ग्राम कन्हारपुरी में चल रहे भागवत कथा में पंडित निरंजन महाराज ने प्रहलाद चरित्र की कथा सुनाते हुए कहा कि जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं, जिसका हमें अंदेशा भी नहीं होता है। हमें हर बुराई से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। मनुष्य रूप में जन्म लेना सबसे बड़ी उपलब्धि है।
उन्होंने बताया कि राजा बलि को यह अभिमान था कि उसके बराबर समर्थ इस संसार में कोई नहीं है। भगवान ने राजा बलि का अभिमान चूर करने के लिए वामन का रूप धारण किया और भिक्षा मांगने राजा बलि के पास पहुंच गए। अभिमान से चूर राजा ने वामन को उसकी इच्छानुसार दक्षिणा देने का वचन दिया। वामन रूपी भगवान ने राजा से दान में तीन पग भूमि मांगी। राजा वामन का छोटा स्वरूप देख हंसा और तीन पग धरती नापने को कहा इसके बाद भगवान ने विराट रूप धारण कर एक पग में धरती आकाश दूसरे पग में पाताल नाप लिया और राजा से अपना तीसरा पग रखने के लिए स्थान मांगा। प्रभु का विराट रूप देख राजा का घमंड टूट गया और वह दोनों हाथ जोड़कर प्रभु के आगे नतमस्तक होकर बैठ गया। ध्रुव चरित्र का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि, भगवान अपने भक्तों के उद्धार के लिए समय- समय पर अवतार लेते हैं, ध्रुव जी को भगवान ने महज 6 वर्ष की अल्पायु में ही दर्शन दिए क्योंकि उनकी भक्ति प्रबुद्ध थी।
भक्तों के उद्धार के लिए भगवान उनका ज्ञान, आयु, धन, प्रभाव नहीं देखते बल्कि उनका मन देखते हैं, उनका निश्चल प्रेम देखते हैं। जड़ भरत चरित्र का विस्तार के साथ वर्णन महाराज ने किया।
तार्रीभरदा. कन्हारपुरी में प्रवचन सुनने उपस्थित लोग।
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