बूथ, बजट और विकास का त्रिकोण और साथ में हिंदुत्व का एजेंडा. लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों के महासंग्राम के लिए भारतीय जनता पार्टी की रणनीति इसी के इर्द-गिर्द बनती दिख रही है. चुनावों की घोषणा होने में तकरीबन एक महीने का वक्त बाकी है लेकिन बीजेपी के दिग्गजों ने फरवरी की शुरुआत से ही इस रणनीति को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है जिसमें बीजेपी का संगठन, केंद्र की सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार तीनों का योगदान है.
यूपी को लेकर बीजेपी की इस रणनीति की बड़ी वजह पहले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन तो उसके बाद कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी को पार्टी में शामिल कर पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी सौंपना है. एसपी-बीएसपी के गठबंधन बीजेपी के लिए चुनौती है यह बीजेपी के नेता भी मानते रहे हैं. प्रियंका की एंट्री से समीकरण बदलेंगे इसके भी अनुमान लगाए जाने लगे हैं. ऐसे में बीजेपी नेतृत्व यूपी में हमलावर चुनावी अभियान चलाने की पक्षधर है ताकि 2014 के चुनाव में सहयोगी अपना दल के साथ 73 सीटों पर जीत हासिल करने के रिकॉर्ड में 2019 में न्यूनतम नुकसान हो.
2019-20 के लिए योगी सरकार का बजट इसकी बानगी है
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 7 और 8 फरवरी यानी लगातार दो दिन यूपी में गुजारे और तीन शहरों में बूथ अध्यक्षों के सम्मेलनों को संबोधित किया. खास बात यह है कि इनमें अलीगढ़ पश्चिमी यूपी तो महाराजगंज और जौनपुर पूर्वी यूपी में हैं. अमित शाह ने लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी में उत्तर प्रदेश के बूथ प्रबंधन पर फोकस किया है. खास बात यह कि अमित शाह इन तीनों जगहों पर एसपी-बीएसपी गठबंधन के खिलाफ ज्यादा हमलावर रहे और कहा कि इसके खिलाफ मोदी जी की टोली है. शायद बीजेपी नेतृत्व प्रियंका गांधी के यूपी आने और फिर उनके असर को भांपने के बाद ही कांग्रेस और प्रियंका पर भी हमलावर होगा. बूथ अध्यक्षों की इन सभाओं में अमित शाह ने उनसे गठबंधन की चिंता न करने और हर बूथ पर मोर्चा संभालने की नसीहत दी.
अयोध्या में अभी तक मंदिर न बनने पर यूपी में जनता के बीच से सवाल उठ सकते हैं. इसका अंदाजा बीजेपी नेतृत्व को है इसलिए शाह के भाषणों में मंदिर का मुद्दा भी प्रमुखता से शामिल हो रहा है, जिसमें वे बूथ अध्यक्षों को बता रहे हैं कि बीजेपी की लाइन यही है कि पार्टी अयोध्या में उसी जगह भव्य मंदिर चाहती है और अयोध्या की गैर विवादित जमीन वापस लेने की केंद्र की अर्जी महत्वपूर्ण पहल है. शाह अगर गठबंधन के खिलाफ बोल रहे हैं और अयोध्या का मंदिर मुद्दा भी उठा रहे हैं तो केंद्र सरकार के बजट के प्रमुख बिंदुओं का भी हवाला दे रहे हैं. संदेश और संकेत साफ है कि विपक्षी पाले के खिलाफ बूथ के कार्यकर्ताओं में दम भरना है तो बजट के जरिए विकास तो अयोध्या के मुद्दे से हिंदुत्व के एजेंडे को भी धार देनी है.
गोवंश के भरण-पोषण पर खर्च करने का ऐलान
ऐसे ही एजेंडे पर यूपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार भी चल रही है. 2019-20 के लिए योगी सरकार का बजट इसकी बानगी है जिसमें हाई-वे, एक्सप्रेस-वे जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ीं विकास परियोजनाएं और लड़कियों के लिए सुमंगला जैसी समाज कल्याण की योजनाएं शामिल हैं तो हिंदू धर्म के प्रतीकों और गोशालाओं को भी भरपूर तवज्जो देकर हिंदुत्व को साधने की कोशिश की गई है. योगी सरकार के बजट में ग्रामीण क्षेत्र में गोवंश के रख-रखाव और गोशाला निर्माण के लिए 247.60 करोड़ रुपए, शहरी क्षेत्र में बेसहारा पशु आश्रय योजना के लिए 200 करोड़ रुपए और शराब पर सेस से होने वाली 165 करोड़ की आय को बेसहारा गोवंश के भरण-पोषण पर खर्च करने का ऐलान किया है.
वहीं बजट में हिंदू एजेंडे को धार देने की भी भरपूर कोशिश की गई है. गोशालाओं के साथ ही हिंदू धर्म के आस्था केंद्रों का भरपूर ख्याल रखा गया. अयोध्या और वाराणसी के मंदिरों के लिए बजट में करीब 3 अरब रुपए का प्रावधान किया गया है. यही वजह है कि योगी और उनके मंत्री जनता के बीच बजट को विकास के साथ सांस्कृतिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्धता के रूप में पेश कर रहे हैं.
बीजेपी संगठन से शाह और यूपी सरकार की ओर से योगी और उनके मंत्री बूथ, बजट और विकास के साथ हिंदुत्व के एजेंडे की रणनीति को जमीन पर उतार रहे हैं तो केंद्र सरकार भी पीछे नहीं है. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 8 फरवरी को अयोध्या पहुंचकर कई हजार करोड़ रुपए की सड़क परियोजनाओं का शिलान्यास किया. इनमें सबसे ज्यादा तवज्जो 84 कोसी परिक्रमा मार्ग से जुड़ी परियोजना को दी जा रही है. इससे संबंधित होर्डिंग अयोध्या में सबसे ज्यादा लगाए गए हैं जिनमें बताया गया है कि इसमें कितने मंदिर शामिल होंगे. अयोध्या से पहले गडकरी प्रयागराज में कुंभ मेला भी पहुंचे. उल्लेखनीय है कि योगी सरकार कुंभ को भी 2019 के बीजेपी के सियासी लक्ष्य से जोड़कर इसका जबरदस्त प्रचार-प्रसार कर रही है.