Sunday, December 22, 2024
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रघुराम राजन से बातचीत में राहुल गांधी ने खड़े किए मोदी सरकार पर ये सवाल – Coronavirus outbreak rbi former governor raghuram rajan discusses rahul gandhi narendra modi policy effects indian economy

  • भारत की आबादी के हिसाब से चार गुना टेस्ट करने की जरूरत
  • कोरोना के चलते भारत में 10 करोड़ नौकरियों पर छाएगा संकट

कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए देश में पिछले एक महीने से ज्यादा समय से लॉकडाउन है. इसने अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इन चुनौतियों को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से चर्चा की. इस चर्चा में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर बड़े सवाल खड़े किए.

कम टेस्टिंग का उठाया सवाल

राहुल गांधी ने कोरोना टेस्टिंग को लेकर सवाल किया. इस पर रघुराम राजन ने कहा कि अगर हम अर्थव्यवस्था को खोलना चाहते हैं, तो टेस्टिंग की क्षमता को बढ़ाना होगा. हमें मास टेस्टिंग की ओर जाना होगा. अमेरिका की मिसाल लें. वहां एक दिन में डेढ़ लाख तक टेस्ट हो रहे हैं. लेकिन वहां विशेषज्ञों, खासतौर से संक्रमित रोगों के विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षमता को तीन गुना करने की जरूरत है यानी 5 लाख टेस्ट प्रतिदिन हों तभी आप लॉकडाउन को खोलने के बारे में सोचें. कुछ तो रोज 10 लाख तक टेस्ट करने की बात कर रहे हैं. भारत की आबादी को देखते हुए हमें इसके चार गुना टेस्ट करने चाहिए. अगर आपको अमेरिका के लेवल पर पहुंचना है तो हमें 20 लाख टेस्ट रोज करने होंगे, लेकिन हम अभी सिर्फ 22-30 हजार टेस्ट ही कर पा रहे हैं.

केंद्रीयकरण के बहाने मोदी पर निशाना

राहुल गांधी ने राजन से सवाल पूछा कि सत्ता का केंद्रीकरण हो गया है, जिससे बातचीत लगभग बंद हो गई है. बातचीत और संवाद से कई समस्याओं का समाधान निकलता है. इस पर जवाब देते हुए रघुराम राजन ने कहा कि विकेंद्रीकरण न सिर्फ स्थानीय सूचनाओं को सामने लाने के लिए जरूरी है बल्कि लोगों को सशक्त बनाने के लिए भी अहम है. पूरी दुनिया में इस समय यह स्थिति है कि फैसले कहीं और किए जा रहे हैं. मेरे पास एक वोट तो है दूरदराज के किसी व्यक्ति को चुनने का. मेरी पंचायत हो सकती है, राज्य सरकार हो सकती है, लेकिन लोगों में यह भावना है कि किसी भी मामले में उनकी आवाज नहीं सुनी जाती. ऐसे में वे विभिन्न शक्तियों का शिकार बन जाते हैं.

पंचायती राज व्यवस्था को लेकर सवाल

राहुल गांधी ने सवाल किया कि पंचायती राज के बजाय हम जिलाधिकारी आधारित व्यवस्था में जा रहे हैं. अगर आप दक्षिण भारतीय राज्य देखें, तो वहां इस मोर्चे पर अच्छा काम हो रहा है, व्यवस्थाओं का विकेंद्रीकरण हो रहा है, लेकिन उत्तर भारतीय राज्यों में सत्ता का केंद्रीकरण हो रहा है और पंचायतों और जमीन से जुड़े संगठनों की शक्तियां कम हो रही हैं. इस पर रघुराम राजन ने कहा कि इसके पीछे एक कारण हैं और वह है वैश्विक बाजार. ऐसी धारणा बन गई है कि अगर बाजारों का वैश्वीकरण हो रहा है तो इसमें हिस्सा लेने वाले यानी फर्म्स भी हर जगह यही नियम लागू करती हैं, वे हर जगह एक ही व्यवस्था चाहते हैं, एक ही तरह की सरकार चाहते हैं, क्योंकि इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है.

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उन्होंने कहा कि समानता लाने की कोशिश में स्थानीय या फिर राष्ट्रीय सरकारों ने लोगों से उनके अधिकार और शक्तियां छीन ली हैं. इसके अलावा नौकरशाही की लालसा भी है, कि अगर मुझे शक्ति मिल सकती है, सत्ता मिल सकती है तो क्यों न हासिल करूं. यह एक निरंतर बढ़ने वाली लालसा है. अगर आप राज्यों को पैसा दे रहे हैं, तो कुछ नियम हैं जिन्हें मानने के बाद ही पैसा मिलेगा न कि बिना किसी सवाल के आपको पैसा मिल जाएगा. आप भी चुनकर आए हो और आपको इसका आभास होना चाहिए कि आपके लिए क्या सही है.

राज्यों के लिए एक समान नीति पर घेरा

राहुल गांधी ने कहा कि भारतीय समाज की व्यवस्था अमेरिकी समाज से काफी अलग है, ऐसे में सामाजिक बदलाव जरूरी है. हर राज्य का अलग तरीका है, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश को एक नजरिए से नहीं देख सकते. भारत में हमेशा सत्ता कंट्रोल करना चाहती है, जो काफी लंबे वक्त से जारी है. राहुल बोले कि आज जिस तरह की असमानता है, वह काफी चिंता वाला विषय है. इसे खत्म करना काफी जरूरी है.

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अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा कि हमारे पास लोगों के जीवन को बेहतर करने का तरीका है, फूड, हेल्थ एजुकेशन पर कई राज्यों ने अच्छा काम किया है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती लोअर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास के लिए है जिनके पास अच्छे जॉब नहीं होंगे. आज वक्त की जरूरत है कि लोगों को सिर्फ सरकारी नौकरी पर निर्भर ना रखा जाए, उनके लिए नए अवसर पैदा किए जाएं.

भारत में नौकरियों पर पड़ने वाले असर

राहुल गांधी ने सवाल किया कि कोरोना संक्रमण से नौकरियों पर क्या असर पड़ेगा. इस पर जवाब देते हुए रघुराम राजन ने कहा कि आंकड़े बहुत ही चिंतित करने वाले हैं. सीएमआईई के आंकड़े देखो तो पता चलता है कि कोरोना संकट के कारण करीब 10 करोड़ और लोग बेरोजगार हो जाएंगे. 5 करोड़ लोगों की तो नौकरी जाएगी, करीब 6 करोड़ लोग श्रम बाजार से बाहर हो जाएंगे. आप किसी सर्वे पर सवाल उठा सकते हो, लेकिन हमारे सामने तो यही आंकड़े हैं. यह आंकड़े बहुत व्यापक हैं. इससे हमें सोचना चाहिए कि नापतौल कर हमें अर्थव्यवस्था खोलनी चाहिए, लेकिन जितना तेजी से हो सके, उतना तेजी से यह करना होगा जिससे लोगों को नौकरियां मिलना शुरू हों.

उन्होंने कहा कि हमारे पास सभी वर्गों की मदद की क्षमता नहीं है. हम तुलनात्मक तौर पर गरीब देश हैं, लोगों के पास ज्यादा बचत नहीं है. हमने अमेरिका में बहुत सारे उपाय देखे और जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए यूरोप ने भी ऐसे कदम उठाए. भारत सरकार के सामने एकदम अलग हकीकत है जिसका वह सामना कर रही है.

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