भोपाल। इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janashtmi) दो दिन मनाई जा रही है। कहीं बुधवार को तो कहीं गुरुवार को मनाई जाएगी। जो लोग यह त्योहार मना रहे हैं, उनके लिए हम मुहुर्त (Janmashtmi Muhurt) लेकर आए हैं। हमसे बात करते हुए आचार्य सुनील तिवारी जी (Acharya Sunil Tiwari) ने बताया कि 7 सितंबर को 4 मुहूर्त हैं, वहीं, आज बुधवार को सर्वार्थसिद्धि मुहूर्त के साथ पांच राजयोग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। एक मुहुर्त दोपहर करीब 3.30 बजे शुरू हुआ, जबकि 7 सितंबर को यह करीब 4 बजे तक रहेगा। पंडित तिवारी बताते हैं कि श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की रात में हुआ था, इसलिए ज्योतिषियों और ग्रंथों का कहना है 6 को जन्माष्टमी मनाया जाना उचित रहेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि 7 तारीख को सूर्योदय के वक्त अष्टमी तिथि रहेगी, इसलिए उदया तिथि की परंपरा के मुताबिक ज्यादातर मंदिरों में इसी दिन जन्माष्टमी मनेगी। इस लिहाज से देश के ज्यादातर हिस्सों में 7 सितंबर को ही जन्माष्टमी मनाई जाएगी। अमूमन तौर पर कृष्ण जन्मोत्सव रात में मनाने की परंपरा है, लेकिन कुछ लोग रात में भगवान की पूजा नहीं कर पाते हैं। जिसके चलते दिनभर अष्टमी तिथि के दौरान शुभ मुहूर्त में कृष्ण पूजा कर सकते हैं। इसके लिए विद्वानों ने राहुकाल का ध्यान रखते हुए शुभ लग्न और चौघड़िया मुहूर्त बताए हैं। इस तरह 6 सितंबर को दिनभर में पूजा के लिए कुल 3 शुभ मुहूर्त रहेंगे। पंडित सुनील तिवारी ने बताया कि कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ। वृंदावन में उन्होंने बाल लीलाएं की और द्वारका के राजा बने और पुरी में भाई-बहन के साथ जगन्नाथ रूप में पूजे जाते हैं। जन्माष्टमी के ब्रह्म मुहूर्त से अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त तक व्रत करना चाहिए। इसके बाद अगले दिन रोहिणी नक्षत्र खत्म होने पर व्रत खोलने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। हालांकि कुछ लोग रात में 12 बजे के बाद ही व्रत पूरा कर देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। जानकारों का कहना है कि कोई भी व्रत अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख से नहीं बल्कि सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक रहता है। जो लोग व्रत कर रहे हैं वे उपवास में सेहत और स्थिति के हिसाब से फलों का जूस और सूखे मेवे लिए जा सकते हैं। दिन में थोड़ा फलाहार भी कर सकते हैं। शाम को पूजन के बाद राजगीरा, सिंघाड़ा या आलू से बनी चीजें खाई जा सकती हैं। आरती के बाद दूध पी सकते हैं।
इस तरह करें पूजा—पाठ
भगवान श्रीकृष्ण को आठ फूल और पत्ते पसंद हैं। जिनमें फूल: वैजयंती, कमल, मालती, गुलाब, गेंदा, केवड़ा, कनेर और मौलश्री (बकुल) जबकि पत्र: तुलसी, बिल्वपत्र, अपामार्ग, भृंगराज, मोरपंख, दूर्वा, कुशा और शमी हैं।