- बिहार के नियोजित शिक्षक करेंगे अनिश्चिकालीन हड़ताल
- 4 लाख शिक्षक 17 फरवरी से शुरू करेंगे हड़ताल
- अपनी मांगों को लेकर नीतीश सरकार को दिया अल्टीमेटम
‘अगर नीतीश कुमार ने हमारी मांगों को नहीं माना तो आने वाले विधानसभा चुनाव में उनका झारखंड की रघुवर सरकार से भी बुरा हाल कर देंगे क्योंकि हमारे पास चार लाख नियोजित शिक्षकों का समर्थन हैं.’ ये कहना है बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के जिला संयोजक और सोशल मीडिया प्रभारी नवनीत कुमार का जो खुद बिहार में एक नियोजित शिक्षक हैं.
बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आर-पार की लड़ाई में उतर चुके राज्य के करीब 4 लाख नियोजित शिक्षकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चाबंदी शुरू कर दी है और अपनी मांगों को लेकर राज्य के ऐसे सभी शिक्षक बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले 17 फरवरी 2020 से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर रहे हैं.
इतना ही नहीं नियोजित शिक्षकों ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुनौती दी है कि अगर उन्होंने उनकी मांगों को नहीं माना तो राज्य में होने वाली मैट्रिक की परीक्षा से भी नियोजित शिक्षक खुद को अलग कर लेंगे.
अगर सभी नियोजित शिक्षकों ने सच में ऐसा किया तो यह बिहार बोर्ड और राज्य सरकार के लिए निश्चित तौर पर एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि न सिर्फ इससे परीक्षा में खलल पड़ेगा बल्कि इससे 10वीं और 12वीं के परीक्षा परिणाम आने में भी देरी होगी.
अब ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार ‘समान काम समान वेतन’ के अलावा राज्य के करीब 4 लाख नियोजित शिक्षकों की ऐसी क्या मांगें हैं जिनको लेकर इस चुनावी साल में ये शिक्षक सरकार से आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं.
नियोजित शिक्षकों की क्या है मांग
साल 2005 में नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति शुरू हुई थी और अब ऐसे शिक्षकों की संख्या बिहार में करीब 4 लाख तक पहुंच चुकी है. चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार एक बार फिर बड़ी संख्या में और नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में पुराने नियोजित शिक्षक अपनी कुछ मुख्य मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
राज्य के नियोजित शिक्षक राज्य सरकार से नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षक की तरह वेतनमान, नियमित शिक्षक की तरह सेवा शर्त और राज्य कर्मी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं और इसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है. नियोजित शिक्षकों ने इसकी लड़ाई सड़क से विधानसभा तक और हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी. हाई कोर्ट में जहां उन्हें सफलता मिली वहीं सुप्रीम कोर्ट में उन्हें निराशा हाथ लगी.
सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था हाई कोर्ट का फैसला
बता दें कि समान काम समान वेतन की मांग को लेकर संघर्षरत नियोजित शिक्षकों को पटना हाई कोर्ट में बड़ी जीत मिली थी. 31 अगस्त 2017 को हाई कोर्ट ने शिक्षकों के हक में फैसला सुनाते हुए नीतीश सरकार को समान वेतन देने का निर्देश दिया था लेकिन बिहार सरकार हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी.
नियोजित शिक्षकों के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कुल 11 याचिकाओं पर सुनवाई की थी और उसके बाद 3 अक्टूबर 2018 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 11 मई 2019 को दिए अपने फैसले में हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए बिहार के करीब चार लाख नियोजित शिक्षकों की सेवाएं नियमित करने से इनकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बिहार सरकार के द्वारा शिक्षकों के लिए दो अलग-अलग संवर्ग रखना उचित है और नियोजित शिक्षकों के अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है और न ही उनके साथ कोई भेदभाव किया गया है.
नियमित और नियोजित शिक्षकों में क्या है अंतर
अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बिहार में नियमित शिक्षक और नियोजित शिक्षकों में ऐसा क्या अंतर है और वो राज्य सरकार पर भेदभाव का आरोप क्यों लगाते हैं. बिहार में साल 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनने के बाद वहां नियोजित शिक्षकों की भर्ती शुरू हुई थी.
ये शिक्षक सीधे तौर पर बिहार सरकार के कर्मचारी नहीं कहलाते और इनकी नियुक्ति पंचायतीराज के तहत पंचायत और ब्लॉक स्तर पर की गई है इसलिए उन्हें वो सुविधाएं नहीं मिलती जो वहां नियमित शिक्षकों को मिलती आ रही है.
इसे अगर उदाहरण से समझें तो नियमित शिक्षक बिहार सरकार के कर्मचारी कहलाते हैं जिसकी वजह से उन्हें पे स्केल, ट्रांसफर, पीएफ, अधिक छुट्टियां और कुछ शिक्षकों को पेंशन की सुविधा मिलती है. लेकिन नियोजित शिक्षकों को ऐसी कोई सुविधा नहीं दी जाती और उन्हें एक फिक्स सैलरी पर नियुक्त किया गया है.
यही वजह है कि एक ही स्कूल में तैनात जहां एक नियमित शिक्षक की सैलरी एक लाख रुपये तक होती है वहीं उसी स्कूल में नियोजित शिक्षक की सैलरी चंद हजार रुपये होती है जबकि दोनों काम एक समान करते हैं. नियोजित शिक्षक इस खाई जैसे अंतर को खुद के साथ भेदभाव मानते हैं.
