Sunday, December 22, 2024
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Statue of Oneness ओंकारेश्वर का अद्वैतलोक : एक खबर में सबकुछ जानें, यहां क्या-क्या होगा खास

अद्वैतलोक में भारत की समृद्ध स्थापत्य शैलियों का होगा दर्शन

भोपाल। आदि शंकराचार्य (Adi Shankara) की ज्ञान स्थली ओंकारेश्वर (omkareshwar)की धरा पर 18 अगस्त को होने वाले ‘शंकरावतरणं’ (‘Shankaravataranam’) नामक भव्य कार्यक्रम में प्रतिमा अनावरण होगा। इसके साथ ही अद्वैत लोक शिला न्यास का पूजन भी होगा। अद्वैत लोक (statue of oneness) नामक संग्रहालय नर्मदा व कावेरी की पुण्य सरिताओं की ओर मुख किए ओंकारेश्वर के मांधाता पर्वत पर स्थित है। इसमें अनेक सिद्धस्थ व समर्पित कारीगरों की कला का जन-जन प्रत्यक्षदर्शी होगा, साथ ही भारतवर्ष की मनोरम, समृद्ध व समस्त विश्व के पुरातत्वविदों के लिए प्राचीन काल से अचंभा का विषय रही भारतीय स्थापत्य कला का अद्वैत लोक के द्वारा लोग अनुभव कर पाएंगे। यदि एकात्म धाम के स्थापत्य शैली की बात की जाए तो इसकी निर्मिती शैली विविध क्षेत्रों के स्थापत्य कलाओं की पुरातात्त्विक शैली से प्रेरित रहेगी। धाम में मंदिर वास्तुकला की नागर शैली किया जावेगा , साथ ही पारंपारिक वास्तुशिल्प तत्त्वों जैसे स्तम्भ, छत्तरियों का उपयोग किया जाएगा। साथ ही अद्वैत लोक की निर्मिती सामग्री में कुशल कारीगरों द्वारा तैयार होगी व ठोस पत्थर की चिनाई, पाषाण की सहायता से निर्मित कारीगरी देखने को मिलेगी। आचार्य शंकर के जीवन प्रसंगों को भित्तिचित्रों, मूर्तियों के माध्यम से चित्रित किया जाएगा।

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अद्वैत वेदान्त आचार्य शंकर अन्तराष्ट्रीय संस्थान के चार शोध केंद्र व उनके निर्माण की समृद्ध स्थापत्य शैली

अद्वैत दर्शन को नव युवा शक्ति, जो जिज्ञासु, ज्ञान पिपासु व एकात्मता के संदेश को समस्त विश्व तक पहुँचाने हेतु कटिबद्ध है, ऐसे शोधार्थियों-विद्यार्थियों के लिए चार शोध केंद्र भी स्थापित किए जाने की कल्पना भी जल्द ही साकार रूप लेना प्रारंभ करेगी। यह शोध केंद्र आदि गुरु शंकराचार्य जी के चार शिष्यों के नाम पर आधारित होंगे। अद्वैत वेदान्त आचार्य शंकर अन्तराष्ट्रीय संस्थान के प्रांगण के अंतर्गत यह चार शोध केंद्र स्थित रहेंगे जिनके नाम हैं- अद्वैत वेदान्त आचार्य पद्मपाद केंद्र, आचार्य हस्तमलक अद्वैत विज्ञान केंद्र, आचार्य सुरेश्वर सामाजिक विज्ञान अद्वैत केंद्र, आचार्य तोटक साहित्य अद्वैत केंद्र। इसकी स्थापत्य शिल्प कला में नागर, द्रविड, उडिया, मारू गुर्जर, होयसला, उत्तर भारतीय – हिमालयीन और केरल मंदिर स्थापत्य सहित अनेक पारंपरिक वास्तुकला शैलियों की शृंखला स्थानीय सम्मिलित होंगे। अद्वैत वेदान्त आचार्य पद्मपाद केंद्र, भारत के पूर्वी क्षेत्र की संरचनात्मक शैली से प्रेरित होगी, वहीं, पुरी के जगन्नाथ मंदिर की संरचना से आचार्य सुरेश्वर सामाजिक विज्ञान अद्वैत केंद्र की वास्तुकला द्रविड़ शैली से प्रेरित रहेगी, श्री श्रृंगेरी शारदापीठम और आसपास के मंदिरों से वास्तुकला सामीप्य रखने वाला गुजरात में स्थित द्वारका मंदिर, आचार्य हस्तमलक अद्वैत विज्ञान केंद्र की संरचना का मूल रहेगा। गुजरात के द्वारका मंदिर से प्रेरित आचार्य हस्तामलक अद्वैत विज्ञान केंद्र चालुक्य वंश में पनपी मारू-गुर्जर शैली को प्रदर्शित करता है। आचार्य तोटक साहित्य अद्वैत केंद्र की संरचना उत्तर भारत की स्थापत्य शैली में की जावेगी। इसके अतिरिक्त आचार्य गोविंद भगवतपाद गुरुकुल का व आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र का भी निर्माण होगा। हिमालयीन क्षेत्र की स्थापत्य शैली में आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र को प्राचीन शहर कांचीपुरम से प्रेरणा लेकर संरचना की जाएगी, जो कभी पल्लव साम्राज्य का केंद्र था।

