भोपाल। देश के मंत्री, सांसद और विधायक पुरानी पेंशन ले रहे हैं। सरकार, कई नेताओं को तो लाखों रुपए पेंशन दे रही है। लेकिन वही सरकार अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को पेंशन नहीं देना चाहती। खुद नेता पुरानी पेंशन लेना चाहते हैं और कर्मचारियों को नई पेंशन स्कीम लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। नई पेंशन स्कीम में सिर्फ ढाई हजार रुपये महीने ही मिलेंगे। जबकि पुरानी पेंशन के अनुसार यह राशि हर महीने 50 हजार रुपए तक होगी। मध्य प्रदेश के कर्मचारियों का यह दर्द दौरान सामने आया। अपने हक के लिए कर्मचारियों ने खुलकर बात रखी।
नेताओं को 5 साल में ही लाखों की पेंशन
कर्मचारियों ने कहा— सरकार नेताओं, सांसदों, विधायकों को पुरानी पेंशन का लाभ दे रही है। कर्मचारियों को नई पेंशन देकर छला जा रहा है। कर्मचारी 35 से 40 साल नौकरी करता है, जबकि नेता 5 साल में ही पेंशन का पात्र हो जाता है। नेताओं के लिए खजाना खोल रखा है, कर्मचारियों के लिए तिजोरी बंद कर दी है।
मध्य प्रदेश के नेताओं को पेंशन, पढ़कर दंग रह जाएंगे आप
मध्य प्रदेश में एक दिन के लिए भी विधायक बन गए तो हर महीने 20 हजार रुपये की पेंशन फिक्स हो जाती है। इस पेंशन में हर साल 800 रुपये इजाफा भी होता है। छत्तीसगढ़ में विधायकों को हर महीने 35,000 रुपये और सबसे ज्यादा मणिपुर के विधायकों को 70,000 रुपये महीने पेंशन मिलती है। मध्य प्रदेश में पूर्व विधायकों को ऐसी ढेरों सुविधाएं करीब नि:शुल्क मिलती रहती हैं। अगर कोई विधायक बाद में सांसद बन जाए तो उस नेता को दोनों पेंशन यानि विधायक की भी और सांसद की भी राशि, हर महीने डबल पेंशन मिलती हैं।
नेताओं को एक साल में 100 करोड़ पेंशन
मध्य प्रदेश के सूचना के अधिकार कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ को मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2020-21 में पूर्व सांसदों के पेंशन के रूप में लगभग 100 करोड़ रुपये (99.22 करोड़) दिये गए हैं। आपको बता दें कि एक दिन के लिए सांसद बनने पर ही हर महीने 25,000 रुपये की पेंशन तय हो जाती है। पूर्व सांसद रेल यात्रा फ्री दी है। जबकि सरकारी कर्मचारी को किसी प्रकार का लाभ नहीं दिया जाता है।
कांग्रेस का निर्णय सराहनीय
कर्मचारी नेता उमाशंकर तिवारी ने कहा कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में कई राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करने का वादा किया है। यह निर्णय कर्मचारी हित में है। मध्य प्रदेश में हाल ही में हुए चुनाव में भी कांग्रेस ने यह वादा किया है। लेकिन भाजपा इससे क्यों दूर भाग रही है, यह बात समझ के परे है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को होगी नुकसानी
आपको बता दें कि देश में सरकारी कर्मियों, पेंशनरों, उनके परिवारों और रिश्तेदारों की संख्या करीब 10 करोड़ है। अगर ओपीएस लागू नहीं होता है, तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को राजनीतिक नुकसान संभव है।
एनपीएस और ओपीएस में अंतर ऐसे समझें
एनपीएस को नेशनल पेंशन स्कीम कहा जाता है। जबकि ओपीएस ‘ओल्ड पेंशन स्कीम’ कही जाती है। जो कर्मचारी वर्ष 2004 के बाद भर्ती हुए उन्हें एनपीएस के दायरे में रखा गया। ओपीएस के प्रावधान के अनुसार रिटायरमेंट के समय कर्मचारी को 50 हजार रुपये महीने वेतन मिलता है तो उसे पेंशन के रूप में करीब हर महीने 25 हजार रुपये मिलते थे। जबकि एनपीएस के प्रावधान के अनुसार 50 हजार वेतन में रिटायर होने वाले कर्मचारी को करीब 2700 रुपये ही मासिक पेंशन मिलेगी। ओपीएस में हर साल दो बार महंगाई राहत भी जुड़ती है। कर्मचारी की मौत पर पत्नी या पति को भी पेंशन मिलना जारी रहता है, लेकिन एनपीएस में यह प्रावधान भी नहीं हैं।
ऐसे तय होती है एनपीएस
नई पेंशन स्कीम में कर्मचारी के वेतन से 10 प्रतिशत राशि काटी जाती है। सरकार अपनी ओर से 14 प्रतिशत राशि एनपीएस में जमा की जाती है। कुल मिलाकर 24 प्रतिशत राशि जमा होती है। सेवानिवृत्ति के समय कुल जितनी भी राशि जमा होती है उसमें से कर्मचारी को एकमुश्त 60 फीसदी राशि दे दी जाती है।
शेष 40 फीसदी राशि में से हर महीने पेंशन बनती है।