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“मैं भगवान के लिए गाता हूं”, पंडित जसराज ने एक साक्षात्कार में कहा था। वह अपने संगीत के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते थे। उनका गायन तब भी एक भक्तिपूर्ण स्वर में ही रहता था जब वह भजन नहीं गा रहे होते थे।
पंडित जसराज का मानना था कि उनका गायन भगवान के साथ एक सीधा संवाद है। उन्होंने एक बार एक सपना देखा था जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने पंडित जी को कृष्ण के लिए गायन हेतु प्रेरित किया था।
हरियाणा में २८ जनवरी १९३० को जन्मे जसराज को उनके बड़े भाई मनीराम ने संगीत में प्रशिक्षित किया था। उनके पिता पंडित मोतीराम मेवाती घराने के गायक थे। बाद में पंडित जी को उनके बड़े भाई पंडित प्रताप नारायण ने तबला संगतकार के रूप में प्रशिक्षित किया था।
एक गायक के रूप में ही नहीं, पंडित जसराज ने हवेली संगीत शैली जैसे पुराने रूपों पर शोध करने और लोकप्रिय बनाने में भी गहरी दिलचस्पी ली थी। इस शैली में मंदिरों में गायन प्रदर्शन होते हैं और कृष्ण की प्रशंसा व स्तुति में गायन किया जाता है।
जसराज को एक नवप्रवर्तक भी माना जाता है। उन्होंने जसरंगी नाम की जुगलबंदी का एक अनूठा रूप भी दुनिया के सामने पेश किया था। यह एक ऐसी विलक्षण शैली थी जिसमें एक पुरुष और एक महिला गायक अलग-अलग रागों को अपने-अपने सुरों में गाते हैं।
१९५२ में जब वह सिर्फ बाईस की उम्र में उन्होंने काठमांडू में नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह के दरबार में एक गायक के रूप में अपना पहला संगीत कार्यक्रम पेश किया था। १९६२ में पंडित जसराज ने फिल्म निर्देशक वी. शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से शादी रचा ली थी। मधुरा से उनकी पहली मुलाकात १९६० में बॉम्बे में हुई थी।
यदि पंडित जी के फ़िल्मी सफ़र की बात करें तो उनका पहला फ़िल्मी पार्श्व गीत वी. शांताराम की ‘लड़की सह्याद्री की’ (१९६६) में था। पंडित जी ने वसंत देसाई द्वारा रचित राग अहीर भैरव में भजन “वंदना करो” गाया था।
उनका दूसरा और शायद ही विरले ही सुना जाने वाला फ़िल्मी गीत श्याम प्रभाकर की फिल्म ‘बीरबल मेरा भाई’ (१९७५) में था। पंडित जसराज और पंडित भीमसेन जोशी ने राग मालकौंस में एक बेहतरीन जुगलबंदी पेश की थी लेकिन फिल्म के असफल हो जाने की वजह से ये उपेक्षित ही रह गया।
जिसे “आजकल” का संगीत या “टिपिकल फ़िल्मी संगीत” कहा जाता है, वहां पंडित जी ने सिर्फ एक बार ही हाथ आजमाया था। जब उन्होंने विक्रम भट्ट की हॉरर फिल्म १९२० में अदनान सामी द्वारा रचित रोमांटिक गीत “वादा तुमसे है” गाया था।
आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन शास्त्रीय संगीत अपनाने के लिए प्रेरित करने के लिए पंडित जी, गायिका, बेगम अख्तर को श्रेय देते हैं। बेगम साहिबा की गायी हुई गज़ल ‘दीवाना बनाना है तो…’ ने ना जाने कितनों को उस ज़माने में दीवाना बना दिया। पंडित जसराज ने स्वयं यह स्वीकार किया था कि ये गज़ल छः साल की उम्र में जब सुनी थी तो इस तरह दीवाने हो गए कि उन्होंने शास्त्रीय गायक बनने की ठान ली थी।
पंडित जसराज देश के सर्वोच्च पुरस्कारों में पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण शामिल हैं। पंडित जी के सुर की ध्वनि गुणवत्ता, स्पष्टता और संगीत नोट्स की त्रुटिहीन समझ के सभी कायल थे। उनका संगीत करियर अस्सी वर्षों तक दुनिया पर छाया रहा और उनका अचानक से जाना एक शून्य पैदा कर गया है।
भावभीनी श्रद्धांजलि।