भारत की समृद्ध स्थापत्य शैलियों का समावेश किया जाएगा एकात्म धाम में

यदि विभिन्न स्थापत्य शैली के बारे में बात की जाए तो नागर शैली के मंदिर संरचना की तुलना मानव शरीर के विभिन्न अंगों से की गई है। मानव शरीर की संरचना के समान ही मंदिर की संरचना पर बल दिया गया है इसे निम्न तथ्यों के आधार पर देखा जा सकता है ‘नागर’ शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इन्हे नागर की संज्ञा प्रदान की गई। शिल्पशास्त्र के अनुसार नागर मंदिरों के आठ प्रमुख अंग है –
(१) मूल आधार – जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।
(२) मसूरक – नींव और दीवारों के बीच का भाग
(३) जंघा – दीवारें (विशेषकर गर्भगृह की दीवारें)
(४) कपोत – कार्निस
(५) शिखर – मंदिर का शीर्ष भाग अथवा गर्भगृह का उपरी भाग
(६) ग्रीवा – शिखर का ऊपरी भाग
(७) वर्तुलाकार आमलक – शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग
(८) कलश – शिखर का शीर्षभाग

नागर शैली का क्षेत्र उत्तर भारत में नर्मदा नदी के उत्तरी क्षेत्र तक है। परंतु यह कहीं-कहीं अपनी सीमाओं से आगे भी विस्तारित हो गयी है। नागर शैली के मंदिरों में योजना तथा ऊॅंचाई को मापदंड रखा गया है। नागर वास्तुकला में वर्गाकार योजना के आरंभ होते ही दोनों कोनों पर कुछ उभरा हुआ भाग प्रकट हो जाता है जिसे ‘अस्त’ कहते हैं। इसमें चांड़ी समतल छत से उठती हुई शिखा की प्रधानता पाई जाती है। यह शिखा कला उत्तर भारत में सातवीं शताब्दी के पश्चात् विकसित हुई अर्थात परमार शासकों ने वास्तुकला के क्षेत्र में नागर शैली को प्रधानता देते हुए इस क्षेत्र में नागर शैली के मंदिर बनवाये। कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं। द्रविड़ शैली की पहचान विशेषताओं में- प्राकार (चहारदीवारी), गोपुरम (प्रवेश द्वार), वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा शिखर, मंडप (नंदी मंडप) विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना शामिल हैं। द्रविड़ शैली के मंदिर बहुमंजिला होते हैं। जगतगुरु शंकराचार्य जी द्वारा चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना कर न केवल चार मठों में वेदान्त शालाएँ प्रारंभ की अपितु उन चार दिशाओं की संस्कृति व कला में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर सांस्कृतिक व कलात्मक एकीकरण की धरोहर आज के ज्ञान पिपासुओं हेतु देकर गए।

केवल संरचना नहीं शंकर का संदेश है ‘एकात्मता की मूर्ति’

अब वह क्षण समीप है, जब आदि गुरु शंकर साकार रूप में सभी के समक्ष होंगे। संतों के सानिध्य मेंमध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रीशिवराज सिंह चौहान18 सितम्बारको ओंकारेश्वर में जगत गुरु आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा ‘एकात्मता की मूर्ति’ का अनावरण करने जा रहे हैं।

