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मन की उदासी कचोट रही थी। ऐलन मेरे पास बैठा था। मैंने उससे कहा, “तुम सबके लिए आसान है, मेरे लिए नहीं। मैंने हिंदी माध्यम से पढ़ाई की है। इसका असर आज भी मेरे अंग्रेजी उच्चारण में दिखता है। ऑफिस में सभी जानते हैं कि लीडरशिप स्किल्स मुझसे अधिक किसी और में नहीं है पर मुझे प्रोमोशन नहीं मिलेगा। रिटायरमेन्ट करीब होना तो बस बहाना है।“ ऐलन अंग्रेज़ी में बोला, “देखो दोस्त, यह 2050 है। यहाँ इंग्लिश ही चलती है। अंग्रेजी ही सत्य है, इसे मान लो। हर भाषा में भावना एक सी ही होती है।“
ऐलन से विदा लेकर मैं घर आया और सो गया। अचानक मेरे शरीर ने भूकम्प जैसा महसूस किया। आँखें खोली तो देखा कि एलेन मेरी बाँह पकड़कर ज़ोर ज़ोर से मुझे जगाने का प्रयास कर रहा है। उसने मुझे नमस्कार किया। मैं बाहर गया तो परिवार के सभी सदस्य हिंदी में अभिवादन कर रहे थे। मैंने चिढ़कर कहा, “गुड मॉर्निंग कहने पर प्रतिबंध लगा है क्या?” तैयार होकर मैंने नाश्ता किया और ऐलन के साथ दफ़्तर के लिए निकल पड़ा। आस-पास सब कुछ हिंदीमय लग रहा था। यह सब देखकर मैं सदमे में था।
मैंने ऐलन से कहा, “यहाँ ऐसा क्या हुआ है जो सब हिंदी बोल रहे हैं? कल तक अंग्रेज़ी का दखल इतना था कि जब मैं सोया था तो सपने में ‘डिड नॉट’ के साथ ‘वर्ब की थर्ड फॉर्म’ लगाने के लिए स्वयं को कोस रहा था। बताओ ऐलन!” ऐलन ने कहा, “भगवान के लिये मुझे ऐलन नहीं, अनिल कहो अन्यथा समाज में मेरी थू थू हो जाएगी। ऐलन नाम अतीत के पन्नों में दब चुका है। जीवन का वह निदनीय खंड छोड़ दें तो हम सदैव ही शुद्ध हिंदीभाषी रहे हैं। यह वर्ष 2117 है। अब सब हिंदी ही बोलते हैं। अंग्रेजी का प्रभाव विक्रम संवत 2076 तक ही था। अंग्रेजी संवत को सदैव के लिए भूल जाओ।“
मैंने चकित होकर पूछा, “ऐलन … माफ़ करना अनिल, हम सब तो अंग्रेजी ही बोलते हैं ना? हिंदी तो यहाँ हिंदी दिवस तक ही सीमित है।“ उसे मेरी बातें उलूल ज़लूल लग रही थीं। उसने आगे कहा, “एक बात बताओ यह दखल और माफ़ करना क्या है?”
मैंने उत्तर दिया, “उर्दू?”
उसने चकित भाव से पूछा, “यह क्या बला है!” उसने खीज कर कहा, “एक तो वैसे ही मैं पश्चाताप की अग्नि में जल रहा हूँ और तुम यहाँ विचित्र बातें कर रहे हो।“ इससे पहले कि मैं ‘क्यों’ पूछने का साहस करता, उसने कहा, “क्योंकि आज मेरे पुत्र का साक्षात्कार था। वह असफल रहा। उसकी असफलता का कारण यह बताया गया कि उसकी हिंदी में शुद्धता और प्रवाह नहीं है। घर आकर उसने स्वयं को कमरे में बंद कर लिया। मुझे भय है कि वह कोई अनुचित निर्णय न ले ले।“
मैंने दुःख जताया। इसके साथ ही हम कार्यालय पहुँच गए। वहाँ मैंने भीड़ को एक कर्मचारी पर हँसते हुए देखा। मैंने कहा, “यह तो केविन है पर यहाँ सभी लोग उस पर क्यों हँस रहे हैं?” अनिल ने मेरा शब्द ठीक किया, “उपहास’ कहो, अधिक प्रभावी लगेगा।“ उसने आगे कहा, “प्रायः लोग दूसरे की विवशता पर उसका उपहास करते हैं। उस व्यक्ति ‘कुंदन’ की यह समस्या रही कि उसने निर्धन मनुष्य के घर जन्म लिया और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई पूरी की। कक्षा पाँच के पश्चात तो उसे हिंदी में उसका नाम लिखना सिखाया गया। मुझे उससे सहानुभूति है। उसके पास हिंदी सीखने की उचित सुविधा नहीं थी। फिर भी उसने साहस के साथ स्वयं को सामाजिक नियमों के अन्तर्गत हिन्दी के समक्ष नतमस्तक किया। अंग्रेजी माध्यम पढ़े लोगों की समस्या यही होती है। उसके मुख पर भावों को ठीक से देखो। पहले वह मस्तिष्क में वाक्यों का हिंदी अनुवाद करेगा, फिर उत्तर देगा। यदि भूल से कोई अंग्रेजी शब्द वाक्य में आता है तो सर हिला कर ‘नहीं-नहीं’ कहते हिंदी शब्द को वाक्य में प्रस्तुत करेगा।“
मैंने विचलित होते हुए सोचा कि यह सत्य नहीं हो सकता। क्या मैं स्वप्न देख रहा हूँ? मैं तेजी से बाहर निकला और सड़क पर दौड़ कर इधर-उधर कुछ ढूँढने लगा। तभी किसी स्वान की कर्कश ध्वनि ने मुझे दाहिने ओर देखने को विवश किया। मैं चिल्लाया, “परिधान संग्रह … मैं पर्पल रंग देख सकता हूँ। इसका अर्थ यह है कि यह सपना नहीं है।“ अनिल ने अत्यंत कटु स्वर में चीखा, “अवध, यह अपराध है। ईश्वर की सौ, बैंगनी कहो।“
उस आवाज़ से मैं इतना व्याकुल हुआ कि मेरी आँखें खुल गयीं। समझने में तनिक देर नहीं लगी कि जो देखा था, वह स्वप्न मात्र था। मैं कमरे से बाहर निकलकर बरामदे में बैठ गया। वहाँ मेरी बहन चावल बीन रही थी। मैंने सोंठ जैसा मुँह बनाते हुए उससे पूछा, “तुमने तो कहा था स्वप्न में रंग नहीं दिखते!“ उसने उत्तर दिया, “रंग के बारे में मैं निश्चित नहीं थी पर यह तय है कि सपने में अंक नहीं पढ़े जा सकते।“
दावात्याग – यह कहानी पिछले हिन्दी दिवस पर दैनिक जागरण i-next की कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाकर अखबार में प्रकाशित हुई थी।