Saturday, March 15, 2025
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स्वच्छता सर्वेक्षण में गया गुजरा बिहार – मंडली

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प्रधानमंत्री के प्रिय कार्यक्रमों में से एक ‘स्वच्छ भारत’ भारत सरकार का एक बेहतरीन कार्यक्रम है। सांकेतिक श्रमदान में प्रधानमंत्री की लगन भरी भाव भंगिमा इस कार्यक्रम से उनके लगाव की तीव्रता प्रदर्शित करती है। वहीं उनके कई कैबिनेट मंत्रियों से लेकर उनकी पार्टी के बड़े-छोटे अनेक नेताओं ने इसी तरह के श्रमदान को लिटरली मैनेज्ड इवेंट बनाया और अपनी भाव भंगिमा से ‘स्वच्छ भारत’ अभियान की स्वच्छता को डेंट किया। कहना ही होगा कि भाव-भंगिमा और पैशन का यही अन्तर किसी को लोकतंत्र में लोकप्रियता का ऐसा प्रकाशपुंज बना देता है कि शेष अपने राजनीतिक चिराग की रौशनी इसी प्रकाशपुंज से रिचार्ज के लिए उसके परजीवी हो जाते हैं।

कहते हैं कि भारत गाँवों में बसता है। गाँवों में भी स्वच्छता पर काम हुआ है लेकिन यह विडंबना है कि स्वच्छता सर्वे शहरों के लिए होते हैं। हो सकता है कि गाँवों को स्वच्छ मान लिया गया हो या यह मान लिया गया हो कि उन्हें स्वच्छ किया जाना आवश्यक नहीं या संभव नहीं या छह लाख से अधिक गाँवों का सर्वे बहुत कठिन कार्य हो। वैसे भी सर्व वाले शहरों में भी मिस्टर इंडिया की घड़ी पहने घूमते हैं, गाँवों में क्या दिखेंगे। यह सर्वे तो एप्प

में घुसकर हुआ है। यह भी हो सकता है कि इस बात को दिल पर ले लिया गया हो कि भारत गाँवों में भले ही बसता हो पर शहरों द्वारा शासित होता है। गाँव अनाज पैदा करते होंगे पर शहर नेरेटिव उपजाते हैं। गाँव मानव संसाधन देते होंगे पर शहर प्रबंधन का कौशल और तकनीक प्रदान करते हैं। गाँव से गुदड़ी के लाल निकलते होंगे पर शहर में ही वे हरे, पीले और नीले होते हैं। गाँव की धोती धूमिल होती है, शहर की टोपी चमकीली। गाँव से लोकाचार छलकता होगा पर उस लोकाचार का सुविधानुसार दोहन करने वाले टीवी और सिनेमा शहरों में हैं।

बहरहाल, स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 आ गया है। लगातार चौथी बार इन्दौर सबसे स्वच्छ शहर आँका गया है। इन्दौर और भोपाल को स्वच्छता सूची में देखकर पहले से ही फॉर्म में चल रहे मामा जी चौड़े हुए, “इन्दौर ने चौका मारा है, छक्का भी मारेगा।“ अब कम से कम अगले दो साल इन्दौर वाले गर्व से ललकारेंगे, “पड़े हो कौन से चक्कर में, कोई नहीं है टक्कर में।“

बिहार की राजधानी पटना स्वच्छता सर्वेक्षण में नंबर-1 है, नीचे से। गौतम बुद्ध ने प्राचीन नगरी पाटलिपुत्र के बारे में यह भविष्यवाणी की थी कि नगर को पानी, आग और अंतर्कलह से हमेशा खतरा रहेगा। अब इसमें चौथे खतरे के रूप में गंदगी भी जोड़ दी जानी चाहिए। स्वच्छ भारत में स्वच्छ बिहार की गाथा बस इतनी ही नहीं है। छोटे शहरों में सबसे कम स्वच्छ आँके गये दस शहरों में से छह बिहार के हैं। ये शहर बिहार हर हिस्से का प्रतिनिधित्व कर लेते हैं। गया से भी गये गुजरे अनेक शहर इन शहरों से इर्ष्या कर रहे होंगे, “हम कौन से दूध के धुले हैं जो सिर्फ इन्हें गंदा बताया जा रहा है।“

छोटे शहरों में सबसे कम स्वच्छ दस शहरों की सूची में गया नंबर एक पर है, उपर से। बुद्ध की नगरी का यह हाल बुद्धू बने गयावासी कर रहे हैं और देख रहे हैं। पूरे बिहार और देश के कई अन्य हिस्सों के लोग अपने पित्तरों का पिंडदान गया जी में करते हैं। ऐसा लगता है कि शहर वासियों और नागरिक प्रशासन ने स्वच्छता को भी गया जी में तिलांजलि दे दी है।

