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सजग दिखने के लिए विपक्ष का मुख्य काम सरकार पर प्रश्नों के बाउंसर दागना है। अपने पालक-बालकों से उन प्रश्नों की खिल्ली उड़वाते हुए सरकार का काम है उन पर डक कर जाना। कभी कभी हाथी के दाँत जैसी सकारात्मकता लाने के लिए विपक्ष सरकार को ‘रचनात्मक’ सुझाव दे डालता है। सरकार विपक्ष के सुझाव को लोअर फुलटॉस की तरह ट्रीट करते बाउंड्री के पार भेज देती है, “हुह! ये सारे आइडिया तुम्हें तब ही आते हैं जब तुम विपक्ष में होते हो। आइटी सेल सब रिकॉर्ड कर रहा है। विपक्ष में आने पर हम भी पाई-पाई का हिसाब कर देंगे।“ लोकतंत्र को सरस बनाए रखने के लिए इस 20-20 मैच में मुख्यधारा की अधिकांश मीडिया से सरकार का चीयर लीडर और बेरोजगार या अप्रासंगिक हो चुके पूर्व मीडिया कर्मियों से सोशल मीडिया के जरिए विपक्ष का चीयर लीडर होने की अपेक्षा है। जनता तो खैर दर्शक है ही।
देश की राजनीतिक स्थिति के आलोक में हमें स्वयं को यह भरोसा देना पड़ता है कि देश में विपक्ष है भी। काँग्रेस और उसके पारिवारिक नेतृत्व को देखकर यह भरोसा देना भी कठिन हो जाता है। बहरहाल, काँग्रेस विपक्ष सी दिखने के लिए हाथ पैर मारने का स्वाँग करती रहती है। हाथ-पैर मारते हुए उसे मीम से लेकर ठिठोली तक का विषय ही नहीं बनना पड़ता बल्कि प्रश्नों की बौछार का सामना भी करना पड़ता है। युग नूतन है। प्रश्न सरकार से नहीं बल्कि विपक्ष से होते हैं – उसकी देशभक्ति पर, उसकी नीयत पर और उसकी नियति पर। सरकार की देशभक्ति शाश्वत व सार्वभौमिक होती है, नीयत नेक, नियति नियत व उज्जवल।
सरकार से प्रश्न पूछने का काम काँग्रेस अध्यक्षा स्वयं नहीं करतीं। वह तो यदा-कदा ही अपना मौन तोड़ती है, डॉ. मम सिंह से भी कम। अलबत्ता, कभी पार्टी के पालक-बालक नेता गण के मुख से सरकार के लिए प्रश्न फूट जाते हैं तो कभी बेघर हुई प्रियंका जी के श्रीमुख से और कभी स्वयं निवर्तमान और भावी अध्यक्ष राहुल गाँधी के मुखारविन्द से। पालक-बालक नेता गण द्वारा किये प्रश्नों का उद्देश्य सरकार को घेरना कम होता है और अपने मालिक-मोख्तार को प्रसन्न करके अपने अंक बढ़वाना अधिक। प्रियंका जी प्रश्न कम पूछने के बहाने अपनी दादी से अपने नाक की समानता दिखाकर काँग्रेस की नाक बनना चाहती हैं। सरकार से प्रश्न करते हुए राहुल जी की समस्या है कि वह चाभी दिए जाने के लिए पालक-बालक सलाहकारों पर आश्रित हैं।
यह स्वागत योग्य है कि सीमाओं को ताक पर रखते हुए राहुल जी सरकार से प्रश्न ही नहीं पूछ रहे बल्कि सरकार को सुझाव भी दे रहे हैं। इस बार वह वीडियो बाइट से ‘टाइट आर्म एराउंड द विकेट’ बाउंसर पर बाउंसर डाल रहे हैं। इन बाउंसर्स के लिए वह लाल या सफेद कुकाबोरा गेंद नहीं बल्कि चीनी कोरोनाछोड़ा गेंद का प्रयोग कर रहे हैं। गेंदबाजी के तेवर के साथ उन्होंने अपनी जर्सी का कलेवर ही नहीं बदला बल्कि पूरा नया गेट-अप ही धारण कर रखा है।
