शनिवार को ग्राम कन्हारपुरी श्रीमद् भागवत कथा शुरू हुई। पहले दिन कलश शोभायात्रा निकाली गई। इसके बाद भागवत स्थापना की गई। भगवताचार्य पंडित निरंजन देव महाराज ने बताया कि भागवत कथा सुनने से मनुष्य को मोक्ष मिलता है। लोगों को इसे जरूर सुनना चाहिए। यह दुख को हरने वाला होता है।
उन्होंने कहा कि जब मनुष्य को कई जन्मों का पुण्य एक साथ मिलता है तो भागवत कथा कराने या सुनने का मौका प्राप्त होता है। भक्ति की कोई उम्र नहीं होती। हर उम्र में भक्ति की जा सकती है। कथावाचक ने गोकर्ण व शुकदेव आगमन का प्रसंग विस्तार से सुनाया। उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा और गुरु के प्रसाद से भागवत कथा के श्रवण एवं भागवत पुरुषों के चरित सुनने को मिलते हैं। भागवत माहात्म्य बताते हुए कहा कि ब्रह्मा जी ने अपने मानसपुत्र से चतुश्लोकी भागवत कही थी। जिसे नारद-सनकादि ऋषियाें की वार्ता में विस्तार मिला। उन्होंने कहा कि निगम रुपी कल्पतरु का यह पका हुआ फल है। जिसके रस को शुकदेव ने राजा परीक्षित को पान कराया। उन्हाेंने आत्मदेव की कथा सुनाई। जिसमें गोकर्ण ने प्रेत योनि को प्राप्त हुए अपने भाई धुंधुकारी को सुनाकर उसका उद्धार किया।
उन्हाेंने कहा कि द्वापर के अंत में अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित अंतिम राजा रहे। जिन्हें प्यास लगने पर एक ऋषि की अवहेलना कर दी। जिससे ऋषि पुत्र ने कुपित होकर तक्षक नाग से डंसने का शाप दे दिया।