देशप्रेम के बाद अब बात माता-पिता के प्रेम की. आपने अक्सर सुना होगा कि प्रेम की कोई भाषा नहीं होती बल्कि कई बार शब्द ही प्रेम में सबसे बड़ी बाधा बन जाते हैं क्योंकि शब्दों में दर्शाया गया प्यार सिर्फ शब्दों के अर्थ तक ही सीमित होता जबकि प्रेम को उड़ने के लिए पूरा आकाश चाहिए और सिर्फ कुछ शब्द प्रेम को साकार नहीं कर सकते. जिससे आप प्रेम करते हैं, वो आपसे दूर है या आपके पास. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. प्रेम शाश्वत है. सदा के लिए है और ये जीवन के साथ और जीवन के बाद भी चलता रहता है.
प्रेम का सबसे निर्मल और निस्वार्थ रूप माता-पिता का प्रेम होता है. माता-पिता अपनी जान देकर भी अपने बच्चों का जीवन बचा लेते हैं लेकिन आपने ऐसे बहुत कम बच्चों के बारे में सुना होगा जो अपना जीवन अपने माता-पिता की सेवा में समर्पित कर देते हैं. जब कई बार जब माता-पिता अपनी किसी संतान को अचानक खो देते हैं तो ये पल उनके लिए बहुत दुखदायी होता है. अब वैज्ञानिकों ने इस दुख को कम करने का एक तरीका भी ढूंढ लिया है. अब वर्चुअल रियल्टी की मदद से उन लोगों को फिर जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है जिनकी समय से पहले मृत्यु हो गई.
ऐसी ही एक कोशिश दक्षिण कोरिया में की गई है.जहां एक मां की मुलाकात उसकी 7 साल की बेटी से कराई गई. इस बच्ची की मृत्यु वर्ष 2016 में एक बीमारी की वजह से हो गई थी लेकिन वैज्ञानिकों ने वर्चुअल रियल्टी तकनीक की मदद से इस बच्ची का एक अवतार तैयार किया. यानी हूबहू. इस बच्ची जैसा दिखने वाला एक कंप्यूटराइज्ड कैरेक्टर.
दक्षिण कोरिया में इस मां और उसकी बच्ची के अवतार के बीच हुई इस मुलाकात को एक डॉक्यूमेंट्री का रूप दिया गया है. इसके लिए इस महिला की आंखों पर VR हेडसेट और हाथ में एक खास तरह के ग्लोव्ज पहनाए गए. इस VR हेडेसेट की मदद से ये महिला अपनी बच्ची के अवतार को पास से देख सकती थी और ग्लोव्ज से छूकर उसे महसूस भी कर सकती थी. हालांकि ये पूरी डॉक्यूमेंट्री एक हरे रंग की स्क्रीन पर शूट की जा रही थी जिस पर विजुअल इफेक्ट्स की मदद से एक पार्क का सीन तैयार किया गया था. फिल्मों, न्यूज़ चैनलों और डॉक्यूमेंट्रीज में अक्सर इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है और इसे क्रोमा कहा जाता है. वर्चुअल रियल्टी की मदद से जब एक मां ने अपनी बेटी को बिल्कुल अपने पास देखा. उसे स्पर्श किया और दोनो के बीच बातें हुईं तो आसपास बैठे सभी लोगों की आंखों में आंसू आ गए.
ये पूरी डॉक्यूमेंट्री कोरियन भाषा में शूट की गई है. इसलिए शायद आप मां और बेटी के बीच के इस संवाद को समझ नहीं पाएंगे लेकिन जैसा कि हमने पहले कहा कि प्रेम को शब्दों की ज़रूरत नहीं होती है. इसकी भाषा पूरे विश्व में एक जैसी है..और इसे दुनिया के किसी भी कोने में बैठा कोई भी व्यक्ति सिर्फ भावनाओं के ज़रिए ही समझ सकता है. जिस दौर में तकनीक पर लोगों के रिश्ते और प्रेम संबंध तोड़ने का आरोप लगता है. उस दौर में तकनीक ही बिछड़े हुए लोगों को मिला रही है. ये वर्चुअल पुल कैसे दूर हो चुके लोगों को करीब ला रहा है.
एक सात साल की बच्ची को खो देने वाली मां का गम क्या होता है, उसे कोरिया की Jang Ji-sung (जांग जी सुंग ) से बेहतर कौन समझ सकता है लेकिन जब वर्चुअल रियल्टी की मदद से सपनों की दुनिया में इस मां ने अपनी बेटी से मुलाकात की तो लगा विज्ञान अब जीवन और मृत्यु के अंतर को भी मिटाने लगा है. जो अपनों को खो चुके हैं. उनके लिए ये तकनीक एक वरदान है तो कुछ लोगों का मानना है कि किस्मत और भावनाओं की चाबी किसी कंप्यूटर के हाथ में कैसे दी जा सकती है.
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इंसान की असली भावनाओं को डीकोड कर पाएगा या नहीं ये तो बहस का विषय हो सकता है लेकिन अगर सबकुछ पहले से तय है और आप खुद सिर्फ एक किरदार हैं तो आप भी तो अस्तित्व के आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस हुए. AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी और वर्चुअल रियल्टी की मदद से बिछड़े हुए लोगों को तो मिलाया जा सकता है लेकिन क्या ये तकनीक इंसानी भावनाओं की जगह ले सकती है? फिलहाल तो इसका जवाब ना में है लेकिन भविष्य में शायद ये भी मुमकिन हो जाएगा. असली रिश्तों में आपको जवाबदेह होना पड़ता है, दूसरे की मनोस्थिती को समझना पड़ता है लेकिन शायद AI के दौर में प्रेम की परिभाषा भी बदलने लगेगी. आप अपने मन पसंद वर्चुअल अवतार से प्रेम कर पाएंगे और तब आपको इस बात की चिंता नहीं होगी कि दूसरा क्या चाहते हैं.
आपको जानकर हैरानी होगी कि 2018 में साढ़े चार लाख भारतीयों ने गूगल असिस्टेंट (Google Asistant) को विवाह का प्रस्ताव दिया था. गूगल असिस्टेंट आर्टिफिसिशल इंटेलीजेंसी का ही उदाहरण है जिसका इस्तेमाल आप एंड्राइड मोबाइल फोन या गूगल की होम डिवाइस पर कर सकते हैं. गूगल असिस्टेंट इंसानों के कई तरह के सवालों का जवाब देने में सक्षम है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि साढ़े चार लाख भारतीय. भला एक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी को विवाह का प्रस्ताव क्यों देंगे? ये आंकड़ा बताता है कि भारत के लोग अपने असली जीवन में कितने अकेले हो चुके हैं और असली रिश्तों पर उनका विश्वास किस कदर कम हो रहा है.
यानी अगर आपको रिश्तों में गर्माहट बरकरार रखनी है तो VR की नहीं प्यार की मदद लीजिए क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी से आपको शायद मनचाहे जवाब तो मिल जाएंगे लेकिन जिंदगी की ब्राइटनेस वर्चुअल रिश्तों से नहीं बल्कि असरी रिश्तों से बढ़ती है. इसलिए जिंदगी की स्क्रीन पर प्रेम की रोशनी को कभी फीका ना पड़ने दें.