- शिवराज सरकार संजोएगी आरएसएस संस्थापक की बचपन की यादें
- रामपायली का दौरा कर सीएम ने कैबिनेट में बताया डॉ हेडगेवार का योगदान
भोपाल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार बचपन से ही स्वतंत्रता सेनानी और भारत माता के सेवक थे। अभी तक यह बात उनकी जीवनी या उन पर लिखी गई कुछ पुस्तकों तक ही सीमित रही हो, लेकिन अब मध्यप्रदेश में डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले भी डॉ हेडगेवार को न सिर्फ पढ़ेंगे, बल्कि लोग उनके स्मारक पर जाकर देश और समाज के लिए दिए गए उनके योगदान को देख सकेंगे। हेडगेवार के जीवन के इस पक्ष को उभारने का काम तब हो रहा है, जब कांग्रेस बार-बार उन पर और आरएसएस की आजादी के आंदोलन में भूमिका पर सवाल उठा रही है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते स्वतंत्रता दिवस पर बालाघाट में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार का स्मारक बनाने की घोषणा कर बहुतों को चौंका दिया था। शिवराज सोमवार को बालाघाट जिले के रामपायली गांव में डॉ हेडगेवार के बचपन की यादों से जुड़े स्थलों को देखने गए थे। लौट कर कैबिनेट की बैठक में उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों से डॉ हेडगेवार और रामपायली की यादों को साझा किया और स्मारक बनाने के संकल्प को दोहराया।
शिवराज ने बताया कि कल बालाघाट जिले के रामपायली गया था, रामपायली में वे काकाजी के घर रहते थे। यहां से क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित गतिविधियों का संचालन करते थे। वो देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित करने का काम करते थे। शिवराज ने बताया कि 22 जून 1897 को जब डॉ हेडगेवार की उम्र लगभग 8-9 साल की थी, तब नागपुर में रानी विक्टोरिया की 60 वीं सालगिरह का कार्यक्रम हो रहा था। तब वहां मिली मिठाई फेंक कर आ गए थे। बड़े भाई ने पूछा कि केशव तुमने मिठाई क्यों नहीं खाई तो बालक केशव ने जवाब दिया कि भैया अंग्रेजो ने हमारे हिंदुस्तान, हमारे भोसले खानदान के खिलाफ काम किया है, हम इनके समारोह में कैसे हिस्सा ले सकते हैं और इनकी मिठाई कैसे खा सकते है। डॉ हेडगेवार ने स्कूल में वंदेमातरम गायन पर रोक संबंधी अंग्रेजों के सर्कुलर का उल्लंघन कर वंदेमातरम का गायन किया तो उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। मुख्यमंत्री ने डॉ हेडगेवार के 1910 में पढ़ाई करने के लिए कलकत्ता जाकर अनुशीलन समिति से जुड़ने, क्रांतिकारियों से मेलमिलाप और फिर कांग्रेस में सक्रिय होने से लेकर असहयोग आंदोलन तक उनकी भूमिका का जिक्र किया। उन्होने बताया कि डॉ हेडगेवार कलकत्ता से एमबीबीएस करने के बाद वर्ष 1914 के बाद और आरएसएस की स्थापना वर्ष 1925 के पूर्व एक लंबे कालखंड में रामपायली में रहकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की विभिन्न गतिविधियों को संचालित करते रहे।
हेगेवार की यह जीवनी किताबों से निकल कर रामपायली में आकार लेगी, यह कांग्रेस को रास नहीं आ रहा है। इससे पहले भी जब मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों के फाउंडेशन कोर्स में डॉ हेडगेवार और गुरू गोलवलकर सहित स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन को पढ़ाने का फैसला हुई था तब भी कांग्रेस ने ऐतराज जताया था। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कहा था- ‘देश में जबरन संघी विचारधारा को लागू करने का एक सुनियोजित एजेंडा है। जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां एजेंडा लागू करना चाहते हैं। अगर हेडगेवार को पढ़ा रहे हैं तो नाथूराम गोडसे को भी पढ़ाइये, जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की थी।‘
बालाघाट सांसद बिसेन ने संसद में उठाया था मामला
रामपायली में डॉ हेडगेवार का स्मारक बनाने का मामला बालाघाट के बीजेपी सांसद डॉ ढाल सिंह बिसेन ने संसद में उठाया था। उन्होंने प्रधानमंत्री को भी इसके लिए पत्र लिखा था। बिसेन ने बताया कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा रामपायली में डॉ हेडगेवार का स्मारक बनाने का निर्णय स्वागतयोग्य कदम है। उन्होंने बताया कि डॉ हेडगेवार का पुराना घर और उनका पूजास्थल विट्ठल रुकमई मंदिर आज भी है। यहीं डॉ हेडगेवार ने अंग्रेजों के खिलाफ नारियल बम फोड़कर उन्हें भागने को मजबूर कर दिया था।