Thursday, December 26, 2024
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रेप से सजा-ए-मौत तक, इन आंचलों में आंसुओं के सिवा कुछ भी नहीं – nirbhaya case ccused mothers nirbhaya mother asha devi reaction tedu

  • अदालत में रेप पीड़िता और दोषी की मां आमने-सामने
  • दोनों को अपने मां होने की सजा झेलनी पड़ रही

एक लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार निर्भया को इंसाफ मिल गया. निर्भया के दोषियों को सजा-ए-मौत की तैयारी की जा चुकी है. डेथ वारंट के दिन आज कोर्टरूम का अलग ही नजारा था. एक तरफ आंखों में आंसू लिए निर्भया की मां थी तो दूसरी तरफ थी दोषी मुकेश की मां. बेटे को फांसी की सजा पर मुहर लगने के बाद उसका भी रो-रोकर बुरा हाल था. जुर्म की इस गुस्से, गम और यातना भरी यात्रा में देखा जाए तो चाहे पीड़िता की मां हो या दोषियों की मां, इन मांओं के पास उम्र गुजारने को आंसुओं के सिवा कुछ भी नहीं है.

मंगलवार को पटियाला हाउस कोर्ट में एक ऐसा लम्हा भी आया जब निर्भया की मां और मुकेश की मां आमने सामने थीं. निर्भया की मां जब दोषियों को फांसी देने की मांग कर रही थीं तो मुकेश की मां फूट-फूटकर रोने लगी. वो कह रही थी कि ‘मैं भी मां हूं, मेरे हालात भी देखने चाहिए, जज साहब दया करो, मेरे लाल का क्या होगा’. उसकी बात पर निर्भया की मां ने भी कहा कि ‘मैं भी एक मां हूं’.

ये पल झकझोरने वाला है. निर्भया की मां आशा देवी की बात करें तो सात साल पहले जब उनकी बेटी इतने दर्दनाक हादसे का शिकार हुई तब वो मानो पूरी तरह टूट चुकी थी. एक बेहद घरेलू महिला जो ठीक ढंग से किसी से बात भी नहीं कर पाती थी, बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए सड़कों पर आ गई. दर-दर भटककर बेटी के लिए इंसाफ मांगा. पूरे सात साल की लंबी लड़ाई के बाद उसकी बेटी को इंसाफ मिल सका है. लेकिन हकीकत ये है कि उस मां के पास इस पूरी लड़ाई के बाद भी क्या बचा है सिवाय उम्र भर बेटी की यादों में सिसकने के…

वहीं दूसरी तरफ, रेप के दोषियों की मांओं के आंचलों में भी आंसुओं के सिवा कुछ नहीं है. हां, ताउम्र रेपिस्ट की मां के तौर पर पहचाने जाने का दंश जरूर झेलना होगा. आज पूरे समाज को बेटों के जुर्म के सामने इन मांओं की ममता बौनी नजर आ रही है. इन मांओं ने तो कभी नहीं सोचा होगा कि उनके बेटे ऐसा गुनाह करेंगे. हर मां एक औरत के तौर पर कभी नहीं चाहती कि उनका बेटा किसी औरत की जिंदगी ही खत्म कर दें. ये मांएं आज बेबस और लाचार हैं, वो आज भी ये ही सोच रही हैं कि अगर उनके बेटे जेल में ही रहें तो वो ये देखकर सुकून कर सकती हैं कि कम से कम वो जिंदा तो हैं. जिसे नौ महीने कोख में रखकर जिंदगी दी, आज उनकी मौत का फैसला लिख दिया गया है. जैसे किसी ने उनके आंचल से उनका बच्चा खींचकर मौत के घाट उतारने की तैयारी कर ली है.

इस पूरी घटना में किसी ने जुर्म किया, कोई उस जुर्म का शिकार हुआ, उसकी जिंदगी चली गई.  लेकिन दोनों पक्षों की मांओं के हिस्से क्या आया. इन्हें तो सिर्फ अपने मां होने की सजा मिली. एक तरफ पीड़िता की मां है, तो दूसरी तरफ दोषियों की मां, दोनों को ही अपनी औलादें खोने के बाद सिर्फ गम में ही जिंदगी गुजारनी होगी.

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