ये जोगी की मजबूत इच्छा शक्ति ही थी कि 17 साल व्हील चेयर पर रह कर भी वे राज्य की राजनीति के केंद्र में बने रहे.
कलेक्टर के तौर पर अजीत जोगी ने रायपुर में नियम बना रखा था कि घर में आने वाले फोन वे खुद उठाते थे और लोगों की बातें सुनते थे. ‘छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया जैसे नारे गढ़ने वाले जोगी, अफसर और नेता दोनों भूमिकाओं में हमेशा याद रखे जाएंगे. जोगी को याद कर रहे लेखक ने पत्रकार के तौर पर बतौर कलेक्टर काम करते देखा था और मुख्यमंत्री के रूप में भी.
अफसर के तौर पर दूरियां खत्म की
जब वे कलेक्टेर के तौर पर तौर पर रायपुर में नियुक्त हुए तो उस दौर में कलेक्टर का रुतबा अंग्रेजों की परंपरा वाला ही था. जिले के सबसे बड़े अफसर का ताम-झाम भी वैसा ही था. तमाम लाव लश्कर के अलावा कलेक्टर आवास पर फोन मिलाने पर फोन ड्यूटी वाला कोई आदमी फोन उठाता या फिर फिर अर्दली. कलेक्टर खुद फोन नहीं उठाते थे. अगर कलेक्टर साहेब का मन किया तो फोन पर बात करेंगे, नहीं तो फोन मिलाते रहिए. अजीत जोगी जब जिले में कलेक्टर हो कर आए तो उन्होंने खुद फोन उठाने का नियम बना लिया. फोन करने पर उधर से आवाज आती थी – “मैं जोगी बोल रहा हूं.”
कलेक्टर रहते लोगों से जुड़ेआम लोगों के लिए ये बड़ी बात थी. जोगी बहुत ही जल्दी लोगों से सीधे जुड़ गए. उनकी बातें सुन लेते और बहुत सी समस्याओं का समाधान बातें सुनने से ही हो जाता था. शाद इस संपर्क के कारण ही अजीत जोगी शहर के बहुत से जलसों में आने जाने लगे. पत्रकारों के लिए तो बहुत ही आसानी हो गई. जब भी फोन करो अगर जोगी जी घर में हैं तो बात हो जाती और पत्रकारों से उनकी नजदीकियां बढ़ने लगी. यहां तक कि वे पत्रकार संगठनों के कार्यक्रम में सक्रियता से शामिल होने लगे. शहर के खेल संगठनों से भी उनका जुड़ाव सीधा हो गया था. कई अवसर तो ऐसे आए जब इन संगठनों में किसी छोटे मोटे विवाद को उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करके निपटाया.
कलेक्टर जोगी का काम कोरोना के दौर में अफसरों के लिए प्रेरणा
उनकी रायपुर तैनाती के दौर में ही जिले में अकाल भी आया था. उस दौरान चलाए गए राहत कार्यों के लिए जोगी को न सिर्फ रायपुर में याद किया जाएगा, बल्कि उस दौर में उनका काम आज भी अफसरशाही के लिए एक मिसाल भी है. कलेक्टर के तौर पर जोगी ने सारे विभागों के तमाम बजट को लेकर अकाल राहत में लगा दिया. इसके लिए उनकी आलोचना भी हुई यहां तक कि जांच भी कराई गई. लेकिन जांच से जोगी बेदाग निकल आए. उन्होंने साबित किया कि किसी कुदरती आपदा के दौर में कलेक्टर जैसा अफसर कितना प्रभावी हो सकता है. आज कोरोना के दौर में अधिकारियों को उनसे सबक लेना चाहिए.
राजनीति में आना
राजीव गांधी सत्ता में आए तो उन्होंने एक प्रयोग किया. उन्होंने आल इंडिया सर्विस के कुछ अधिकारियों को राजनीति में लाने का प्रयास किया. मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर समेत कई अफसरों को चुना और उन्हें राजनीति में शामिल कर लिया. चूंकि जोगी लोकप्रियता के स्तर पर अलग पहचान थी. वे सहजता से राजनीति में आ गए. राज्य सभा के सदस्य भी बन गए. लेकिन सीधे जनता से जुड़ने की उनकी चाहत के कारण 1996 में लोकसभा चुनाव में उतर गए. एक बार हारे फिर अगली बार जीत गए. इस दौरान दिल्ली की मीडिया पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत हो गई. बहुत से लोगों ने उन्हें टेलीविजन पर पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर देखा होगा.
राज्य के पहले मुख्यमंत्री
जब मध्य प्रदेश से अलग हो कर छत्तीसगढ़ राज्य बना तो उस समय भी राज्य में दो बहुत कद्दावर नेता थे. विद्याचरण शुक्ल और श्यामाचरण शुक्ल. हालांकि ये कांग्रेस आलाकमान की पहली च्वाइस नहीं थे. इसका सीधा फायदा मिला अजीत जोगी को वे राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए. उनकी जिजविषा को भी सभी ने देखा है. भीषण एक्सीडेंट में मौत के मुंह से निकलने के बाद भी समझौता नहीं किया और जैसे अपनी शर्तों पर नौकरी की वैसे ही राजनीति भी की. 17 साल तक ह्वील चेयर से छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपरिहार्य बने रहे.
जोगी के नारे
जोगी की बोलने की कला के सभी कायल थे. शायद यही वजह थी कि लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर उन्होंन सफलता से काम किया. उनके गढ़े हुए नारे छत्तीसगढ़ में हमेशा दुहराए जाएंगे. उन्होंने बहुत ही सहज नारे गढ़े थे – ‘छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया’, ‘अमीर प्रदेश के गरीब लोग’. सहज लेकिन इन प्रभावी नारों की ही तरह अजीत जोगी भी अफसर और राजनीति दोनों भूमिकाओं के लिए हमेशा याद रखे जाएंगे.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं. जैसा उन्होंने फोन पर अजित जोगी को याद करते हुए बताया.)
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First published: May 29, 2020, 4:40 PM IST