Monday, February 3, 2025
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Congress Double Stand Politics On Triple Talaq Has Exposed Its Hypocricy That Might Hurt Its Vote Share In Loksabha Elections 2019 Tk | कांग्रेस की दोमुंही राजनीति, पार्टी के भीतर अंतरविरोध लोकसभा चुनाव से पहले कहीं भारी न पड़ जाए?



राहुल गांधी के सामने कांग्रेस की ऑल इंडिया महिला मोर्चा की अध्यक्षा सुष्मिता देव ने ये बयान दिया कि कांग्रेस 2019 में सत्ता में आई तो मोदी सरकार की ओर से बनाए गए ट्रिपल तलाक कानून को खत्म कर देगी. सुष्मिता देव यह भी कह रहीं थी कि कानून में मुस्लिम आदमी को तीन साल के लिए जेल भेजने का प्रावधान गलत है लेकिन उनकी पार्टी इस क्लॉज को बदलने की बजाय कानून को ही खत्म कर देगी.

दिलचस्प बात यह है कि इसी सभा में सुष्मिता देव नारी सशक्तिकरण पर बोलते हुए कहती हैं कि कोई भी पार्टी नारी सशक्तिकरण के लिए कानून बनाएगा उसका समर्थन उनकी पार्टी जरूर करेगी.

ध्यान रहे कांग्रेस पार्टी एक ही मीटिंग में विरोधाभासी बयान देकर अपने को एक्सपोज कर रही थी और ये सब हो रहा था पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में. हाल-फिलहाल में कई मुद्दों पर कांग्रेस के स्टैंड को परखें तो पार्टी की दोमुंही और ढुलमुल रणनीति उसे बुरी तरह एक्सपोज करती रही है.

लैंगिक समानता के नाम पर सबरीमाला में वयस्क महिलाओं की एंट्री का समर्थन करने वाली कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व तीन तलाक मुद्दे पर कानून खत्म करने की बात कर लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकार के लिए आगे बढ़कर लड़ने वाली पार्टी अपने को कैसे करार देगी ये समझ से परे है.

इतना ही नहीं, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी कांग्रेस का स्टैंड उसे पूरी तरह एक्सपोज कर रहा है. मनमोहन सिंह की सरकार में जब घोटालों का पर्दाफाश हो रहा था तो कांग्रेस का ये इंप्रेशन की राहुल गांधी जो कांग्रेस के भविष्य हैं, उन्हें भ्रष्टाचार कतई पसंद नहीं है. कमाल की बात यह थी कि राहुल गांधी ने कैबिनेट की ओर से तैयार किए गए एक मसौदे को प्रेस के सामने फाड़ दिया था. दरअसल कैबिनेट के उस ऑर्डिनेंस के जरिए लालू प्रसाद को चुनाव लड़ने से रोकने वाले कोर्ट के फैसले को बदलना था.

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस युवराज के इस कृत्य को यह कहकर प्रचारित कर रही थी कि युवराज (राहुल गांधी) जो कांग्रेस के भविष्य हैं उन्हें भ्रष्टाचार बिल्कुल नापसंद है.

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फिर युवराज महाराज बने, परंतु पार्टी के फैसले में कोई परिवर्तन नहीं आया. बिहार में लालू के साथ स्थायी गठबंधन तो दूसरी तरफ, बंगाल में अपनी ही पार्टी की राज्य इकाई का विरोध कर सारधा घोटाले और कई चिटफंड घोटाले में फंसे आरोपियों के समर्थन में खड़े होकर कांग्रेस लगातार दोमुंही राजनीति कर रही है. इसका खामियाजा देर-सवेर उसे भुगतना ही पड़ेगा.

शाहबानो केस में सुप्रीमकोर्ट के फैसले को बदलना कांग्रेस को पड़ा था भारी

1985 में शाहबानो को इंसाफ कोर्ट से मिला. लेकिन, मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे राजीव सरकार नतमस्तक हो गई. कहा जाता है कि नरसिंहा राव और अर्जुन सिंह ने राजीव गांधी को सलाह दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा नहीं गया तो अल्पसंख्यक समुदाय नाराज हो जाएगा.

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास लोकसभा में प्रचंड बहुमत था और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर वो वोंट बैंक साथ रख पाने में कामयाब रहेंगे इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया. कांग्रेस के इस फैसले के बाद राजीव सरकार की खूब किरकिरी हुई और उनकी लोकप्रियता का ग्राफ उतनी ही तेजी से गिरता चला गया.

Zail Singh-Rajiv Gandhi

(फोटो: फेसबुक से साभार)

राजीव गांधी के मंत्रिमंडल एक सदस्य के मुताबिक अयोध्या में ताला खुलवाकर और 1989 के लोकसभा चुनाव का कैंपेन वहां से शुरू कर हिंदु समुदाय को रिझाने की कोशिश की गई थी और आजादी के बाद साफ तौर पर कम्यूनल पॉलिटिक्स यहीं से शुरू हुई है.

कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 90 के दशक से सत्ता से कोसों दूर है और उसका परंपरागत वोट उसके हाथों से निकलकर दूसरे दलों के पास शिफ्ट कर चुका है.

वैसे कांग्रेस केंद्र में साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सत्ता में वापस लौटी, लेकिन, हिंदी बेल्ट में कांग्रेस की हालत साल-दर-साल खराब ही होती गई है. साल 2004 और साल 2009 में केंद्र में सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस कई राज्यों में सत्ता से सालों दूर रही है. उन इलाकों में जहां कांग्रेस के विरोध करने की ताकत दूर-दूर तक विरोधियों में नहीं होती थी, वहां कांग्रेस का नाम लेने वाला अब नजर नहीं आता है. बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों में कांग्रेस 90 के दशक से ही सत्ता से वंचित है. वहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में सत्ता का स्वाद तीन विधानसभा चुनाव के बाद ही चख पाई है.

29 साल बाद बिहार के पटना के गांधी मैदान में रैली कर रही कांग्रेस को भीड़ जुटाने के लिए कई बाहुबलियों का सहारा लेना पड़ा क्योंकि उनके अपने नेता भीड़ जुटा पाने में सक्षम नहीं थे. सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में जहां कांग्रेस की तूती बोलती थी वहां रायबरेली और अमेठी में भी कांग्रेस की जीत अपने दम पर सुनिश्चित है इसका दावा नहीं किया जा सकता है.

तीन तलाक कानून खत्म करने के पीछे क्या है राजनीति?

शाहबानो प्रकरण के बाद लोकप्रियता की कसौटी पर नीचे जा रही कांग्रेस एक बार फिर एकबार में तीन तालाक कानून को खत्म करने के पीछे क्यूं पड़ी है इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर ही समझा जा सकता है. वैसे कांग्रेस के अंदर ही इस मुद्दे पर दो स्वर सुनाई पड़ रहा है.

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एक तरफ कांग्रेस महिला मोर्चा की अध्यक्षा सुष्मिता देव तीन तलाक कानून को खत्म करने की वकालत कर रही हैं, वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला इंस्टेंट तीन तालाक में पति को जेल भेजे जाने को लेकर बदलाव की मांग कर रहे हैं. सुरजेवाला परिवार की देख -रेख किस तरह की जाएगी इस पर सरकार को ध्यान देने की बात कह रहे हैं. लेकिन सुरजेवाला कहते हैं कि आधुनिक और सभ्य समाज में इंस्टेंट तीन तलाक के लिए कोई जगह नहीं हैं ऐसा वो और उनकी पार्टी मानती है.

कांग्रेस की इस दो-मुंही बात पर चुटकी लेते हुए सीपीएम नेता बृंदा करात कहती हैं कि कांग्रेस तीन तलाक मुद्दे पर कंफ्यूज है. पहले कांग्रेस तय करे कि बीजेपी द्वारा लाया गया कानून वो खत्म करेंगे या फिर लाए गए कानून के किसी क्लॉज में अमेंडमेंट (बदलाव) करेंगे. बृंदा करात तीन तलाक पर लाए गए कानून पर विरोध जताते हुए कहा कि तलाक को लेकर देश में पहले से कानून है और लोगों में उसको लेकर जागरूकता फैलानी चाहिए.

कांग्रेस के तीन तलाक पर आए बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कांग्रेस को जमकर लताड़ा है. प्रधानमंत्री ने कहा कि नारी सशक्तिकरण की बात करने वाली कांग्रेस ने अपना असली चेहरा दिखा दिया है. कांग्रेस तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है और उसे मुस्लिम माताओं और बहनों का शोषण मंजूर है.

Triple Talaq Bill protest

वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस पर प्रहार करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में निकाह हलाला के दो उदाहरण जो मीडिया में प्रमुखता से छपी हैं वो बेहद शर्मनाक हैं. उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में महिलाओं की गरिमा का घोर उल्लंघन होने पर सबका सिर शर्म से झुकना चाहिए.

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अरुण जेटली ने याद दिलाया कि शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलकर राजीव गांधी ने एक छाप छोड़ देने वाली गलती की थी और 32 साल बाद उनके सुपुत्र और उनकी मंडली पतन की ओर जाने वाला कदम उठाने की बात कर रहे हैं जो मुस्लिम महिलाओं को केवल गरीबी की ओर ही नहीं बल्कि मानवता के अधिकारों से भी दूर ले जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट में तलाक–विद्दत के खिलाफ जंग छेड़ने वाली फरहा फैज फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत करते हुए कहती हैं कि ‘तीन तलाक बिल अभी राज्यसभा में अटका पड़ा है और जब तक वहां से पास नहीं होता वो कानून का शक्ल अख्तियार कर नहीं सकता है. पहले कानून तो बन जाए फिर वो इसे खत्म करने की बात करें तो बात समझ में आती है लेकिन कांग्रेस मुस्लिम समाज को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही है. इसके लिए वो कुछ कट्टरपंथियों के हाथों खेलती रही है.’

