Saturday, December 28, 2024
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छत्तीसगढ़ी म पढ़व- पिंजरा के सुगना बोले- सगा आ हे पानी दे दे ओ दीदी

फूलकसिया नही ते पेंदियही लोटा म पानी दे के ‘ए लव पानी, गोड़ हाथ धो लव ‘ कहि के टूप-रूप पांव परथे. सगा ह थके मांदे गोड़ हाथ ल धो के जीव ल जुड़ाथे. कोनो मइके के सगा होगे ताहन का पूछबे, दीदी तो सबो काम बुता ल छोड़ के सेवा सटका म लग जथे. एक डाहर गोठियाते रही अऊ ओती चहा बर आगी ल सिपचाते रही. मान ले ददा आगे सगा त दीदी सबले पहिली पुछही ‘त दाई बने बने हे ददा ? ददा कथा -हव बेटी , तोर दाई तो बने बने हे फेर थोकिन माड़ी ह फूटगे रिहिस हे. ओ दिन ओहा कोठी ले बदाक ले गीर गे रिहिस हे. बेटी ह पूछथे – त जादा तो नइ लागे हे न ग ?, ददा बताथे-नही बेटी अभीन तो टन्नक होगे हे गांवे म इलाज पानी चलत हे. एकर पहिली मइके के जोराए मोटरी ल दे डरे रही-ए दे बेटी लइका मन बर तोर दाई ह रोटी पीठा जोरे हे ताहन फेर मिट्टू के दीदी ह अपन ददा ल चना होरा, मुर्रा नही ते लाई नास्ता म देथे. आज काल तो नास्ता म मिक्चर, बिस्कुट के जादा चलन होगे हे.

चहा पियत पियत सियान ह पूछथे त दमांद ह कहां गे हे ओ? बेटी ह कथे – अभीच्च ओह खेत डाहर गिस हे, धान बोवई चलत हे न, चलत हे. चाय-ऊ पी के सियान ह खेत डाहर चल देथे. उहां दमांद ह देखते भार ललक के अपन ससूर के पलागी करथे. हाल-चाल पूछे के बाद भूर्री ठऊर म ‘बइठे हे कहिके बइठार देथे. अपन बेटी दमांद मन ल खुशी-खुशी देख के खुश राहय.

खाए के बेरा होइस ताहन दमांद ह कथे ‘चलव हो घर डाहर ‘ कहिके अपन ससुर ल घर लेगथे. घर म जाते भार दू लोटा पानी निकाल के देथे -‘ए दे खाए बर पानी ‘ कही के. उंकर हाथ गोड़ के धोवत ले सरकी अउ पीढ़हा माढ़ जय रही. थारी म दार भात. दार म घींव. एक थरकुलिया म साग अउ कटोरी म चटनी परोसिस. झोर वाले साग म दार के जरूरत नइ परय. आजकाल तो ओन्हारी कमती होय ले दार ल सगा आथे उही दिन रंगोते ताहन आन दिन तो दरघोटनी ह टंगाए के टंगाए रही जथे. बटलोही ल देखत. पीढ़हा उपर पोरसाए साग भात ल लोटा के पानी ले हाथ के सहारा आचमन करके सबले पहिली धारी के कोर म भगवान ल जेंवा के अपन खाए के शुरूआत करथे. पीढ़हा खातिर पटनी के जरूरत परथे. वोइसे नेम के पीढ़हच्च बर लकड़ी नइ चिरवाए जाए. घर कुरिया उठाए के बखत कपाट, चौखट, पटान बर आरा मिल म लकड़ी के गोला ले पल्ला चिरवाए बर परथे.

कपाट चौखट ले बाचे खोचे पटनी के पीढ़हा बनाथे बढ़ई मन. पटनी ल पीढ़हा खातिर आरी म आयताकार काट के रोखी म रोखे बर परथे ताहन डिजाइन वाले खुरा बनाधे, कतको मन बिना डिजाइन वाले खुरा ले पीढ़हा संवाग लेथे. खुरा बनाए के बाद लोहा के खीला ले पटनी अउ पाया ल जोड़े के बाद पीढ़हा तैयार हो जथे. बइठइया-उठइया मन ल पीढ़हा देच बर परथे. कोनो बइठे बर पीढ़हा नइ देबे त ओमन केहे बर नइ बिसरय-‘फलानी घर बइठे बर गेन त बइठे बर पीढ़हा घलो नई दिस दई.’ घर म माइलोगन मन पीढ़हा म बइठ के निकियाथे, फूनथे त बूता ह जल्दी सरकथे अउ कनिहा पिराए घलो नही. इही समे कोनो बइठइया आगे ताहन देख इंकर चांटी-चांटी गोठियई ल. लोक जीवन में पीढ़हा के बिक्कट उपयोग होथे. लइका ल बइठार के नहवाए बर होवय चाहे बिहाव अउ पूजा पाठ बर पीढ़हा के गंज उपयोग होथे. बड़े ल पीढ़हा अऊ छोटे ल पीढूली केहे जाथे.

(दुर्गा प्रसाद पारकर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)

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