28 मार्च 2025 को कृषि विज्ञान केंद्र नौगांव, जिला छतरपुर में कृषक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया जिसमें डॉ. कमलेश अहिरवार (वैज्ञानिक उद्यानिकी) ने रवी मौसम की फसलों की कटाई के उपरांत खेतों में फसलों के अवशेष यानि नरवाई को ना जलाने के लिए जागरुक किया है साथ ही नरवाई जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में भी अवगत कराया है ।डॉ. अहिरवार ने छतरपुर जिले के किसानों को अपने खेत की नरवाई को ना जलाने की सलाह दी है बल्कि नरवाई से ही खेत में खाद बनाने की तरकीब को बताते हुए किसानों को जागरूक किया है उन्होंने बताया कि हार्वेस्टर से कटाई के बाद पौधे का 90% भाग खेत में ही बच जाता है किसान इसे नष्ट करने के लिए आग लगाने का आसान रास्ता चुनते हैं खेत में आग लगाना बहुत ही घातक होता है आग से जमीन में मौजूद लाखों करोड़ों लाभदायक शूक्ष्म जीवों , पोषक तत्वों के साथ ही किसानों का मित्र केचुआ भी नष्ट हो जाता है ।
जबकि यह सभी लाभदायक सूक्ष्म जीव एवं केचुआ मिट्टी की गुणवत्ता को बनाने में बहुत ही मददगारी होते हैं और आपको बता दें की 1इंच मिट्टी के निर्माण में हजारों साल लग जाते हैं जबकि किसान इस हजारों साल से बनकर तैयार हुई मिट्टी को एक माचिस की तीली की सहायता से पल भर में ही नष्ट कर देते यानि खत्म कर देते हैं जिससे भूमि कठोर हो जाती है जिससे भूमि की जल धारण क्षमता भी नष्ट हो जाती है पर्यावरण प्रदूषण होने के साथ ही वातावरण में तापमान वृद्धि भी होती है जिससे कई हानिकारक गैसों का निर्माण भी होता है इसलिए किसानों को नरवाई को ना जलाना चाहिए।इसके बजाय अपने ही खेत पर फसलों की कटाई के उपरांत कल्टीवेटर, हेरो या प्लाउ चलाकर फसलों के अवशेष को यानी नरवाई को मिट्टी में ही मिला देना चाहिए ताकि तेज धूप एवं बारिश होने पर यह नरवाई यानि फसलों के अवशेष मिट्टी में ही मिलकर ढेर सारा खाद बनकर तैयार हो जाती है जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ जाती है और फसलों की पैदावार में भी इजाफा होता है।