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कोविड महामारी से दुनिया की साँसें एवरेस्ट-कन्याकुमारी हो रही हैं। वहीं मैं लॉकडाउन में अपने ही घर पर कभी फर्स्ट फ्लोर पर तो कभी ग्राऊंड फ्लोर के बीच योग कर रहा हूँ। कभी फेसबुक योग करता हूँ तो कभी ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप पर योगस्थ हो जाता हूँ। मुझे लगा कि यह मेरे ही साथ हो रहा है। पर जब मैंने इंटरनेट के माध्यम से महाभारत के संजय की तरह अपनी दृष्टि दूरी फेंकी, तो पता चला कि मेरे सरकार भी माईक्रो ब्लागिंग साइट्स पर ही योग कर रहे हैं। कहाँ पहले ऋषि-मुनि पर्वतों-पहाड़ों पर योग करते थे और आज हर कोई मोबाइल पर ही योगस्थः हुए जा रहा है।
योग करना अच्छा है। बाबा जी भी कहते हैं कि करो, योग करने से होता है। लेकिन कुछ अच्छा हो, तो अच्छा है। वरना फिर वहीं दाग अच्छे हैं। पर “अंडबंड योगासन” के दाग निकले नहीं, तो वह धब्बा अच्छा नहीं लगता है। वहीं ऐसे में महामारी से मेरी साँसें फुल रही हैं और जमाना है कि दनादन आनलाइन योग किये जा रहा है। कोई व्हाट्सएप पर न जाने कौन-कौन से योगासनों के वीडियों फॉरवर्ड कर रहा है। कुछ व्हाट्सएप समूह में ऐसे-ऐसे योगासन होते है कि आये दिन समूह से ‘लेफ्ट’ का ‘राइट’ विकल्प चुनना पड़ता है।
कुछ है कि ट्विटर पर टूलकिटनुमा योग कर रहे हैं। कहीं से फॉरवर्ड दिव्य ज्ञान आ रहा है। कहीं से सीधे गुप्त सूत्रनुमा खबर आ रही है। विपक्ष है कि आनलाइन योग से ही अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर रहा है। कुछ छद्म पाकशास्त्री भोजनालय में घुसपैठ कर चुके हैं। इस कारण जीभ आनलाईन लपलपा रही है। ऐसी आनलाइन योग मुद्राओं से प्रतिदिन मेरे जैसों की साँसें प्रातःकालीन योग से स्थिर तब तक ही रहती है जब तक कि ऑफलाइन रहो। जैसे ही ऑनलाइन हुए कि साँसें अलग ही तरह का योग करने लगती हैं। लॉकडाउन में ऐसा दोधारी योग कितना घातक है, यह स्वयं यमराज भी ठीक से जान ले तो पृथ्वीलोक तरफ झाँकें भी नहीं।
ऐसे ही अंडबंड योगासन की बहस में मेरे ‛सरकार’ कोरे ही उलझते रहते है। छोटे से छोटे आनलाइन योगी को “म्यूट, अनफॉलो व ब्लॉक” के विकल्प पता है। जब अभिव्यक्ति की होड़ में ऐसे सहज विकल्प उपलब्ध है तो फिर कड़ी निंदा के नाम पर शीर्षासन क्यों? “जब मुँह ढकने तक के लिए गाइडलाइन जारी है तो फिर खालिमाली मुँह खोलने जैसी चेतावनियों से क्या होना है।”
लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में मैंने भी भोलेपन में दो-चार बार आनलाइन ‛योग’ करने का प्रयास किया। फिर क्या था! आनलाईन योगीयों की कुछ ही कमेंट्स से मेरी साँसें फुलने लग गई। जैसे-तैसे श्रीमतिजी के द्वारा बनाए काढ़े को पीने पर व सासु माँ के कड़े निर्देशों के पालन से साँस में साँस आई। बच्चों के माध्यम से मेरे मोबाइल पर कब्जा कर लिया गया। कठोर निर्देशों के साथ चेतावनी दी गई कि अपनी साँसों की सलामती चाहते हो तो खबरदार, आनलाईन मत आना।
खैर, ‘यह भी बीत जाऐगा!’ का व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी फॉरवर्ड करते रहो और अपनी साँसों को ‛ऑल इज वेल-ऑल इज वेल’ के अंदाज़ में शांति से समझाते रहो। मित्रों, अब मेरी साँसें कह रही है कि उनके नियमित योग का समय हो गया है – योगस्थः कुरु कर्माणि।
लेखक – भूपेन्द्र भारतीय (@AdvBhupendraSP)