भोपाल, ब्यूरो। इंदौर में हुए हादसे में अब तक 36 लोगों की जान जा चुकी है। देश के सबसे स्वच्छ शहर में हुए इस हादसे ने प्रशासन पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ये मौतें अप्राकृतिक ही नहीं, प्रशासन के लचर और लापरवाह रवैये का भी नतीजा है। धर्म के नाम पर अवैध कब्जे, अवैध निर्माण, शासन-प्रशासन की लापरवाही, मंदिर ट्रस्ट का गैर जिम्मेदाराना रवैया, नगर निगम की हीलाहवाली ने शहर के सबसे बड़े हादसे को अंजाम दिया। पूरा शहर आज दुख में डूबा हुआ है। अब शासन प्रशासन जितनी सहायता, जिसने मुआवजे का ऐलान कर दे, लेकिन मौत का मुआवजा किसी हाल नहीं दिया जा सकता। हादसों को रोकने और घटने पर कम से कम नुकसान की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है..वो बाद में सिर्फ शोक जताते आश्वासन देते नजर आए तो समझ जाना चाहिए कि यहां जान की कीमत कुछ नहीं है।
रामनवमी का त्योहार जब लोग अपने इष्ट की भक्ति में डूबे थे। चुपके चुपके मौत उनकी ओर बढ़ रही थी। लेकिन ये कहानी की शुरूआत नहीं। ये मंदिर 60 साल पुराना बताया जाता है। और बावड़ी की कहानी शुरू होती है कुछ 20 से 25 साल पहले। यहां के पुराने रहवासी बताते हैं कि सिंधी कॉलोनी के पास स्नेहा नगर में सालों पहले एक बावड़ी थी। 20-25 साल पहले उसके ऊपर एक स्लैब डाल दिया गया। इसके बाद वो धीरे धीरे मंदिर का हिस्सा बन गया जो असल में पूरी तरह अवैध था। बावड़ी नीचे थी ढंकी हुई..लोगों को पता ही नहीं था कि वो जिस जगह बैठे हैं वहां 40-45 फीट नीचे मौत का गड्ढा है। रामनवमी के दिन जब श्रद्धालु बड़ी तादाद में वहां इकट्ठे हुए तो वो कमजोर छत टूट गई और लोग नीचे समा गए।इंदौर एक ऐसा शहर जिसे स्मार्ट सिटीज इंडिया अवार्ड में 2 अवार्ड मिले हैं। जहां पर्यटकों की संख्या में 136 प्रतिशत बढ़त दर्ज हुई है, उस शहर में जब एक मंदिर में करीब 60 लोग एक बावड़ी में समा जाते हैं तो उन्हें निकालने का ज़रिया होती हैं रस्सियां। जी हां..शुरूआत के सबसे संवेदनशील घंटे जब त्वरित रेस्क्यू की जरूरत थी और लोगों को बचाया जा सकता था..वहां बचाव कार्य रस्सियों के जरिए किया जा रहा था। पुलिस के पास कोई संसाधन ही नहीं थे। इस आपदा से निपटने के लिए। 7200 करोड़ रुपये के सालाना बजट वाली इंदौर नगर निगम और उसके गैरजिम्मेदाराना अधिकारियों ने समय रहते कोई कारगर कदम नहीं उठाया। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आर्मी को यहां पहुंचते पहुंचते देर शाम हो चुकी थी। अगर वो समय रहते पहुंच जाते तो कई जानें बचाई जा सकती थी।
लगातार डेवलप होते इंदौर में अधिकारियों, कर्मचारियों और तथाकथित कद्दावर नेताओं का पूरा ध्यान किसी ओर तरफ ही है। शहर के आउटर में विकसित होने वाली कॉलोनियों टाउनशिप पर भू-माफिया और इन अधिकारी-नेताओं की मिलीभगत का खेल चल रहा है। बाइपास, सुपर कॉरिडोर और नए नए निर्माणों में कई लोग चांदी काट रहे हैं। इसीलिए जब शहर के बीचोबीच इतना बड़ा हादसा होता है तो शासन प्रशासन राहत और बचाव में पूरी तरह फेल होता नजर आता है। वहां तक सहायता पहुंचाने में ही घंटों बीत जाते हैं। रस्सियों के सहारे जिंदगियां लटकी रहती हैं। सुरक्षा एजेंसियों को पहुंचने में जितना अधिक वक्त लगा..मौत का आंकड़ा उतना बढ़ता गया।
जैसी की रवायत है..घटना के बाद जांच के आदेश दे दिए गए हैं। मंदिर ट्रस्ट के कुछ लोगों को आरोपी बनाया गया है। लेकिन आरोप जड़ देने और मढ़ देने भर से किसी की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। सीएम शिवराज सिंह चौहान जब घटनास्थल पर पहुंचे तो अरसे बाद उन्हें लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा। मध्य प्रदेश के सबसे लोकप्रिय कहलाने वाले मुख्यमंत्री को लोगों की ‘हाय-हाय’ ‘मुर्दाबाद’ और ‘शेम-शेम’ के नारे सुनने को मिले। लोग इतने गुस्से से भरे थे कि उन्होने इस बार मुख्यमंत्री की किसी भी बात को सुनने से साफ इनकार कर दिया। अब सरकार इस मामले में संवेदना जता रही है, मुआवजे की घोषणा की है, जांच के आदेश भी दिए हैं..लेकिन जो अनहोनी घट गई उसके एवज़ में ये सब काफी है क्या ? सही समय पर सहायता नहीं मिलने के कारण ये इतने दुखद रूप में तब्दील हुआ। अगर समय रहते राहत बचाव दल अपनी मशीनरी के साथ पहुंच जाते तो कई जिंदगियां बचाई जा सकती थी। त्योहार का दिन मातम का दिन बन जाए इससे बड़ा दुख कोई नहीं। शासन प्रशासन अपने नागरिकों को सुरक्षित रखने में नाकाम हो जाए..इससे बड़ा खतरा कुछ नहीं।