मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार का एक निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात के सुरा प्रेमियों को तो रास आ सकता है, लेकिन प्रधानमंत्री और उनके गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के साथ गृह मंत्री अमित शाह की भी त्यौरियां चढ़ा सकता है। यह निर्णय है गुजरात से बिलकुल सटे झाबुआ में वेयरहाउस खोलने की अनुमति देने का।
यह फैसला उस राज्य में हो रहा है, जहां की पिछली शिवराज सिंह चौहान सरकार मदिरा कारोबार को बढ़ाने के बजाए घटाने या जितना चल रहा है उतना ही चलते देने का रुख अपनाए हुए थी। खुद कांग्रेस के नेता भी उसके वचन पत्र में शराबबंदी को शामिल करने के लिए बेताब थे। किन्ही कारणों से यह वचन नहीं बन सका, लेकिन सरकार बनने और उसके बाद पहले एक साल तक मंशा फिर भी कमलनाथ और उनकी पार्टी के नेताओं की शराब कारोबार को ज्यादा तवज्जो नहीं देने की थी। लेकिन अचानक ही सरकार की सोच बदल गई।
मध्यप्रदेश में शराब की नई दुकान खोलने का निर्णय लेने के बाद अब खबर है कि कमलनाथ सरकार पड़ोसी राज्य गुजरात में शराब तस्करी का नया रास्ता खोलने पर आमदा है। धार के बड़े कांग्रेस नेता और शराब कारोबारी बालमुकंद सिंह गौतम को झाबुआ में वेयरहाउस की परमिशन सरकार दे रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ की सोच में आया यह बदलाव चौंकाने वाला है। दिग्विजय सिंह राज में मध्यप्रदेश में शराब कारोबार के दम पर बड़े व्यवसायी बने सोम डिस्टलरी के जगदीश अरोड़ा ने भी मध्यप्रदेश में कांग्रेस राज लौटते ही अपनी डिस्टलरी के एक्सटेंशन का प्रस्ताव दिया था। सोम समूह अपनी शराब उत्पादन क्षमता तीन लाख करोड़ लीटर से बढ़ा कर 1800 करोड़ लीटर करना चाहता था। उनके मनमाफिक कांग्रेस की सरकार थी, पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का वरदहस्त भी था, आबकारी महकमा भी तैयार था, लेकिन कमलनाथ अड़ गए। अब सोम डिस्टलरी को अपने पुराने उत्पादन क्षमता के साथ ही मैदान में संतोष करना पड़ा। सोम और प्रदेश के दूसरे कारोबारियों के लिए राहत की खबर यह मिली कि अब शराब के ठेके समूह में दिए जाएंगे। जैसा दिग्विजय राज में होता था और लिकर किंग अपनी मनमानी करते थे।
झाबुआ में नई डिस्टलरी लगाने की परमीशन से पहले मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के दौरान भी कई ऐसे प्रपोजल सरकार को मिले थे। शिवराज ने एक को भी अनुमति नहीं दी थी। कहा तो यह भी जाता है कि बड़े आदिवासी कांग्रेस नेता और अब झाबुआ विधायक कांतिलाल भूरिया की अघोषित पार्टनरशिप में कुछ नौकरशाह खरगौन में डिस्टलरी लगाना चाहते थे। नौकरशाह तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के करीबी थे, किंतु वे भी डिस्टलरी का लाइसेंस नहीं हासिल कर सके।
जो कमलनाथ सोम समूह का उत्पादन क्षमता बढ़ाने का प्रस्ताव खारिज कर चुके हैं, वे अब नई डिस्टलरी क्यों खुलवाना चाहते हैं, वो भी झाबुआ में? यह सवाल ही कई प्रश्न उठाता है। बालमुकुंद सिंह गौतम के खिलाफ धार की विधायक नीना वर्मा बीते सालों में विधानसभा में लगातार शराब माफिया और तस्करी से जुड़े प्रश्न लगाती रही हैं। धार, झाबुआ, रतलाम वो जिले हैं, जहां से मद्यनिषेध वाले गुजरात को शराब भेजी जाती है। मध्यप्रदेश की डिस्टलरी ही नहीं, हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान की अवैध शराब भी वहां पहुंचती है। कुछ एमपी के रास्ते तो कुछ परबारे। प्रदेश में शराब के अवैध परिवहन के ज्यादातर मामले इंदौर संभाग के ही उजागर होते हैं। तो क्या कमलनाथ मध्यप्रदेश का आबकारी राजस्व बढ़ाने के लिए सीधे झाबुआ से गुजरात शराब तस्करी के लिए यह कदम उठा रहे हैं? या फिर वे किसी और फांस का बदला मोदी के गुजरात से लेना चाहते हैं? जो भी हो, झाबुआ में डिस्टलरी की अनुमति प्रदेश की लिकर लॉबी में भूचाल लाएगी ही, मोदी-शाह की जोड़ी को भी नाराज करेगी। अब देखना है कि यह खबर वायरल होने के बाद गुजराती अस्मिता के रक्षकों का रुख क्या होता है?