‘एकात्मता की मूर्ति’ की शिल्पकारी-

आचार्य शंकर की यह भव्य प्रतिमा अब अपना साकार रूप लेने वाली है। इस संकल्प को मूर्त रूप देने के लिए 12 वर्ष के किशोर शंकर को कल्पना से रेखा और रंग में उतारने की शुरुआत हुई। इसी के साथ न्यास ने देश के ऐसे चित्रकार की खोज चालू की जो इस स्वप्न में प्राण दे सके, और यह खोज देश के श्रेष्ठतम कॉनटेम्पररीआर्टिस्ट वासुदेव कामत जी पर जाकर रुकी। एकात्मता के इस संकल्प को वासुदेव कामत जी ने अपनी चित्रकला से जीवंत करने की शुरुआत की, और 12 वर्ष के किशोर शंकर का अतुलनीय चित्र पटल पर सामने आया। इसके बाद चित्र को कैनवास से धरा पर लाने के लिए मूर्तिकारों की चयन प्रक्रिया में 11 मूर्तिकारों का चयन हुआ, जिन्होंने चित्र को देखकर 5 फीट की मूर्ति प्रस्तुत कीं। इन 11 मूर्तिकारों में 3 कलाकारों को चयनित करके, आखिर में श्रेष्ठतम प्रस्तुति देने वाले मूर्तिकार भगवान रामपुरे, सोलापूर का चयन हुआ। इस तरह मूर्ति का निर्माण कार्य वासुदेव कामत और भगवान रामपुरे के मार्गदर्शन में शुरू हुआ। ‘एकात्मता की मूर्ति’ की शिल्प विशेषता को देखा जाए, तो यह प्रतिमा 12 वर्ष के किशोर शंकर की 108 फीट ऊंची बहु धातु प्रतिमा है, जिसमें 16 फीट ऊंचे पत्थर से बना कमल का आधार है, 75 फीट ऊंचा पेडिस्टल का निर्माण है। वहीं प्रतिमा में 45 फीट ऊंचा ‘शंकर स्तम्भ’ पत्थर पर उकेरे गए आचार्य शंकर की जीवन यात्रा को दर्शाता है। इस मूर्ति के निर्माण में 250 टन से 316L ग्रेड की स्टेनलेस स्टील का उपयोग हुआ है, साथ ही 100 टन मिश्रधातुकांसे में 88 टन तांबा, 4 टन जस्ता और 8 टन टिन का मिश्रण है। इस प्रतिमा में कान्क्रीट के पेडिस्टल को 500 वर्षों का जीवन दर्शाने के उद्देश्य से निर्मित किया गया है। इस मूर्ति में 12 वर्षीय किशोर आचार्य शंकर के भाव-भंगिमाएं जीवंत रूप से दिखाई पड़ेंगी, जो जन मानस में एकात्म भाव का संचार करते हुए, लोगों के जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देगी।

क्या है ‘एकात्मता की मूर्ति’ की नीव –


आदि गुरु शंकर की प्रतिमा ‘एकात्मता की मूर्ति’ की कल्पना ने 9 फरवरी 2017 कोतब जन्म लिया, जब ओंकारेश्वर में नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान साध्वी ऋतंभरा, स्वामी अवधेशानन्द गिरि, स्वामी तेजोमयानंदजैसे अनेकों महान संतों के मध्यआदि शंकर की स्मृति का संचार हुआ। इसी दिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहानने संतों की उपस्थिति में जनता के सामने शंकर की विशाल प्रतिमा की स्थापना का संकल्प लिया और ‘एकात्मता की मूर्ति’ की घोषणा की। आचार्य शंकर की अमर स्मृति को धरातल पर उतारने के लिए एक बार फिरमुख्यमंत्री के साथ, संतों और विद्वानों की बैठक हुई,जिसमें शंकर के विचारों के प्रचार-प्रसार पर केंद्रित सभी गतिविधियों और आयोजनों के लिए 1 मई 2017 को आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यासके गठन की बात रखी गई।


इस संकल्प को पूरा करने के लिए अगला कदम था घर-घर से आदि शंकर को जोड़ना, यह तब संभव हुआ,जब 25 मई 2017 को हुई मुख्यमंत्री और संतों की अगली बैठक में तय किया गया,कि आदि गुरु की 108फीट ऊंचीबहु धातुप्रतिमा के लिए धातु संग्रहणसमाज के हर वर्ग,हर घर से होना चाहिए।इसी बैठक में एक लाख रुपए की प्रतीक राशि से आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास के गठन की आधिकारिक घोषणा की गई। इस तरह ‘एकात्मता की मूर्ति’ की मजबूत नीव का निर्माण कार्य प्रगति की ओर बढ़ रहा था। आदि शंकर की इस प्रतिमा में चैतन्य ऊर्जा के संचार के लिए घर-घर से धातु संग्रह के कार्य को नाम दिया गया ‘एकात्म यात्रा’।