फरहा फैज कहती हैं कि नारी सशक्तीकरण का चैंपियन होने का दावा करने वाली कांग्रेस तीन तलाक पर ऐसा बयान देकर पूरी तरह एक्सपोज हो चुकी है और इसका खामियाजा उसे आगामी लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा.

कांग्रेस को अभी भी लगता है मुस्लिम समाज में औरतें आज भी खुलकर बोल नहीं सकतीं और उन्हें स्वतंत्र विचार रखने की आजादी नहीं है. इसलिए वो मुस्लिम समाज का वोट ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड और कट्टरपंथी उलेमाओं को खुश कर वोट हथियाने में कामयाब रहेगी. इसलिए कांग्रेस दोमुंही बात कर रही है.

नारी सशक्तिकरण पर दोमुंही बात क्यों कर रही है कांग्रेस?

कांग्रेस के अल्पसंख्यक मोर्चे की मीटिंग में तीन तलाक कानून को खत्म करने की बात कहते हुए सुष्मिता देव ने कहा कि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम मर्दों के खिलाफ लड़ाने में लगी हैं. वहीं वो नारी सशक्तिकरण मुद्दे पर कहती हैं कि किसी भी पार्टी की ओर से कानून बनाया गया तो कांग्रेस उसका समर्थन करेगी. जाहिर है इंस्टेंट तीन तलाक के खिलाफ बने कानून को खत्म करने की बात करने वाली कांग्रेस के मुंह से नारी सशक्तिकरण के मुद्दे पर समर्थन देने की बात करना बेमानी है.

नारी सशक्तिकरण को सपोर्ट कर वो एक तरफ अपना उदारपंथी चेहरा सामने ला रही है. वहीं तीन तलाक पर बन रहे कानून पर सांप्रदायिक रंग चढ़ाकर उसका विरोध कर रही है, ताकि उदारपंथी चेहरा बेनकाब न हो. वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों का हितैषी बनकर उनके वोटों का ध्रुवीकरण कर एकमुश्त वोट हथियाने में कामयाबी मिल सके.

कांग्रेस की ढुलमुल रणनीति और डबल स्टैंड के क्या हैं मायने?

नारी सशक्तिकरण की बात करने वाली कांग्रेस अगर इंस्टेंट तीन तलाक कानून को खत्म करने की बात करती है तो उसकी बातों को गंभीरता से लेना जागरुक जनता के लिए मुश्किल होगा. इंस्टेंट तीन तलाक और पॉलीगेमी जैसे अहम मुद्दे पर प्रोग्रेसिव सोच नहीं रखने पर किसी भी पार्टी को उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

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सबरीमाला के मुद्दे पर भी कांग्रेस की रणनीति व्यापक तौर पर भ्रामक रही है. कहा जाता है कि कांग्रेस हाईकमान ने केरल कांग्रेस की राज्य इकाई से कहा कि राज्य में वो लोकल सेंटीमेंट के हिसाब से काम करें लेकिन केंद्र में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने से दूर रहे क्योंकि कांग्रेस लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकार के लिए जानी जाती रही है.

केरल की कांग्रेस इकाई और कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का विरोधाभासी बयान केरल कांग्रेस के लिए महंगा साबित हो रहा है. लेफ्ट की तरफ से केरल में कांग्रेस को बीजेपी की बी टीम बताया जा रहा है. वहीं, राज्य कांग्रेस को समझ आ चुका है कि वो राजनीतिक रूप से राज्य में बुरी तरह एक्सपोज हो चुकी है, इसका खामियाजा उसे चुनाव में भुगतना पड़ सकता है.

इसी तरह बंगाल की कांग्रेस इकाई ममता पर संवैधानिक संस्थाओं को बर्बाद करने का आरोप लगाती रही ,वहीं कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व ममता के पक्ष में बयान देकर बंगाल में अपने को दोमुंही राजनीति करने वाली पार्टी के रूप में एक्सपोज करती रही. आलम यह है कि बंगाल में इसी ढुलमुल रणनीति के चलते पार्टी हाशिए पर चली गई है, वहीं राज्य में ममता बनाम बीजेपी की राजनीति सिर चढ़कर बोल रही है.

मसला पश्चिम बंगाल का हो या केरल का या फिर नारी सशक्तिकरण का, कांग्रेस की हर मुद्दे पर अपनी सुविधा के हिसाब से की गई राजनीति ने उसे भीतर के अंतरविरोध को उजागर कर दिया है.




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