“पानी के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल है… लेकिन सोचिए, अगर हर दिन की शुरुआत ही एक-एक बूंद पानी के लिए संघर्ष से हो…मध्य प्रदेश के कटनी जिले का एक गांव आज भी इसी दर्द को जी रहा है। चट्टानों से टपकती हर बूंद… हर सांस की कीमत चुकानी पड़ती है। यहां के लोग पीढ़ियों से खाई में उतर कर, मौत से जंग लड़ते हुए पानी इकट्ठा कर रहे हैं… और हालात इतने खराब हैं कि लोग यहां अपनी बेटियों का ब्याह भी करने से कतराते हैं।”VO 01 -“कटनी जिले से महज 65 किलोमीटर दूर… बहोरीबंद ब्लॉक के रीठी जनपद में बसा खुसरा गांव — जहां सदियों से पानी की तलाश में जिंदगी थम सी गई है। गांव के बीचोबीच एक खाई है, जहां चट्टानों से टपकती बूंदों को सहेज कर ग्रामीण अपनी प्यास बुझाते हैं। गांव की महिलाएं और बच्चे हर दिन उसी खतरनाक रास्ते से गुजरते हैं… भारी बर्तन सिर पर उठाए, पहाड़ की चढ़ाई चढ़ते हैं। गांव की बुजुर्ग महिला बताती हैं कि जब वे करीब पचास साल पहले इस गांव में ब्याह कर आई थीं, तब भी हालात ऐसे ही थे… और आज भी कोई बदलाव नहीं आया।बेटे-बेटियां बड़े हो गए, पर संघर्ष वही है…
गांव के बुजुर्ग कहते हैं — बचपन से ही उन्होंने अपनों को खाई से पानी लाते देखा है। पानी की इस भयावह समस्या ने गांव के युवाओं के सपनों पर भी ताला जड़ दिया है। कई नौजवान आज भी अविवाहित हैं, क्योंकि कोई अपनी बेटियों को ऐसे हालात में ब्याहना नहीं चाहता। ग्रामीणों ने कई बार जिला प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और सरपंच से गुहार लगाई। बोरिंग करवाई गई, लेकिन पानी नहीं निकला। रीठी जनपद पंचायत के सीईओ का दावा है कि एक नई योजना पर काम हो रहा है — जिसमें पहाड़ से पानी खींचकर गांव तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा। जल्दी ही इसका काम शुरू होने वाला है। गर्मी के दिनों में इस गांव के हालात और बदतर हो जाते हैं। ग्रामीणों को जंगल के बीच, खतरनाक जानवरों के बीच से, जान हथेली पर रखकर एक-एक बूंद पानी जुटाना पड़ता है। गलबाघ, चीते जैसे जंगली जानवर भी उसी जगह पानी पीने आते हैं… जिन्हें देखकर महिलाएं अपनी जान बचाने के लिए पहाड़ पर चढ़ जाती हैं। जानवरों के जाने के बाद फिर वही संघर्ष शुरू होता है… पानी की एक-एक बूंद को इकट्ठा करने का संघर्ष। गांव की लड़कियां बताती हैं कि इसी पानी भरने के जिम्मेदारी की वजह से कई लड़कियां पढ़ाई भी नहीं कर पातीं।