- सिर्फ राजसी वैभव नहीं, संघर्ष का प्रतीक बनीं राजमाता देवेंद्र कुमारी
- अपने संघर्ष से लोगों के बीच पहचान बनाई, जनता के बीच रहीं; उनका मर्म समझा
Dainik Bhaskar
Feb 11, 2020, 04:55 AM IST
अंबिकापुर . देवेंद्र कुमारी सिंहदेव… सरगुजा के लोगों के लिए यह सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि विरासत है। एक ऐसी शख्सियत जिसने राजसी वैभव नहीं, अपने संघर्ष से लोगों के बीच पहचान बनाई। जनता के बीच रहीं, उनका मर्म समझा, हर वक्त जरूरत पर मजबूती से खड़ी रहीं। यही वजह बनी कि देवेंद्र कुमारी के लिए राजमाता की पदवी सिर्फ पुरखाें से मिली पहचान-भर नहीं रह गई, उन्होंने इस जिम्मेदारी को निभाया और पूरे सरगुजा की “माता’ बनीं, यहां की जनता के दिलों पर “राज’ किया।
1966 में अपने ससुर महाराजा अंबिकेश्वर शरण सिंहदेव के निधन के बाद उन्होंने सरगुजा की राजनीतिक विरासत संभाली। यह बड़ी जिम्मेदारी थी। क्योंकि उन्हें राजपरिवार की मुखिया के तौर पर सामाजिक दायित्व भी निभाना था। इसके अलावा कांग्रेस की जड़ों को संभालना और सींचना था। पति आईएएस अफसर एमएस सिंहदेव मध्यप्रदेश में शीर्ष पद पर थे। लिहाजा उनका क्षेत्र को समय देना मुश्किल होता था। ऐसे में इस जिम्मेदारी को देवेंद्र कुमारी ने सिर्फ उठाया ही नहीं, बल्कि जीवनभर निभाया भी। उन्होंने इलाकों में दौरे शुरू किए, गांव-गांव गईं। मजबूत संगठन तैयार किया। एक समय ऐसा आया कि उन्होंने पार्टी के लिए इतनी मजबूत जमीन तैयार कर दी, जिसकी प्रशंसा उनके आलोचक भी करने लगे।
राजमाता देवेंद्र कुमारी संघर्ष की प्रतीक भी बनीं। 1971 में इंदिरा गांधी ने उन्हें सरगुजा लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी बाबूनाथ सिंह भारी मतों से विजयी रहे। अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी के मंत्रिमंडल में वे आवास पर्यावरण मंत्री रहीं। वहीं मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में सिंचाई और मत्स्य मंत्री के रूप में काम किया।
मेरी शिराओं में जीवित रहेंगे आपके संस्कार
जिनके आंचल से दुनिया को समझना सीखा। जिनके वात्सल्य का मेरा रोम-रोम ऋणी है। आज मेरी वो मां राजमाता देवेंद्र कुमारी सिंहदेव जी मुझसे बहुत दूर चलीं गयीं। आपके संस्कार सदैव मेरी शिराओं में जीवित रहेंगे। अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
पुलिस की लाठी भी खाई, टूटा था हाथ
देवेंद्र कुमारी सिंहदेव की पहचान जुझारू व संघर्षशील नेता के रूप में रही है। उन्होंने कांग्रेस के कई आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1977-78 में इंदिरा गांधी के जेल जाने के बाद शुरू हुए जेल भरो आंदोलन के दौरान उनके नेतृत्व को लोग आज भी याद करते हैं। एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज में उनका हाथ टूट गया।
1948 में सरगुजा आई थीं जुगल रियासत की राजकुमारी
देवेंद्र कुमारी सिंहदेव का विवाह 1948 में सरगुजा रियासत के राजकुमार एमएस सिंहदेव से हुआ था। हिमाचल प्रदेश के जुगल रियासत की थीं राजकुमारी देवेंद्र कुमारी का जन्म 13 जुलाई 1933 को हुआ था। इनके पिता राजा दिग्विजय सिंह पंडित जवाहरलाल नेहरू के निजी सचिव थे।
जिले में रहें या बाहर, नहीं टूटता था संपर्क
अविभाजित सरगुजा में कांग्रेस की राजनीति का सरगुजा राजपरिवार आधार स्तंभ रहा है। देवेंद्र कुमारी चाहे सरगुजा मंे रहें, देश के किसी दूसरे कोने में हों या चाहे विदेश में ही क्यों न रहें, अपनी जमीन से उनका संपर्क कभी नहीं टूटता था। सीमित संचार माध्यम के बावजूद वह हर क्षेत्र की गतिविधि से जुड़ी रहती थीं।
स्तब्ध हूं, हमेशा मातृवत स्नेह मिला : बघेल
स्वास्थ्य मंत्री टीएस बाबा की माता, देवेंद्र कुमारी सिंहदेव के निधन पर सीएम भूपेश बघेल, स्पीकर चरणदास महंत, सभी केबिनेट मंत्री, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने गहरा दुख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की है। राज्यपाल अनुसुइया उइके, पूर्व सीएम अजीत जोगी, डॉ. रमन सिंह, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी शोक जताया है। उनके निधन पर सांसद मोतीलाल वोरा, छाया वर्मा, ज्योत्सना महंत, धनेंद्र साहू, सत्यनारायण शर्मा, गिरीश देवांगन, शैलेश नितिन त्रिवेदी राजेन्द्र तिवारी, रमेश वल्र्यानी, किरणमयी नायक, दीपक कुमार दुबे, ज्ञानेश शर्मा, आरपी सिंह, राजेश बिस्सा, राजेन्द्र सिंह परिहार, सुरेन्द्र शर्मा, सुशील आनंद शुक्ला, घनश्याम राजू तिवारी, मो. असलम, एमए इकबाल, धनंजय सिंह ठाकुर, आलोक दुबे, ने श्रद्धांजलि अर्पित की है।
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