एक्सपोज हो गए इंदौर के अफसर, आबकारी राजस्व में सबसे नीचे पहुंच गया इंदौर संभाग
भोपाल। मध्यप्रदेश के आबकारी महकमे में पहली बार उल्टी गंगा बहती दिख रही है। इसकी वजह हैं इंदौर संभाग के पावरफुल आबकारी अफसर। प्रदेश में पहली बार शराब ठेकेदारों ने मांग की है कि उनके संबंध में रियायत का निर्णय लेने का अधिकार जिले के बजाए राज्य शासन खुद ले। इसकी वजह है अफसरों के आपसी झगड़े और लूट-खसोट की नीति।
इंदौर संभाग में आबकारी के ठेके करवाने में विभाग के कुछ मठाधीश अधिकारी एक्सपोज हो चुके हैं। कुछ का निलंबन हुआ और कुछ का तबादला। कुछ के तबादलों की बड़ी कार्यवाही भी मंत्रालय की देहरी पर चल रही है। इंदौर संभाग में शराब दुकानों का ठेका होने की प्रक्रिया अप्रैल खत्म होने के बाद भी पूरी होने का नाम नहीं ले रही है। जबकि पूरे प्रदेश के आबकारी ठेके नीलाम हो चुके हैं। इंदौर संभाग का एक दिलचस्प तथ्य यह है कि शराब दुकानों का ठेका, ठेकेदार ले रहे हैं या अधिकारी? और अफसर प्रशासनिक काम कर रहे हैं या ठेकेदारी? इंदौर संभाग में यह बड़ा असमंजस है। आखिर इंदौर जैसा उच्च राजस्व वाला संभाग प्रदेश में आज आबकारी विभाग में दृष्टि से सबसे नीचे पायदान पर है तो इसका जिम्मेदार किसे ठहराया जाना चाहिए?
आखिर क्या बात है कि इंदौर संभाग और निमाड़ में शराब के ठेके विगत 10 वर्षों में सबसे कठिन परिस्थिति से गुजरते हुए अब तक तक कराए जाने की नौबत आ गई है। वास्तव में यह बात आबकारी आयुक्त, प्रमुख सचिव व मुख्य सचिव स्वयं जानते हैं कि ठेके क्यों नहीं हो रहे हैं और यह सब होने का फायदा किसे मिल रहा है। मुख्यसचिव इकबाल सिंह बैंस खुद आबकारी कमिश्नर रह चुके हैं। उन्हें पता है कि विभाग के कौन से अफसर प्रशासन में दक्ष हंै और कौन ठेकेदारी और ग्रुप बाजी या षड्यंत्र करने में।
खबर है कि मालवा अंचल के शराब ठेकेदार समूह लाहोरी ग्रुप के मंजीत सिंह भाटिया ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्य शासन से मांग की है कि लॉकडाउन के दौरान दुकान बंद रहने पर लायसेंस फीस माफ करने संबंधी निर्णय सरकार खुद ले। उनकी मांग है कि जिस तरह सरकार ने 28 मार्च से 31 मार्च तक की लायसेंस फीस माफ की है, ठीक उसी तरह 22 से 27 मार्च तक की भी छूट शासन स्तर से तय हो। अभी सरकार ने इस बारे में निर्णय लेने का अधिकार जिला योजना समितियों के विवेक पर छोड़ा है। शिकायत में कहा गया है कि आबकारी विभाग के कतिपय अफसर इसके लिए रिश्वत मांग रहे हैं।
यह मांग इंदौर संभाग में उठने की मुख्य वजह भी वहां के जागीरदार की भूमिका में रहे अफसर हैं। वर्तमान में जो आबकारी अधिकारी इस संभाग में प्रमुख हैं, उनकी लगभग पूरी नौकरी ही इंदौर संभाग के जिलों में कटी है। सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की वे मलाईदार पदों पर काबिज रहने में कामयाब रहे। क्षेत्र के शराब कारोबार को अपनी मर्जी से नियंत्रित कर रहे इन अफसरों के आपसी झगड़े भी कम नहीं हैं, जिसकी गाज यदा-कदा शराब ठेकेदारों पर गिरती रहती है। आबकारी महकमे के इन्हीं जागीरदारों की वजह से पहली बार मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव तक शिकायत लेकर ठेकेदार पहुंच रहे हैं। उनके इस झगड़े में राजनीति भी इन्वाल्व होने लगी है।
अफसरों की जागीरदारी का आलम यह है कि इंदौर संभाग में शराब ठेकों की नीलामी का काम अब तक पूरा नहीं हो पाया। वे अपनी मर्जी से फैसले ले रहे है। इस स्थिति में मांग उठ रही है कि सरकार इस अंचल के आबकारी विभाग पर ध्यान केंद्रित करे। ठेकेदार जब नीति के मुताबिक ठेके लेता है और कुछ अंश पहले जमा करता है। बाकी रकम किश्तों में देने के साथ अपना कारोबार चलाने के लिए वह बैंक से लोन लेता है। ऐसे में कारोबार बंद रखने पर उसे राहत देना भी सरकार का काम है, न कि इसे क्षेत्रीय अफसरों के रहमोकरम पर छोड़ा जाना चाहिए।