क्या शिक्षकों का हड़ताल संवैधानिक है
बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के तहत राज्य के करीब 28 छोटे-बड़े शिक्षक संघ और संगठन आगामी 17 फरवरी से सरकार के खिलाफ अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू करेंगे जिसे 25 फरवरी से बिहार राज्य शिक्षक संघ ने भी समर्थन देने का ऐलान किया है.
बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के जिला संयोजक और सोशल मीडिया प्रभारी नवनीत कुमार ने इसको लेकर कहा कि हमारे इस वाजिब अधिकार की लड़ाई में राज्य के नियमित शिक्षक भी शामिल हैं और वो हमारा साथ देंगे. अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर समान काम समान वेतन की मांग को लेकर ऐसा करने का उनका पास क्या आधार है और क्या यह संवैधानिक है. इस सवाल का जवाब है हां, शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन की मांग करने की शक्ति देश का संविधान देता है.
संविधान के आर्टिकल 39 (D)और 41 के तहत भारत के किसी भी नागरिक को केंद्र या फिर राज्य में समान काम के लिए समान वेतन पाने का पूरा अधिकार है और अगर ऐसा नहीं होता है तो वो अपने इस अधिकार के लिए लड़ाई लड़ सकते हैं.
चुनावी साल में नीतीश के लिए बनेंगे मुसीबत
चुनावी साल में राज्य के ये चार लाख शिक्षक नीतीश कुमार के लिए नई मुसीबत बन सकते हैं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि राज्य में करीब 4 लाख नियोजित शिक्षक हैं जो शिक्षक होने के साथ ही वोटर भी हैं. अगर इन नियोजित शिक्षकों को परिवार का मुखिया मान लिया जाए और एक घर में औसतन तीन वोटर भी हों तो तकरीबन ऐसे वोटर्स की संख्या करीब 12 लाख तक पहुंच जाती है.
नवनीत के मुताबिक बीते चुनाव तक इन शिक्षकों और इनके परिजनों ने भी चुनाव में नीतीश कुमार का ही साथ दिया था. लेकिन उन्होंने इस बार कहा है कि अगर सरकार ने उनकी मांगों को नहीं माना तो उनके पास नीतीश कुमार को वोट नहीं देने या फिर किसी दूसरे दलों को चुनने का भी विकल्प होगा. निश्चित तौर पर निजोजित शिक्षकों की ये मंशा नीतीश कुमार पर भारी पड़ सकता है क्योंकि इन शिक्षकों का प्रभाव बिहार के किसी खास हिस्से में नहीं बल्कि पूरे राज्य में है.
हाल ही में झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव में रघुवर सरकार की हार में भी शिक्षकों ने अहम भूमिका निभाई थी. माना जा रहा है कि झारखंड में पैरा शिक्षकों की मांग को नहीं मानना और उनपर लाठी चलवाना भी राज्य में बीजेपी के हारने के प्रमुख कारणों में से एक रहा है.
झारखंड के परिणाम को देखते हुए करीब 15 साल से बिहार में सत्ता चला रहे नीतीश कुमार शायद कभी ऐसा नहीं चाहेंगे कि इन 12 लाख वोटों के छिटक जाने की वजह से उनके सत्ता की डगर में कांटे बिछ जाएं और वो उन्हें पार ही न कर सकें.
हड़ताल के बाद क्या होगा नियोजित शिक्षकों का दांव
नवनीत से जब हमने यह जानने की कोशिश की अगर नीतीश सरकार ने हड़ताल के बाद भी उनकी मांगों को नहीं माना तो उनका अगला कदम क्या होगा? इसके जवाब में नवनीत ने कहा, ‘अगर इस निरंकुश नीतीश सरकार ने हमारी मांगों को नहीं माना तो सबसे पहले हम स्कूलों में तालाबंदी करेंगे और इसके बाद राज्य में मई-जून महीने में होने वाले एमएलसी चुनाव में सबक सिखा देंगे क्योंकि इसके लिए ज्यादातर योग्य वोटर्स शिक्षक ही हैं.’
सरकार का दावा नियोजित शिक्षकों की समस्या के लिए बना दी कमेटी
बिहार में नियोजित शिक्षकों की मांग को लेकर नीतीश सरकार ने साल 2015 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अप्रैल महीने में एक कमेठी का गठन किया था जिसे नियोजित शिक्षकों के वेतनमान से लेकर तमाम दूसरी मांगों और समस्याओं पर सरकार को अपनी रिपोर्ट देना था. इस कमेटी का अध्यक्ष बिहार सरकार के मुख्य सचिव को बनाया गया था.
इस कमेटी में विकास आयुक्त, वित्त और शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव, प्रधान अपर महाधिवक्ता को सदस्य बनाया गया था. पांच साल बीत जाने के बाद भी यह कमेटी अब तक नियोजित शिक्षकों की समस्याओं को न तो सुलझा पाई है और न ही सरकार को कोई सुझाव दिया है. इस मामले में आज भी नीतीश सरकार का कहना है कि कमेटी की रिपोर्ट के बाद सरकार उस पर तर्कसंगत कार्रवाई करेगी.
अब ऐसे में देखना होगा कि क्या नीतीश कुमार इस चुनावी साल में नियोजित शिक्षकों की दशकों पुरानी मांगों को मानते हैं या फिर कोई बीच का रास्ता निकालते हैं. राज्य में नियोजित शिक्षकों के तेवर को देखकर लगता है कि अगर नीतीश कुमार इन्हें मनाने में चूंके तो इसी साल नवंबर महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें निश्चित तौर पर इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है.