
बीजेपी से एक-एक अलग हो रहे सहयोगी
दरअसल बीजेपी के कई सहयोगी दल साथ छोड़कर पहले से ही अलग राह पकड़ चुके हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना ने 25 साल पुरानी बीजेपी से दोस्ती खत्म करके कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिला लिया है. वहीं, ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) ने झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान गठबंधन तोड़ लिया था. ऐसे ही दक्षिण भारत में बीजेपी के एकलौते सहयोगी रहे चंद्रबाबू नायडू ने तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अलग होकर विपक्ष के साथ हाथ मिला लिया है. ऐसे में अकाली दल का बीजेपी से अलग होना पार्टी के नए अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए शुभसंकेत नहीं माना जा रहा है.