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‘एकात्म यात्रा’ का पहला कदम 19 दिसम्बर 2017 कोमध्यप्रदेशके उन चार स्थानों से उठा जहां आचार्य शंकर के पावन चरण पड़े। वह पवित्र स्थल थे- ओंकारेश्वर, उज्जैन, पचमठाऔर अमरकंटक। एक महीने तक चली इन एकात्म यात्राओं से प्रदेश के जनमानस में जगत गुरु शंकराचार्य और उनका अद्वैत दर्शन जागृत हो रहा था। एक महीने में एकात्म यात्रा 8 हजार 500 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए, 51 जिलों के 241 विकास खंडों और 3400 गांवों से निकली। इस यात्रा में जन संवाद शृंखला 281 स्थानों पर हुई, जिसमें लगभग 13 लाख लोगों ने हिस्सा लिया। इस शृंखला में आचार्य शंकर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विद्वान संतों ने हर पड़ाव पर स्थानीय जनों से संवाद किया। इसी के साथ लोगों ने अद्वैत दर्शन को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया।शंकर के निमित्त इतनी लंबी यात्रा का यह पहला आयोजन रहा।

‘एकात्मता की मूर्ति’ में शंकर के संदेश का संचार-

एकात्म यात्रा के शुरुआती चरण में स्वामी संवितसोमगिरीजी के नेतृत्व में वनवासी जनों से आचार्य शंकर की इस भव्य प्रतिमा के लिए धातु संग्रहण किया गया। वहींमंदसौर में बोहरा मुस्लिम समाज ने बैंड-बाजों से यात्रा का स्वागत किया और 51 सौ महिलाओं ने कलश यात्रा निकालकर प्रतिमा के लिए धातु का दान किया। मण्डला में नर्मदा की आरती में 6 हजारश्रद्धालु जुड़े, जिसमें कलेक्टर सोफियाफारुकी शंकर की चरण पादुका सिर पर धारण करके निकलीं। नरसिंहपुर जिले में एकात्म यात्रा का स्वागत करने मुस्लिम, सिक्ख, जैन और ईसाई समाज के लोग एक साथ पहुंचे। जब मध्यप्रदेश में यह यात्रा पूरे उत्साह से चल रही थी, तभी यह विचार भी किया गया कि उन सभी स्थानों से मिट्टी और जल लाया जाए, जहां कभी न कभी आचार्य शंकर के पावन चरण पड़े थे। इसके लिए चिन्मय मिशन के स्वामी मित्रानंद ने शंकर संदेश वाहिनी के रूप में एक विशेष बस बनवाई, जिसमें आचार्य शंकर की कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई। इस बस को 29 दिसम्बर 2017 को वेलियानाड, केरल से मुख्य मंत्रीशिवराज सिंह चौहान, स्वामी परमात्मानंद जी, चिन्मय मिशन के स्वामीअद्वयानन्द जी और संस्कृति सचिव मनोज श्रीवास्तव ने हरी झंडी दिखाई। यह यात्रा भारत की चारों दिशाओं में स्थित उन चारों मठों में भी गई,जिन्हें आचार्य शंकर ने ही स्थापित किया। इस तरह समाज के बीचकण-कण में शंकर जाग्रत करते हुए, ‘एकात्मता की मूर्ति’ का निर्माण प्रगति पथ पर था। इस तरह आदि गुरु शंकराचार्य की इस 108 फीट ऊंची मूर्ति में उन्हीं का दिया संदेश “सर्वंखल्विदं ब्रह्म” समाहित हुआ।

एकात्मता की मूर्ति (Statue of Oneness)
आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मध्यप्रदेश शासन, संस्कृाति विभाग द्वारा आचार्य शंकर के जीवन-योगदान तथा अद्वैत वेदान्त दर्शन के लोकव्यापीकरण हेतु ओंकारेश्वर प्रकल्प ‘एकात्म धाम’ के अंतर्गत आचार्य शंकर की 108 फीट की बहुधातु प्रतिमा-एकात्मरता की मूर्ति(Statue of Oneness),अद्वैत लोक (शंकर संग्रहालय)तथा आचार्य शंकर अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदान्त संस्थानकी स्थापना की जा रही है।
प्रथम चरण में एलएण्डवटी कम्पकनी के द्वारा एकात्मटता की मूर्ति (Statue of Oneness)का निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है। एकात्मीता की मूर्ति का अनावरण दिनांक 18 सितम्बार, 2023 को दोपहर 12 बजे एकात्मण धाम, ओंकारेश्वतर में सुनिश्चित हुआ है। 