फेसियल से नेता-नुती के फोटोजेनिक, यंग, डाइनेमिक और डैसिंग दिखने के इस युग में राहुल जी के सलाहकार पालक-बालकों ने अपनी ओर से एक मास्टर स्ट्रोक जड़ा है – सुघड़ मुखड़े और प्यारी डिम्पल वाले राहुल जी को थोड़ी अधिक उम्र का और थोड़ा कमजोर दिखाकर। ऐसा लगा कि सलाहकारों ने नया ट्रेंड बनाकर अपने दरमाहा को जस्टीफाई कर दिया है लेकिन विरोधियों के षडयंत्र में यह मास्टर-स्ट्रोक भी बैकफायर कर रहा है। लोग लुक पर ही चर्चाएँ कर रहे हैं। चर्चा को ठिठोली भी पढ़ा जा सकता है, हालाँकि यह ठिठोली भी नहीं है। भोजपुरी में कहें तो लुग्गा लूटा जा रहा है। पूछे जा रहे प्रश्न पार्श्व में चले गये हैं। पता नहीं कि इन बाउंसर्स पर आलसी सरकार डक भी कर रही है या वे उँचाई में वाइड होने के कारण आराम से सर के उपर से निकल जा रहे हैं।
लेख लिखे जाने तक राहुल जी के आए तीन वीडियो से यह समझना कठिन है कि उनके समर्थक अधिक उत्साहित हैं या उनके विरोधियों के समर्थक। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय राजनीति राहुलमय है। काँग्रेस उन्हें अपनी ताकत कहती है, ऐसा मानती नहीं और भाजपा उन्हें अपनी शक्ति मानती है लेकिन ऐसा कहती नहीं।
समर्थकों का मानना है कि राहुल जी इस बार मारक अवतार में हैं। भगवान के अवतार भी गिने-चुने हुए हैं पर राहुल जी के अवतारों की गिनती करने वाली हर एजेंसी कार्य बोझ से दबकर काम छोड़कर भाग जाती है। हमें समझाने की कोशिश हो रही है कि यह अवतार विशेष है। अवतार सृजित करने वाले एक सलाहकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस बार राहुल जी को प्रक्षेपित करते हुए वैज्ञानिक तथ्यों का ध्यान रखा गया है। टोटका-टोटरम भी खूब किए गए हैं। प्रक्षेपण एक चमत्कारी घड़ी में समय देखकर एक विशेष घड़ी पर और विशेष कोण से किया गया है। टोटरम के तहत उन्हें नीले रंग का स्लिम फिट शर्ट पहनाया गया है और बेसन में चना भरा समोसा टमाटर की निर्मल हरी चटनी के साथ खिलाया गया है। उन्होंने मन में पीएम पद का लड्डू फोड़ने वाली स्वादिष्ठ ‘मन की मिठाई’ भी खाई है।
वहीं विरोधी कहते हैं कि हास्य के तत्वों में लगातार वृद्धि करके राहुल जी हमेशा की तरह इस बार भी बेजोड़ हैं। इन विरोधियों से वस्तुनिष्ठता की अपेक्षा की भी नहीं जा सकती। राहुल जी श्रंगार विधा में महाकाव्य भी गढ़ दें तो भी उन्हें ठप्रेक ही दिखेगा। उनके वीर रस को ये करूणा कहेंगे और उनके हास्य को हास्यास्पद। हद तो तब होती है जब राहुल जी पैंतीस कहते हैं और ये लोग पिचत्तीस कहकर उनकी हँसी उड़ाते हैं। यह सब एजेंडा है – ‘नमो नाम केवलम’। अपने एजेंडे में ये लोग भूल जाते हैं – हँसले घर बसेला।
मैं इस लेख में वीडियो सामग्री की जानबूझ कर चर्चा नहीं कर रहा। मैंने वीडियो देखा ही नहीं। आजकल देखता ही कौन है, दिखाना भी कौन चाहता है? लोगों को बस क्लिक चाहिए। मैंने भी वीडियो क्लिक कर दिया। वैसे भी देश में व्यक्ति महत्वपूर्ण है, मुद्दा नहीं। मैं छोटा आदमी ही नहीं छोटा लेखक भी हूँ। मैं भला लीक से क्यों हटूँ? यदि हिम्मत करके मैं वीडियो देखता भी तो वही मिलता जो आज काँग्रेस के सत्ता में होने पर भाजपा कहती हुई पाई जाती। हमारे लोकतंत्र में बाउंसर डालने के स्थापित नियम से विचलन विरले ही होता है। बाउंसर डालने वाले बदलते हैं, डक करने वाला बदल जाते है या यूँ कहिए कि दोनों का रोल रिवर्सल हो जाता है। प्रश्न वही रहे हैं, वही रहते हैं और शायद वही रहेंगे।