नई दिल्ली: बर्बरता की बात करें तो, पाकिस्तान (Pakistan) की महिलाएं इसे सबसे ज्यादा झेलती हैं. कोरोना वायरस लॉकडाउन (Lockdown) के चलते इन महिलाओं का ये दुख इस देश में और भी बढ़ गया है. डी डब्ल्यू के मुताबिक, लैंगिक हिंसा की शिकार खालिजा सिद्दीकी ने बताया कि बहुत से परिवारों ने इसे मानने में काफी देर कर दी कि एक तलाकशुदा बेटी एक मरी हुई बेटी से बेहतर होती है.
सिद्दीकी, जो खुद एक वकील हैं, कहती हैं कि कोरोना वायरस के चलते घरेलू हिंसा में जबरदस्त इजाफा हुआ है क्योंकि महिलाओं को आर्थिक परेशानियों की वजह से और ज्यादा समझौता करने के लिए मजबूर किया जाता है. अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाएं मानती हैं कि अनौपचारिक क्षेत्रों से जुड़ी महिलाएं घरेलू हिंसा की सबसे बड़ी भुक्तभोगी हैं क्योंकि ज्यादातर बेरोजगार हो गई हैं. इस वजह से उन्हें अपने छोटे से घरों में मजबूरन ज्यादा समय गुजारना पड़ रहा है, जिसके चलते उन्हें अपने बदतमीज परिजनों के गुस्से का भी शिकार होना पड़ रहा है.
जेंडर स्टडीज की एक रिसर्चर आर्या इंडीरियस पैट्रास बताती हैं कि हाल ही में एक महिला को इसलिए उसके पति ने पीट दिया क्योंकि उसने सेनेटरी नेपकिन के लिए पैसे मांग लिए थे. कोविड 19 से पहले वो पैड के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए पुराने कपड़ों को लेने घर से बाहर जा सकती थी, लेकिन अब वो घर से बाहर भी नहीं जा सकती.
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लॉकडाउन के दौरान पाकिस्तान में घरेलू हिंसा की घटनाएं 25 फीसदी तक बढ़ गई हैं, पूरे पूर्वी पंजाब प्रांत में ही सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मार्च से मई तक आधिकारिक तौर पर 3217 केस दर्ज किए गए हैं. महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों की सूची में पाकिस्तान 6ठे नंबर पर है.
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जनवरी 2011 से जून 2017 के बीच में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 51,241 मामले दर्ज किए गए थे. इतनी बड़ी संख्या के बावजूद सजा देने की दर काफी कम है, अब तक केवल 2.5 फीसदी मामलों में ही सजा का ऐलान हुआ है. सरकार के सारे उपाय इन घटनाओं से निपटने में आमतौर पर नाकामयाब साबित हुए हैं और बड़े पैमाने पर अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाएं ही पीड़ितों की जरुरी मदद के लिए आगे आई हैं.
सबाहत रियाज, जो दस्तक शेल्टर में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक वकील हैं, बताती हैं कि कोरोना महामारी के दौरान हैल्पलाइन पर आने वाले फोन कॉल्स लगभग दोगुने हो गए हैं. उनके मुताबिक पहले ज्यादातर फोन कॉल युवा महिलाओं के होते थे, लेकिन अब तो बड़ी उम्र की महिलाएं भी हिंसा की शिकायत के लिए फोन करने लगी हैं.
वो ये भी कहती हैं कि सरकार के संगठन ऐसे मामलों को संभालने के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं और पुलिस पीड़िताओं को केस दर्ज करने से हतोत्साहित करती है. उनके मुताबिक, पुलिस अधिकारी आमतौर पर लैंगिक मामलों को लेकर संवेदनशील नहीं होते, वो घरेलू हिंसा के मामलों को निजी विवाद की तरह देखते हैं और पीड़िताओं को केस दर्ज करने से हतोत्साहित करते हैं.
केवल वयस्क महिलाएं ही नहीं, कोरोना वायरस संकट में बच्चे भी घरेलू हिंसा की चपेट में आ रहे हैं। मनोवैज्ञानिक रूही गनी बताती हैं कि हताश, कुंठित परिवारों में ये हिंसा ऊपर से क्रम में होती है, सास-ससुर और पति महिला पर हिंसा करते हैं और वह ये गुस्सा अपने बच्चों पर निकाल देती है.
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