Sunday, February 23, 2025
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Know truth of china a chinies women told about china reality | कम्यूनिज्म को न मानने वाले चीन में देशद्रोही, चीनी महिला ने ही किया अपने देश को बेनकाब

नई दिल्ली: ‘कम्यूनिज्म एज ए फेथ’ नाम से लेख में अमेरिका (America) में रह रही एक चीनी महिला (Chinies Women) यांगयांग चेंग ने बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि चीन (China) में कम्यूनिस्ट पार्टी से कोई भी आजाद नहीं है, चाहे उसने पार्टी की सदस्यता ली हो या न ली हो. सुपरचाइना अखबार में अपने अनुभवों को साझा करते हुए यांगयांग चेंग ने बताया है कि वो बचपन से ही कम्यूनिस्ट पार्टी से संबधित संगठनों से जुड़ी रही और उसके लिए काम किया लेकिन धीरे धीरे पार्टी से उनका मोहभंग होता चला गया. यांगयांग चेंग बाद में अमेरिका चली गई और उन्होनें अपने अनुभव को दुनिया से साझा किया है.

चीनी महिला यांगयांग चेंग का खुलासा
मुझे मेरे पिता की कम्यूनिस्ट पार्टी की सदस्यता के बारे में उनकी शोक सभा के दौरान पता चला. वह नई सदी की पहली सर्दी थी. मैं उस समय दस साल की थी और प्राइमरी विज्ञालय में छठी कक्षा में पढ़ती थी. मेरे पिताजी साउथ इस्टर्न चाइना विश्वविज्ञालय में इंजनियरिंग के प्रोफेसर थे और मेरी मां उसी विश्वविज्ञालय से संबधित एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थी.

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एक दिन स्कूल जाने के दौरान गेट के पास लगे बोर्ड में मैने देखा कि एक कागज पर मेरे पिता के देहांत होने की जानकारी दी गई है और साथ ही ये भी लिखा था कि ’36 वर्ष की आयु में स्वर्गवास’. कागज के सबसे नीचे वाले हिस्से पर लिखे कुछ शब्दों ने मेरा ध्यान सबसे ज्यादा खींचा जिसमें मेरे पिता के नाम के आगे लिखा था कि ‘चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य’.

एक बार बहुत पहले जब मैंने अपने माता-पिता से ये पूछा कि क्या वो कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं तो उन्होंने मना किया था. ऐसे में मेरे मन में कई सवाल उठने लगे कि क्या मेरे पिता को मरणोपरान्त पार्टी की सदस्यता दी गई थी? मेरे सवाल के जवाब में मेरे मां ने कहा नहीं ,उन्हें पार्टी की सदस्यता उनके विदेश जाने से पहले दिलाई गई थी.

1990 के दशक के दौरान मेरे पिता ब्रिटन और अमेरिका में अस्थाई शोधार्थी के तौर पर काम किया करते थे. हम उनके साथ कुछ महीने कैलिफोर्निया रहे थे और 1999 में हमें चीन वापस आना पड़ा था. जिस चीनी विश्वविज्ञालय में मेरे माता पिता काम करते थे वहां उन्हें इस बात का आश्वासन देना पड़ा था कि वो विदेश जाने के दौरान प्रवासी के तौर पर नहीं बसेंगे. हालांकि इसे लेकर हमारे घर में काफी हंगामा हुआ था और हमारे परिवार को विदेश भेजने के लिए हमारे नानाजी को एक बांड पर हस्ताक्षर करना पड़ा जिसमें कहा गया था कि उनकी बेटी और दामाद चीन से जरुर वापस आएंगे.

 

चीन में पार्टी से कोई भी आजाद नहीं है, चाहे उसने सदस्यता ली हो य न ली हो. एक आम चीनी के लिए पार्टी के अंदर का जीवन सहूलियात और समझौते के बीच चल रहा रस्साकस्सी का खेल है. तरक्की और व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए पार्टी का साथ बेहद जरुरी है. जब लड़ाई इतनी बड़ी व्यवस्था और इतनी जालिम ताकत के खिलाफ हो,तो विरोध करने की कोई कैसे सोच सकता है?

मैं पांच साल की थी जब मैनें पहली बार कम्यूनिस्ट पार्टी से संबधित किसी संगठन की सदस्यता ली थी. वह बसंत रितु का एक सुंदर दिन था और मैं पहली कक्षा के साथियों के साथ स्कूल के प्रांगण में खड़ी थी. विद्यालय के सभी अधिकारियों ने अपने गले में लाल रंग की रेशमी रूमाल लपेट रखा था और उसी तरह के छोटे रूमाल हमारे गलों पर भी लपेटे गए थे. युवा क्रांतिकारियों के रूप में हमने ध्वज की सलामी दी और राष्ट्रगान गाया. वापस लौटते समय एक लड़की ने मुझसे पूछा कि क्या सच में लाल रूमाल पर लाल रंग क्रांतिकारियों के बलिदान से आया था? एक लड़के ने जवाब दिया कि बेवकूफ मत बनो ये कृत्रिम रंग से आया है. मेरे लाल रूमाल का रंग धीरे धीरे उड़ता चला गया और मैं मध्य विद्यालय पहुंच गई. उस दौरान एक नया शब्द हमारे शब्दावली से जुड़ गया ‘कम्यूनिस्ट यूथ लीग’.

