क्वारेन्टीन सेंटर की पोलपट्टी खोलता वीडियो हुआ वायरल
पौष्टिक आहार के नाम पर सूखी रोटी सब्जी और जरा सा चावल
बाथरुम में नल नहीं, गंदगी और अव्यवस्था के बीच कोरोना मरीजों का उपचार
धीरज चतुर्वेदी, छतरपुर
छतरपुर जिले कोरोना आपदा मे अवसर तलाश करने वाले भूखे तंत्र पर आरोपों कि बौछार होते हुए सोशल मीडिया पर कई वीडियो, आडियो जारी हो रहे है।
धतराष्ट्र के लिये कहा जाता था कि उसने कभी सच को स्वीकार नहीं किया जब कि सारथी संजय उन्हें हकीकत से रूबरू कराता रहा। इन्ही कुछ आरोपों के घेरे मे सरकारी तंत्र के धतराष्ट्र है। संजय कि भूमिका मे सोशल मीडिया ओर खबरनवीस सच का आइना दिखा रहे है लेकिन धतराष्ट्र है कि सच स्वीकार करने को तैयार नहीं है। आरोप लग रहे है कि कोविद कि बदसूरत व्यवस्थाओ का आइना दिखाने वालो पर प्रशासनिक हथकंडो का इस्तमाल कर आवाज़ को कुचलने का काम किया जा रहा है।
प्रशासनिक फरमान उन असली कोरोना योद्धाओ को भयभीत करने जैसा है जो कोविड केयर सेंटर, आइसोलेशन वार्ड ओर अन्य अफरातफरी कि पोलपट्टी खोलने का दम रखते है। जो भी कोरोना मरीज इन सेंटर मे भर्ती होकर असली तस्वीर उजागर करता है उस पर कानूनी शिकंजा कसने कि तैयारी कर दी जाती है। कोरोना पीड़ित राजेन्द्र वासुदेव इसका सबूत है। आरोप है कि आइसोलेशन वार्ड का दर्पण उन्होंने दिखाया तो उन पर अपराध दर्ज कर लिया गया। शनिवार को पत्रकार लखन राजपूत ने छतरपुर के महोबा रोड पर कोविड केयर सेंटर मे भोजन व्यवस्था कि असलियत उजागर की थी। सोशल मीडिया पर उन्होंने सच दिखाया लिखा था कि सुबह 5 रूपये के नमकीन के पैकेट बाटने के बाद दोपहर 3 बजे तक यहाँ के भर्ती लोगो को भोजन नसीब नहीं हुआ था। एक ओर वीडियो सोशल मीडिया पर महोबा रोड के केयर सेंटर कि पोल खोल रहा है। जो इस सेंटर पर स्वास्थ्य लाभ ले रहा है उसने ही वीडियो बना कर प्रशासनिक दावों के मुँह पर करारा तमाचा जड़ा है।
वीडियो को सत्य माना जाये तो जहाँ कोरोना पीड़ितों को क्वारंटाइन किया गया है जिसे नाम तो कोविद केयर सेंटर दिया गया है, लेकिन यहाँ कि अव्यवस्था जीवन मे नर्क भोगने जैसा है। चारो ओर गंदगी मे मरीज बीमार भी नहीं होगा तो मर्ज लेकर जायेगा? कहा जाता है कि पौष्टिक आहार दिया जा रहा है. वीडियो तो बताता है कि मरीजों कि पौष्टिकता बढे या ना बढे पर तंत्र जरूर पौष्टिक हो रहा है। क्या कोरोना भी उस उपजाऊ भूमि कि तरह हो चुका है जहाँ मरीजों को फसल कि तरह बुबाई कर फसल काटो, यह समझ से परे है। सोशल मीडिया पर कोरोना खर्च को लेकर भी कई बाते है।
प्रशासन के फरमान मे इसे भ्रामक प्रचार निरूपित किया है जिसे कानूनी डंडे से दबाने का प्रयास किया जा रहा है। साहब अगर कोरोना मे ईमानदारी की बिना प्रदूषित हवा चल रहे है तो मरीज पर खर्च होने वाली राशि को क्यो सार्वजानिक नहीं किया जा रहा ताकि आरोपों कि आवाज़ को दबाया जा सके। सच तो यह है कि सरकारी खर्च का रुपया तो आम जनता से ही विभिन्न माध्यमों से सरकार का खजाना भरता है तो आम जनता को लेखा जोखा मांगने का भी अधिकार है। फिलहाल तो उन आरोपों को बल मिलता है जिसमे कहा जाता है कि कोरोना एक आपदा के साथ भ्र्ष्ट तंत्र के लिये अवसर है। सच बोलने वाले कि आवाज़ कुचल दी जायेगी…