छतरपुर से उठी आवाज, बच्चों के मामा क्या दिलाएंगे न्याय
छतरपुर। वो आपदा जिसने विश्वव्यापी तबाही मचा दी। लाखो लोगो के कारोबार ठप्प हो गये तो उतनी संख्या मे ही लोग बेरोजगार हो गये।
कोरोना काल का दुःखद मंजर किसी से छुपा नहीं है। वो लोग सबसे अधिक प्रभावित हुए है जिन्हे मध्यमवर्गीय कहा जाता है। आज उस मुकाम पर खड़े है जहाँ उनके घरों कि पूर्ति बमुश्किल हो रही है, वहीँ बच्चों को उच्च तामिल दिलाना भी जरुरी है। ताकि उनका भविष्य अंधकारमय ना हो पाये। इसी जद्दोजहद मे एक मुसबित ने ओर मुँह खोल दिया है जो हॉस्टल संचालको के अमानवीय चेहरे कि बानगी है। जो बच्चे महानगरों मे हॉस्टल मे रहकर अपना भविष्य गढ़ने कि आस मे थे वह कोरोना संक्रमण के पैर पसारते ही अपने घरों कि ओर रवाना हो गये।
सरकार ने भी हॉटस्पॉट इंदौर भोपाल जैसे शहरों मे हॉस्टल खाली करा दिये ओर शिक्षण संस्थाओ को लॉक कर दिया। आज भी हालात सुधरे नहीं है। हॉस्टल संचालको को इस कोरोना आपदा से कोई लेनादेना नहीं। उन्हें तो लॉक डाउन के दौरान का भी पूरा किराया चाहिए। बड़ा सवाल है कि बच्चे ने अपनी मर्जी से अपने घरों कि ओर कूच नहीं किया बल्कि घर लौटना उनकी मज़बूरी थी जिसके लिये सरकार कि मंशा भी थी ताकि जानलेवा कोरोना के संक्रमण से बचाव हो सके।
हॉस्टल संचालको से जब बच्चों ने संक्रमण के भीषण प्रकोप के समय किराये को लेकर चर्चा कि तो वह गोलमाल जवाब देते रहे। अब अभिभावकों पर अनैतिक दवाब बनाये जा रहे है कि लॉक डाउन के समय का भी किराया जमा करो। इंदौर मे डिफेन्स कि कोचिंग करने वाली छतरपुर कि आस्था चतुर्वेदी ने बताया कि वह इंदौर के अनुराग नगर मे स्थित सिद्धि विनायक हॉस्टल मे रहती थी। वायरस के संक्रमण के फेलते ही वह अपने घर छतरपुर चली गई थी। अप्रेल माह मे हॉस्टल संचालक रवि गुप्ता से किराये को लेकर बात कि तो संचालक 40 प्रतिशत लॉक डाउन के समय का किराया लेने तैयार हो गये.।
अब हॉस्टल संचालक के सुर बदल गये ओर 6 हजार प्रतिमाह के हिसाब से केवल कमरे का दो माह का 12 हजार रूपये मांग रहे है। इस हॉस्टल मे फ़ूड कि व्यवस्था नहीं थी। हॉस्टल संचालक ने सभी लड़कियों को सोशल मीडिया के माध्यम से धमकी भरी सूचना भेजी है कि 20 जून तक पुराना हिसाब चुकता कर अपना कमरा जिसने खाली नहीं किया उससे जून माह का भी किराया वसूला जायेगा। यह मात्र आस्था चतुर्वेदी से जुडा मामला नहीं है बल्कि हजारों बच्चे हॉस्टल संचालको कि मनमानी के कारण परेशान है। खास कर अभिभावक पर तलवार सी झूल रही है जिनकी मज़बूरी है बच्चों को उच्च शिक्षा ग्रहण करवाने के लिये हॉस्टल मे बच्चों को रखना ओर लॉक डाउन के समय का भी किराया भुगतना।
माना जा रहा है कि हॉस्टल संचालको कि इस हठ के कारण कई बच्चों का भविष्य चौपट हो जायेगा। कारण उनके अभिभावकों के सामने रोजी रोटी का संकट है। पहले पेट कि आग बुझाने का पारिवारिक जरूरतों का इंतज़ाम करेंगे या हॉस्टल का पुराना भारी भरकम किराया चुकता करेंगे। अभिभावकों के लिये यह वायरस से बढ़ी आपदा है। इस सन्दर्भ मे कई अभिभावकों ने सोशल मीडिया का सहारा लेकर मुख्यमंत्री को अपनी पीड़ा से अवगत कराया है पर अभी तक बच्चों के भविष्य के साथ होते खिलवाड़ पर सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया है। सवाल है कि बच्चों के मामा क्या हॉस्टल संचालको पर सख्त होंगे या मामा के राज मे भांजे भांजियों कि आशाये धूमिल होकर सपने चकनाचूर हो जायेंगे।