यह पार्टी का युवा संस्करण था और इसकी संगठनात्मक संरचना पार्टी की ही तरह थी जो 14 साल से लेकर 28 साल तक के युवाओं के लिए बनाई गई थी. पार्टी की तरह इसमें भी चयनित लोगों को लिया जाता है . आठवी कक्षा में पढ़ने के दौरान एक टीचर ने हमसे कहा कि कम्यूनिज्म एक धर्म है यदि तुम इसे मानते रहो तो तुम्हें यूथ लीग की सदस्यता ले लेनी चाहिए पर यदि तुम्हें इसमें विश्वास नहीं है तो बस नाम के लिए इससे जुड़ने की जरूरत नहीं है. पार्टी से वफादारी का मतलब मातृभूमि से प्रेम है. पार्टी के इतर चलने का मतलब विचारों से मतभद नहीं बल्कि देशद्रोह माना जाता है.

मैंने अपनी मां से सलाह मांगी और पूछा कि क्या मुझे कम्यूनिस्ट यूथ पार्टी की सदस्यता ले लेनी चाहिए ? इसका उन्होंने बहुत बेबाकी और स्पष्टता से जवाब दिया बिल्कुल, पार्टी सबसे बड़ी है.

जो कम्यूनिस्ट पार्टी सिर्फ बस नाम के लिए ही कम्यूनिस्ट है उसके सत्ता पर काबिज रहने के कारण उसकी विचारधारा के प्रति लोगों का झुकाव नहीं बल्कि खुद सत्ता ही है ,चीन के लोग पार्टी से डरते हैं. हथौड़े और हंसिया के प्रति लोगों की प्रतिज्ञा केवल दवाब या बल प्रयोग का नतीजा नहीं है , दरअसल पार्टी की सदस्यता को विशेष समाजिक अवसर के तौर पर विकसित किया गया है जिसके अंदर नौकरी में तरक्की और अन्य सुविधओं का लालच छुपा हुआ है.ऐसे में दवाब के बजाय लालच की वजह से लोग पार्टी के सैनिक बन जाते हैं.

मैं यूथ लीग की सदस्य ही नहीं बल्कि कक्षा में सार्वधिक नंबर लाने की वजह से कक्षा सचिव बन गई. मैं इस पद पर चार साल रही. एक दिन हमारे कक्षा के सलाहकार ने आकर कहा कि अगर तुम में से कोई विदेश में जाकर पढ़ने की सोच रहा है तो पार्टी से जुड़ने का कोई मतलब नहीं है लेकिन अगर तुम्हें चीन में रह कर पढ़ना है तो मैं तुम्हें पार्टी से जुड़ने का सुझाव दूंगा. पार्टी की सदस्यता तुम्हें संकटों से बचायेगी. पार्टी की तानाशाही प्रवत्ति के बारे में मेरे मन में कोई संदेह नहीं बचा था. 

मैं कक्षा में अपने अधिकांश साथियों की तरह अमेरिका में जाकर पढ़ाई करना चाहती थी और मेरी मां मुझे बार बार पार्टी की सदस्यता लेने के लिए प्रोत्साहित करती रहती थी. एक बार मैनें एक अधिकारी का इंटरव्यू लेने के दौरान उससे ये पूछ लिया कि क्या पार्टी के मोर्चे को भी इस परियोजना से जोड़ा जायेगा ? इस पर वो मुझसे काफी नाराज़ हो गये. इंटरव्यू के आधार पर मेरे लेख की चीन भर में आलोचना हुई औऱ विरोध होने लगे. इन सबके पीछे वही चीनी तंत्र था जो स्वतंत्र विचारों वाले किसी भी व्यक्ति को अस्वीकार कर देता है.

चीनी विचारक और मानवधिकार कार्यकर्ता लिन झाओ को माओ विरोधी होने की वजह से उन्हें 19060 में गिरफ्तार कर लिया . उनकी खून से लिखी गई कृतिया आजादी के लेख नाम से प्रचलित हुए. जब लिन को 35 साल की उम्र में 1968 में मार डाला गया था तो उनकी मौत की खबर के साथ उनकी मां के पास पांच सेंट का बुलेट शुल्क चुकाने का निर्देश दिया गया था. उन्हें सुझोउ शहर के बाहर दफनाया गया है जहां आज भी लोकतंत्र समर्थक वहां श्रंध्दाजंली देने जाते हैं.

इसी तरह से कई बार जेल की सज़ा काट चुके लेखक और आलोचक लिउ जियाबाओ को थ्यांमान चौक आंदोलन और उनके लेखों के लिए एक बार फिर मानवअधिकारों पर 8 वां अध्याय लिखने के लिए 2009 में एक बार फिर से 11 साल की सज़ा सुनाई गई. उन्हें 2010 में नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया हलांकि सात साल बाद ही कारागार में उनकी मौत हो गई . लिन झाओ की तरह कहीं लिउ जियाबाओ की समाधि कहीं तीर्थस्थल न बन जाये चीनी सरकार ने लिउ जियाबाओ को आनन फानन में समुद्र में दफना दिया. लिउ की मौत के तीन साल बाद भी चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी अब अपने सबसे मजबूत और अत्याचारी दौर में है.




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