कानपुर:
Lockdown: औरया हादसे के बाद अब उत्तर प्रदेश में जगह-जगह पुलिस ट्रकों के ऊपर बैठकर जाने वालों को उतार रही है. राज्य सरकार का दावा है कि इनके लिए बसों की व्यवस्था की जा रही है. लेकिन दूसरे राज्यों के हजारों श्रमिक कई जगहों पर हैरान परेशान सड़क पर दिख रहे हैं. बस अच्छी बात ये है कि स्थानीय लोग इन्हें खाने से लेकर ज़रूरी सामान तक पहुंचा रहे हैं.
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दिल्ली-हावड़ा राजमार्ग से चलते हुए हमारे सहयोगी रवीश रंजन शुक्ला कानपुर पहुंच गए हैं. यहां हर तीसरे ट्रक में सामान की तरह भरे मजदूर बिहार, झारखंड और मध्यप्रदेश की ओर जाते दिखे. सरकार की तरफ़ से इन्हें भले मदद न मिली हो लेकिन कानपुर के हजारों हाथ इन मज़दूरों के मदद के लिए बढ़े हैं.
कानपुर के पहले टोलटैक्स बैरियर पर दिल्ली, हरियाणा, पंजाब से लगातार ट्रक में सामान की तरह भरकर मजदूर उप्र, बिहार, मप्र, झारखंड की ओर जा रहे हैं. जिन बंद कैंटरों में गाड़ियां भरकर जाती थीं आज इंसान निकल रहे हैं. औरया हादसे के बाद कानपुर की बार्डर पर पुलिस की सक्रियता बढ़ गई है.
ट्रक ड्राइवर के रहमो-करम पर ख़तरनाक तरीक़े से जा रहे इन मज़दूरों को उतार तो लिया गया है लेकिन हज़ारों मज़दूरों के लिए ज़िला प्रशासन के पास न भेजने के लिए पर्याप्त बसें हैं और न ही रुकने के लिए जगह.
सड़क पर खाना खा रहे एक वयक्ति ने कहा कि ”क्या करें डेढ़ महीना इंतजार तो कर लिया, कितना करें, न ट्रेन चलाई न बस, हम क्या करें. ट्रक वाला हमें फ्री ले जा रहा था. हमारे पास अब न तो पैसा बचा है न खाना. अब उन्होंने उतार लिया है कह रहे हैं कि पांच सौ रुपये देकर प्राइवेट बस से चले जाओ, कहां से चले जांए.”
कई जगहों पर मजदूर सड़कों के किनारे आपको बैठे मिल जाएंगे. लेकिन हापुड़ से लेकर कानपुर तक इन मज़दूरों की मदद के लिए स्थानीय लोग जी जान एक किए हुए हैं. हमें कानपुर में कड़ी धूप में मज़दूरों को जगह-जगह खाना से लेकर पानी तक देते लोग दिखे. इसी रास्ते पर हमारी मुलाकात 62 साल की मंजू और उनके पति से हुई. नंगे पैर श्रमिकों को देखकर वो घर-घर से पुरानी चप्पले मांगकर लाईं और मज़दूरों को बांटने लगीं.
कानपुर की मंजू ने कहा कि ”क्या करते भैया. देखा मजदूरों के पैर में छाले निकल आए. बोतल को चप्पल बनाकर वो चल रहे थे. बहुत दुख हुआ, इससिए चप्पल देने की सोची. लोगों से मांगी हैं पुरानी चप्पलें. सेनीटरी पैड ओर मास्क भी दे रही हूं.”
दिल्ली-हावड़ा नेशनल हाइवे पर हज़ारों लोगों के इतने मदद के हाथ बढ़े कि लेने वाले कम और देने वालों की संख्या ज्यादा दिख रही थी. सरकार ने तो इन मज़दूरों को इनके हाल पर छोड़ दिया है लेकिन इनकी परेशानियों के जख़्मों पर मरहम लगाने वाले लोग हमें जगह-जगह मिल रहे हैं.
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