लॉक डाउन के बीच गैस एजेंसी संचालक की अनुभव कथा
आज दिन के ग्यारह बजे अचानक मेरे मोबाइल पर कहीं से फोन आता है – स्मित भाई कमर्शियल सिलिंडर की ज़रूरत है। 1500 ज़रूरत मंद लोगों के लिए फूड पैकेट्स बनाना है। काम बंद हो जाएगा। तमाम डिलीवरी वाहन निकल चुके हैं। क्या करू?
मैंने बिना एक पल सोचे, आव देखा न ताव अपनी कार उठाई, अपने गोडाउन पहुंचा और एकमात्र मौजूद स्टाफ गोडाउन कीपर से दो कमर्शियल फिल्ड गाड़ी में रखवाए और निकल पड़ा पड़ाव कि तरफ़। पहुंचने पर डॉक्टर शैलेष लुणावत ने दो मीटर दूर से नमस्कार करते हुए मेरा स्वागत किया। मुझे देख कर प्रसन्नता, राहत, कृतार्थ होने जाने के भाव उनकी आंखो में स्पष्ट देखे जा सकते थे। चेहरे पर मास्क लगा होने से आंखे ही तो पड़ी जा सकती थी। भाव भी ऐसे, जैसे मैंने उनका व्यक्तिगत कोई बहुत बड़ा कार्य कर दिया हो। उन्होंने धन्यवाद की बौछार लगा दी। मैंने शर्मिंदा होकर कहा,डाक साहब ये तो मेरा फ़र्ज़ था।
इसके बाद उन्होंने मुझे किचन का मुआयना करवाया। करीब 1500 लोगों का खाना डॉक्टर साहब स्वयं बनवाते हैं। खाना देने भी खुद जाते हैं। सख्ती के साथ एक मीटर की दूरी का पालन करवाते हैं।
डॉक्टर लुणावत, भोपाल शहर के जाने-माने रेडियोलॉजिस्ट हैं। अपना खुद का सेंटर है, जिसमें सिटी स्कैन से लेकर अल्ट्रासाउंड एक्सरे सब कुछ है। लेकिन मानवता की पुकार पर, अपनी प्रतिष्ठा को कहीं दूर त्याग कर समर्पित भाव से दिन रात लगे हुए है। हालांकि ऐसा में और दो सेंटर में कर चुका हूं। परन्तु यहां कुछ अलग सा था। उन्होंने बताया, यह कार्य वो प्रथम दिन से अंतिम दिन तक सतत करते रहेंगे।
आप लोग सोच रहे होंगे कि ये सब मै आप लोगों से क्यों शेयर कर रहा हूं? एक बात कहूं जब मैं जा रहा था तो सोच रहा था कि मैं एक गैस एजेंसी का मालिक बहुत बड़ा काम कर रहा हूं। लेकिन मानवता के प्रति डॉक्टर शैलेष लुणावत का समर्पण देखा तो मुझे अपने विचारों बहुत छोटे लगे। मेरा अभिमान चूर चूर हो गया।
दरअसल देवताओं को हम मंदिर मस्जिद में खोजने जाते हैं, मगर वो तो हमारे आस पास ही कहीं है।
स्मित मेहता
रंगकर्मी
ममता गैस एजेंसी ,भोपाल