छत्तीसगढ़ के बीजापुर सुकमा इलाके में सुरक्षा बलों पर हुए हमले के पीछे किस तरह हिड़मा का नाम आ रहा है और हिड़मा कौन है, इस बारे में न्यूज़18 ने आपको विस्तार से खबरें दीं. अब जानिए कि करीब 45 साल की उम्र के बीच का यह खूंखार नक्सली आखिर क्यों अब तक शिंकजे में नहीं आ सका?
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पुलिस रिकॉर्ड में माड़वी हिड़मा का पुराना फोटो ही होने की खबरें रही हैं.
कैसे रहस्य रहा है हिड़मा?
पुलिस को अब तक पुख्ता तौर पर न के बराबर ही पता है कि हिड़मा दिखता कैसा है, उसका हुलिया क्या है, उसका बैकग्राउंड या उम्र क्या है! पुलिस के पास हिड़मा की कोई ताज़ा या साफ तस्वीर भी न होने की बात कही जाती है. बताया जाता है एक पुराना ब्लैक एंड व्हाइट फोटो पुलिस रिकॉर्ड में लंबे समय से रहा. फर्स्टपोस्ट के लेख में सूत्रों के अनुसार कहा गया :
हिड़मा के बारे में जो पता है, वो ये कि करीब 250 से 300 माओवादियों के ग्रुप को लीड करता है और वो अक्सर अपने पास AK 47 रखता है. हिड़मा के बारे में कई तरह की कहानियां सुनने को मिलती हैं. कोई कहता है कि वह 30 साल का भी नहीं है और कोई उसे 50 साल की उम्र के आसपास बताता है.
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देबब्रत घोष ने अपने लेख में आत्मसमर्पण करने वाले एक माओवादी से बातचीत के आधार पर लिखा कि हिड़मा की उम्र करीब 45 साल की है. इस लेख में बस्तर रेंज के आईजी विवेकानंद के हवाले से बताया गया :
छत्तीसगढ़ के एक दर्जन से ज़्यादा ज़िले नक्सलवाद की चपेट में गंभीर रूप से बताए जाते हैं.
क्यों बड़ी मछली है हिड़मा?
न्यूज़18 ने आपको बताया कि इस नक्सली लीडर पर 45 लाख रुपये का इनाम है. समझा जा सकता है कि हिड़मा कितनी अहमियत वाला नक्सली है. काफी आक्रामक माना जाने वाला हिड़मा बस्तर की बटालियन 1 में कमांडर भी बताया जाता है. संगठन में उसका कद इसलिए बढ़ा क्योंकि के सुदर्शन बढ़ती उम्र के चलते कई रोगों का शिकार कहा जाता है और महाराष्ट्र व छग बॉर्डर पर खास नेता एम वेणुगोपाल को हिड़मा जितना आक्रामक नहीं बताया जाता.
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यही नहीं, माओवादी सीपीआई की सेंट्रल कमेटी के 21 सदस्यों की सेहत खराब और उम्र ज़्यादा बताई जाती है. दंडकारण्य में नक्सलियों की बटालियन 2 के इनचार्ज रहे पी तिरुपति उर्फ देवजी के साथ हिड़मा का मुकाबला ज़रूर रहा. चूंकि हिड़मा को गुरिल्ला लड़ाइयों का मास्टर माना जाता है इसलिए वो सभी नेताओं के मुकाबले बाज़ी मार जाता है.
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इंटेलिजेंस एजेंसी के एक सूत्र के हवाले से रिपोर्ट कहती है कि रेड कॉरिडोर के मज़बूत गढ़ होने के बावजूद इस इलाके से कोई भी नक्सली नेता सेंट्रल कमेटी में शामिल नहीं रहा. इस सूत्र के मुताबिक हिड़मा के इस कमेटी में होने की बातें आई थीं, लेकिन वो पुष्ट नहीं रहीं. इस बार फिर नक्सली हमले में हिड़मा का नाम सामने आने से यह कयास तो है ही कि उसका कद और पावर संगठन में बढ़ चुका है.
खबरों की मानें तो सुरक्षा बल हिड़मा की तलाश में ही निकले थे, जब उन पर हमला हुआ.
कितने इल्ज़ाम हैं हिड़मा के सिर?
कथित तौर पर सुकमा के पूर्वती गांव से ताल्लुक रखने वाले हिड़मा का होल्ड बस्तर क्षेत्र में है, जो सुकमा से ही संगठन चलाता है, जो उसका गढ़ है. पुलिस और सुरक्षा बलों के सूत्रों की मानें तो 2010 में चिंतलनार माओवादी हमले के पीछे हिड़मा था, जिसमें 76 जवान मारे गए थे. 2013 में झिरम घाटी हमले में भी उसका नाम था, जिसमें छत्तीसगढ़ के कई टॉप कांग्रेस नेताओं की जान गई थी.
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इसके अलावा, 2017 के बुरकपाल में जो घात लगाकर नक्सली हमला हुआ था, उसके पीछे भी हिड़मा को ही मास्टरमाइंड बताया जाता है, जिसमें सीआपीएफ के 23 जवानों की जान गई थी. ज़ाहिर है कि हिड़मा जब तक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ता, छत्तीसगढ़ में घातक माओवादी हमलों का खतरा बना रहेगा.