मुंबई, एजेंसी। पठान फिल्म में दिखाये गए वायरस ने चिंता पैदा कर दी है। फिल्म एक अहम सवाल भी उठाती है। वो सवाल है…रक्तबीज। फिल्म के स्टोरी प्लॉट का अहम हिस्सा है- रक्तबीज। यानी स्मॉल पॉक्स वायरस का सैंपल जिसे कहानी का विलेन हासिल करता है और फिर इस वायरस को जेनेटिकली ऐसे मॉडिफाई करता है कि इसका असर कई गुना तेज और खतरनाक हो जाता है। ये फिल्म देखकर ये सवाल दिमाग में जरूर उठता है कि क्या ऐसा वाकई में हो सकता है? जवाब आपको डरा सकता है। जी हां, ऐसा हो सकता है। सिर्फ स्मॉल पॉक्स ही नहीं, इंसान को इनफेक्ट करने वाले तमाम वायरस के सैंपल दुनिया भर की कई रिसर्च फेसिलिटी में रखे गए हैं। खास बात ये है कि इन्हें हासिल करना भी उतना मुश्किल और खतरनाक नहीं है, जितना फिल्म में रक्तबीज को हासिल करना था। सिर्फ ‘पठान’ ही नहीं, बॉलीवुड और हॉलीवुड की कई फिल्मों में वायरस के हमले को स्टोरी का हिस्सा बनाया गया है। ये कथानक काल्पनिक होते हैं, मगर फिर भी इन्हें इन्स्पायर करने वाली घटनाएं जरूर वास्तविक होती हैं। ‘पठान’ में वायरस को मॉडिफाई करने की कोशिश बहुत कुछ उन आरोपों से मिलती जुलती है जो कोरोना वायरस के मामल में चीन पर लगते रहे हैं। वहीं, जॉम्बी पर आधारित HBO की सीरीज ‘द लास्ट ऑफ अस’ एक असली फंगस पर आधारित है जो अपने शिकार को कंट्रोल करता है। अमेरिकी सीनेट कमेटी की एक रिपोर्ट पिछले साल पेश की गई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि चीन के वुहान में सार्स वायरस पर रिसर्च की जा रही थी। रिपोर्ट के मुताबिक वुहान की लैब में सार्स वायरस के ऐसे स्ट्रेन पर रिसर्च की जा रही थी जो इंसानों में ज्यादा तेजी से फैलता हो। इसके लिए युनान समेत कई जगहों से वायरस के सैंपल भी इकट्ठे किए गए थे। रिपोर्ट के मुताबिक वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी कई पश्चिमी इंस्टीट्यूट्स के साथ भी कोलैबोरेट करता था। मार्च 2018 में एक ऐसे ही रिसर्च कंसोर्टियम ने डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (DAPRA) से अनुदान के लिए अमेरिका में प्रेजेंटेशन दिया था। इस प्रेजेंटेशन में यह बात सामने आई थी कि वुहान के रिसर्चर्स जिस तरह के सार्स वायरस की तलाश कर रहे थे वो उन्हें प्रकृति में नहीं मिला था। ऐसे में वह सार्स के कुछ मौजूदा सैंपल्स को ही मॉडिफाई कर उसका असर देखना चाह रहे थे। DAPRA ने फंड देने से मना कर दिया था। रिपोर्ट में इस बात की आशंका जताई गई थी कि वुहान की लैब में सेफ्टी के पुख्ता इंतजाम न होने की वजह से वायरस लीक हो गया और कोरोना यानी सार्सकोव-2 का कहर पूरी दुनिया पर बरसा। ‘पठान’ में जिस तरह से वायरस को मॉडिफाई करने की बात दिखाई गई है, वह पूरी तरह गैर-वैज्ञानिक नहीं है। मगर फिल्मी कहानी हकीकत नहीं बन सकती क्योंकि एक वायरस को मॉडिफाई करने का काम कुछ दिनों में संभव नहीं है। इसमें सालों की मेहनत और रिसर्च लगती है। सिर्फ यही नहीं, एक वायरस को अपनी मर्जी के मुताबिक मॉडिफाई कर पाना भी संभव नहीं है। वैज्ञानिक वायरस के प्रोटीन्स और रिसेप्टर्स को बदलकर ये देखते हैं कि इसका असर कैसे बदलता है। मगर जरूरी नहीं कि हर बार ये बदलाव उनकी इच्छा या सोच के मुताबिक ही हो। कॉर्डिसेप्स फैमिली के फंगस कीड़ों के शरीर को पूरी तरह कंट्रोल करते हैं। उनकी मदद से दूसरे कीड़ों में फैलते हैं। अंत में फंगस की होस्ट बॉडी अंदर से पूरी तरह खा जाते हैं। OTT प्लेटफॉर्म HBO मैक्स पर दिखाई जा रही वेब सीरीज ‘द लास्ट ऑफ अस’ को बेस्ट हॉरर शो कहा जा रहा है। इस सीरीज की कहानी के मुताबिक पूरी दुनिया एक जॉम्बी पैन्डेमिक का शिकार हो रही है। खास बात ये है कि ये पैन्डेमिक किसी वायरस की वजह से नहीं, बल्कि एक फंगस की वजह से हो रहा है। चौंकाने वाली बात ये है कि ये कहानी किसी काल्पनिक फंगस पर आधारित नहीं है। ये फंगस आज भी हमारे बीच मौजूद है। दुनिया के कई हिस्सों में कुछ फंगस पाए जाते हैं जिन्हें कॉर्डिसेप्स और ओफियोकॉर्डिसेप्स कहा जाता है। ये फंगस चींटियों या ऐसे ही छोटे कीड़ों को इनफेक्ट कर उनके शरीर में घुस जाते हैं। इसके बाद वे उनके दिमाग तक पहुंचकर उनका पूरा शरीर कंट्रोल करने लगते हैं। ये फंगस अपने होस्ट के शरीर को अंदर से खाते रहते हैं, मगर सिर्फ इतना कि वे जिंदा रहें। होस्ट किसी जॉम्बी की तरह चलता-फिरता है। फंगस इनके जरिये दूसरे होस्ट तक फैलते रहता है।