यूंही चलता रहा तो गरीब ओर किसान तो बेमौत मारा जायेगा
धीरज चतुर्वेदी
कहीं सरकार की तो कहीं प्राकृतिक आपदाओं से आम जनता उभर ही नहीं पा रही है। एक संकट को झेल नहीं पा रहे तो दूसरी विपत्ति मुँह बांये खड़ी है। डीजल कि कीमतों में बेतहाश वृद्धि से सबसे अधिक परेशान अन्नदाता है। मप्र के निवाड़ी जिले से एक किसान ने तीन किमी तक बैलगाड़ी को कंधे पर घसीट डीजल वृद्धि पर अपना आक्रोश जताया। एक दर्जन किसानो के साथ उसने स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन भी सौपा।
मप्र कि रामनगरी ओरछा के समीपस्थ ग्राम आजादपुर के किसान सुनील राजपूत ने शुक्रवार को बैलगाड़ी को अपने कंधे पर तीन किमी लादकर डीजल कीमतों में बढ़ोत्तरी पर अपना विरोध जताया। चंद साथियो के वह निवाड़ी तिगैला से एसडीएम कार्यालय तक बैलगाड़ी लाद पंहुचा। गले में विरोध के नारों कि तख्तियां लटकी हुई थी। एसडीएम को ज्ञापन सौपा। जिसमे डीजल कि कीमतों से खेती कि बुबाई प्रभावित होने का जिक्र किया गया। किसान सुनील राजपूत का कहना था कि कंधे पर लदी बैलगाड़ी से किसानो के दर्द का सन्देश देना है। डीजल वृद्धि से ट्रेक्टर से जुताई अत्यधिक महंगी हो गई है। जिस ट्रेक्टर जुताई का रेट 600 रूपये प्रतिघंटा था। वह बढ़कर 1000 से 1200 रूपये हो चुका है। खरीफ फसल कि बुबाई शुरू हो चूकि है। मध्यम ओर छोटे किसान इस डीजल वृद्धि से महंगी जुताई से बुबाई नहीं करा पाएंगे। किसान सुनील राजपूत ने लाखो किसानो कि आवाज़ बनते हुए केंद्र सरकार से डीजल कि कीमतों को कम करने कि मांग की।
किसान सुनील राजपूत का बैलगाड़ी लाद तीन किमी तक चलना किसानो के मनोभाव को दर्शाने वाला सांकेतिक विरोध था.। सच भी है कि यह दौर यातनाओ से कम नहीं। वो गरीब ओर किसान कुचल रहा है, जिसकी व्यथा सरकार सुन भी रही है, देख भी रही है लेकिन अफ़सोसजन कागजो ओर भाषण में बोल रही है। लाखो कि संख्या में वो किसान अपने घरों में लौटे है जो मज़बूरी में मजदूर बन गये थे। मनरेगा के हालात किसी से छुपे नहीं है। तो किसानी अर्थात खेती पर निर्भरता उनकी एक बार फिर मज़बूरी है। सरकार को यह भी सोचना चाहिये कि जो किसान अपने घरों में लौटे है उनके साल भर पेट भरने का साधन भी खेती से ही पैदा होगा। आधुनिकता में ओर कुछ हालात कि मार से खेती जुताई के पुराने साधन लगभग समाप्त हो चुके है। खर-बखर में उपयोगी हल में जुतने वाला पशुधन बैल सूखे में पानी ओर भूसे कि कमी से किसानो से दूर हो गये। अब पूरी तरह निर्भरता ट्रेक्टर जुताई पर है। जिस पर डीजल कि कीमतों कि मार पढ़ी है। इन सब के बीच किसान पर ही चारो ओर से विपत्ति का घेरा है। कोरोना आपदा ने बुंदेलखंड से होने वाले पलायन कि असल तस्वीर दिखा दी है। यहाँ का करीब बीस लाख मजदूर रोजी रोटी कि तलाश में महानगरों का रुख करता है। अब यह मजदूर अपने घर लोट चुके है।
डीजल देश में सर्वाधिक खपत होने वाला ईंधन है। कुल डीजल उपयोग की करीब 57 फीसदी खपत वाहनों में होती है। ट्रकों में इसकी खपत 28.25 फीसदी है, जबकि ट्रैक्टरों, कृषि उपकरणों और कृषि पंप सेटों में डीजल की खपत 13 फीसदी है और एसयूवी में इसकी खपत 13.15 फीसदी है। डीजल कि कीमत बढ़ने से कृषि लागत भी बढ़ेगी। नतीजा होगा कि जो लागत को वहन करने वाले सक्षम किसान है वह तो खेत कि ओर रुख करेंगे। जो कृषि बुबाई के लिये भी किसान कर्ज पर आश्रित होता है वह तो घर बैठ जायेगा। अब कैसे खेती को लाभ का धंधा बनाने का नारा-दावे उदघोष किये जाते है, सरकार से पूछना चाहिये।