• एकात्मता की मूर्ति (Statue of Oneness)-ओंकारेश्वर में आचार्य शंकर की 108 फीट की बहुधातु एकात्मरता की मूर्तिकी स्थापना हेतु एल एण्ड टी कम्पनी द्वारा उक्त निर्माण कार्य सम्पूर्ण कर लिया गया है।
• यह एकात्माता की मूर्ति, विख्यात चित्रकार श्री वासुदेव कामत के द्वारा बनाये गये चित्र के आधार पर निर्मित की गयी है।
• वासुदेव कामत के द्वारा बनाये गये बाल शंकर के चित्र के आधार पर मूर्ति बनाये जाने हेतु भारत देश के 11 मूर्तिकारों का चयन किया गया। इन 11 मूर्तिकारों द्वारा 5 फीट की मूर्ति प्रस्तुत करने पर सर्च कम सिलेक्शन कमेटी द्वारा इनमें से 3 मूर्तिकारों का चयन किया गया।
• इन 3 मूर्तिकारों में से श्रेष्ठतम प्रतिकृति प्रस्तुत करने वाले मूर्तिकार श्री भगवान रामपुरे, सोलापुर का चयन किया गया।
• एकात्म ता की मूर्ति के मूर्तिकार श्री भगवानरामपुरे, सोलापुर हैं।
• अद्वैत लोक (शंकर संग्रहालय)लगभग 11.50 हैक्टेतयर भूमि पर स्थाेपित किया जा रहा है।
• अद्वैत लोक के मध्य में एकात्मता की मूर्ति (Statue of Oneness) स्था पित की गयी है।
• 108 फीट की बहुधातुएकात्मता की मूर्ति 12 साल के आचार्य शंकर की है।
• यह मूर्ति पत्थर निर्मित 16 फीट के कमल पर स्थापित है।
• यह कमल 75 फीट के पैडस्ट6ल पर स्थित है।
• एकात्म ता की मूर्ति का निर्माण एलएण्डथटी कम्पनी द्वारा श्री भगवान रामपुरे, मूर्तिकार, श्री वासुदेव कामत, चित्रकार एवं श्री प्रसाद स्थाथपति, हैदराबाद के मार्गदर्शन में जे.टी.क्यू. कम्पदनी से कराया गया है।
• एकात्ममता की मूर्ति कुल 290 पैनल जोड़ कर तैयार की गयी है।
• यह एकात्माता की मूर्ति 100 टन की है।
• एकात्ममता की मूर्ति 88 प्रतिशत कॉपर, 4 प्रतिशत जिंक तथा 8 प्रतिशत टिन के मिश्रण से बनाई गयी है।
• एकात्मैता की मूर्तिका भीतरी स्ट्र क्चपर लगभग 250 टन स्टैानलेस स्टीतल से बनाया गया है।

आचार्य शंकर की मूर्ति (एकात्मता की मूर्ति)ओंकारेश्वैर में ही क्यों ?

Statue of Oneness

• आचार्य शंकर का जन्मत केरल के कालड़ी ग्राम में हुआ। उनकी माता का नाम आर्याम्बाक तथा पिता का नाम शिवगुरु।
• 08 वर्ष की आयु में बाल शंकर अपनी माँ से आज्ञा प्राप्तक कर गुरु की खोज में निकल पड़े।
• बाल शंकर गुरु की खोज में नर्मदा किनारे चलते-चलते ओंकारेश्वार आए और ओंकारेश्व र में उन्हेंक गोविन्द भगवदपाद मिले।
• ओंकारेश्वार में गोविन्द भगवदपाद से बाल शंकर को गुरु दीक्षा मिली।
• बाल शंकर द्वारा गुरु गोविन्दग भगवदपाद के सानिध्यु में रहकर लगभग 03 वर्ष तक शिक्षा ग्रहण की।
• आचार्य शंकर द्वारा नर्मदाष्ट्क म की रचना ओंकारेश्वकर में ही की गई।
• गुरु आदेश पर 11 वर्ष की आयु में आचार्य शंकर ने अद्वैत वेदान्त दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिये ओंकारेश्वरर से प्रस्थाकन किया।

चिरस्थाई स्मृति

• एकात्मा धाम को चिरस्था ई बनाने के लिये एकात्मता की मूर्ति-Statue of Onenessकी स्थाएपना ओंकारेश्वकर में की गयी है।

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