बीजेपी संसदीय दल और केंद्रीय चुनाव समिति में बुजुर्गों का दबदबा राज्यों में भी पुराने नेताओं को जगी पुनर्वास की उम्मीद
भोपाल।भारतीय जनता पार्टी के नवगठित संसदीय दल और केंद्रीय चुनाव समिति से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर किए जाने की जितनी चर्चा है, उससे कम चर्चा कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यरायण जटिया को इस समितियों में रखे जाने की भी है। जटिया और येदियुरप्पा जैसे कई नेता, जिन्होंने जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक के सफर में चना-चबेना खाकर पार्टी को शीर्ष पर पहुंचाने में योगदान दिया है उनके चेहरे अब कमल की तरह खिलते दिख रहे हैं। वजह है घर बिठा दिए गए या उसकी कगार पर पहुंचा दिए इन पुराने नेताओं को जटिया के पुनर्वास से उम्मीद की किरण दिखने लगी है।
संसदीय दल और केंद्रीय चुनाव समिति जैसे पार्टी के सर्वोच्च फोरम में एकबार फिर अनुभवी और उम्रदराज नेताओं को जगह देकर भाजपा आलाकमान ने न सिर्फ पार्टीजनों को चौंका दिया, बल्कि उनमें सम्मान के साथ पद की आस भी जगा दी है। भाजपा के 11 सदस्यीय संसदीय दल में जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन को नए अंदाज में साधने के साथ 70 साल के आसपास या उससे अधिक उम्र के पांच नेताओं को जगह दी गई है। इनमें 79 वर्षीय येदियुरप्पा सबसे उम्रदराज हैं तो 76 साल के जटिया भी हैं। सात बार के लोकसभा सदस्य और एक बार राज्यसभा में रह चुके जटिया एक तरह से मार्गदर्शक मंडल वाली रिटायर्ड लाइफ बिता रहे थे। उन्हें इस नियुक्ति की जानकारी तब मिली जब वे इंदौर में अपने जैसे भाजपा नेता सत्यनारायण सत्तन के पास बैठे थे। जटिया के जरिए संसदीय दल में मध्यप्रदेश से ही सदस्य रहे दलित वर्ग के थावरचंद गेहलोत के स्थान की पूर्ति हुई है। कर्नाटक में बीजेपी का कमल खिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और पार्टी की मांग पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने वाले लिंगायत समुदाय के येदियुरप्पा को लेने के पीछे उनका सियासी वजन तो है ही, उम्रदराज नेताओं में घर कर रहे उपेक्षा के भाव को समाप्त करना भी है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा पहले सिख नेता हैं, जिन्हें संसदीय बोर्ड में जगह मिली। वहीं असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के जरिए नार्थ ईस्ट को तवज्जो दी गई है। सुधा यादव को 1999 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने ही टिकट दिलाया था। तेलंगाना से आने वाले बीजेपी ओबीसी मोर्चा अध्यक्ष के. लक्ष्मण से लेकर राजस्थान के 70 वर्षीय ओम माथुर तक का केंद्रीय चुनाव समिति में आना बताता है कि पार्टी अब नए समीकरण साधते हुए बुजुर्ग हो रही पीढ़ी को महत्व देकर उनके आयुवर्ग के अनुभवी कार्यकर्ताओं को साधने का जतन कर रही है।
भाजपा ने इसके साथ ही लंबे समय से इन दोनों कमेटियों में रहे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटा दिया है। इसके पीछे मुख्य वजह पार्टी के इस सर्वोच्च मंच में किसी भी मुख्यमंत्री को न रखने की नीति मानी जा रही है। अकेले शिवराज के यहां होने से उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अन्य मुख्यमंत्रियों का दावा भी इन कमेटियों के लिए बन रहा था। अब भाजपा की ये सबसे महत्वपूर्ण समितियां मुख्यमंत्रीविहीन हो गई हैं। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि प्रत्याशी चयन के वक्त चुनाव समिति बैठक में संबंधित राज्य के प्रदेशाध्यक्ष और संगठन महामंत्री के साथ मुख्यमंत्री भी विशेष आमंत्रित होते हैं।
जामवाल का पेट बड़ा है…
भाजपा के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल का पार्टीजनों को दिया गया एक भरोसा इन दिनों मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चर्चा का विषय बना हुआ है। इन दोनों राज्यों के प्रभारी जामवाल ने अपनी पहली बैठक में ही पार्टीजनों से कहा कि वे खुल कर अपनी बात कह सकते हैं, मेरा (जामवाल) पेट बड़ा है। इसके जरिए जामवाल आगामी 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से पार्टी की नीचे तक की रीति-नीति समझना चाहते हैं। बताया जाता है कि उपेक्षित महसूस कर रहे कई पुराने नेता अब तक जामवाल से संपर्क साध चुके हैं।