स्वच्छता सर्वेक्षण पर बिहार सरकार चुप है। मुख्यमंत्री जी वैसे भी कम ही बोलते हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि डिफेन्सिव हुए बिना साफ वह कह रहे हों, “हमने किस क्षेत्र में एक्सेल किया है जो स्वच्छता में करते। हमें जनता फिर मौका दे। स्वच्छता के समर्थन में हम पूरे बिहार में जोरदार मानव श्रंखला बनावाएँगे।” पटना स्थित लेखक के अस्तित्वहीन सूत्र बताते हैं कि उपमुख्यमंत्री लालू यादव व उनके पुत्रों से स्वच्छता पर प्रश्न करता ट्वीट करने के लिए कमर कस चुके हैं। उस ट्वीट को वह अखबार में छपवाएँगे और फिर अखबार की कतरन को ट्वीट करेंगे। हो सका तो पुन: कतरन वाले ट्वीट को किसी दूसरे अखबार में छपवा देंगे। यह क्रम तब तक चलता रहेगा जब तक अखबार या ट्विटर हाथ न उठा दें।

देश में स्मार्ट शहर बनाए जा रहे हैं। बिहार ने स्मार्ट नागरिक और स्मार्ट नागरिक संस्थान बनाए हैं। पूरे राज्य में स्वच्छ भारत के शौचालय बने हैं पर अनेक जिम्मेदार लोग आज भी खेतों की उर्वरा बढ़ाने का और पटरियों एवं सड़क के किनारों को सुन्दर और सुगंधित करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे। सरकार ने सुबह सवेरे की लोटा यात्रा रोकने की पहरेदारी पर शिक्षकों को कैमरे के साथ लगाया था पर नतीज हुआ वही ढाक के तीन पात। अपने घर की छतों से सड़क पर कूड़ा फेंकने वाले लोग इतने स्मार्ट होते है कि सिर पर कूड़े की अनचाही टोपी पहनने वाला यह नहीं समझ पाता कि टोपी किस तल्ले से फेंकी गयी है। बिहारी फिल्मी गानों को दिल पर न लेकर मलमल के कुर्ते को छींट से लाला लाल नहीं करते बल्कि पान और गुटखा की पीक से सड़क लाल कर देते हैं। राज्य का स्मार्ट नागरिक प्रशासन सड़कों पर कचरा पेटी इसलिए नहीं रखता कि कोई उसे कबाड़ में बेचकर खैनी का दाम न निकाल ले और खैनी खाकर सड़क गंदा करने लगे।

नागरिक सुविधाओं और सेवाओं का गुणवत्ता नागरिक भावनाओं के समानुपाती होती है। स्वच्छ भारत का अस्वच्छ बिहार मरी नगरपालिकाओं में सड़े प्रशासन की नगरीय अव्यवस्था पर एक बड़ा अंडरस्टेमेंट है। राज्य पर जनसंख्या का बोझ ऐसा है कि कोरोना काल में सोशल डिस्टैंसिंग की जगह देह से देह छिल रहे हैं। गाँव से ब्लॉक मुख्यालय, ब्लॉक मुख्यालय से जिला मुख्यालय, जिला मुख्यालय से राजधानी पटना, पटना से दिल्ली और दिल्ली से लंदन और न्यूयार्क जा बसने की अंधी होड़ नगरीय अव्यवस्था में उर्वरक का काम कर रहे हैं। योजनाहीनता को ही योजनाबद्धता समझने वाले नगरीय प्राधिकार इस अंधी होड़ में बाधक नहीं बनते। नगरपालिका को पहली बार नरकपालिका बिहार में ही कहा गया था। इसलिए यहाँ की नगरपालिकाएँ अपने उपनाम को सार्थक करती रहती हैं। परिणामस्वरूप बिहार में शहरीकरण की संकल्पना ही दोषपूर्ण हो गयी दिखती है।

स्वच्छता सर्वेक्षण में बिहार का फिसड्डी होना भले ही आम बिहारी मानस के लिए कोई बड़ा मुद्दा न हो लेकिन कुछ लोग चिन्तित हैं। उनमें से कुछ बिहार के अड़े, खड़े और पड़े राजनीतिक नेतृत्व और सड़े संस्थानों को देखकर इन शहरों को भी अपेक्षाकृत स्वच्छ मान लेते हैं। कुछ अत्यधिक चिन्तित लोग इसमें राजनीतिक अवयव खोजते हैं तो पक्ष उन्हें निराश करता है और विपक्ष भय पैदा करता है। स्वच्छता ही नहीं बल्कि शेष मुद्दों पर भी बिहार पक्ष की निराशा और विपक्ष के भय की काली रात काट रहा है। इस रात की भी सुबह होगी।




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