नई दिल्ली, ब्यूरो। ‘एक देश, एक चुनाव’ यानि कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation One Election) की बात पिछले कई वर्षों से चल रही है, लेकिन शुक्रवार को अचानक इस विषय पर फिर चर्चा छिड़ गई। यह विषय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं। सरकारी मशीनरी इसी में लगी रहती है। इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है। पहली बार नवंबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में पहली बार ‘एक देश, एक चुनाव’ की बात कही थी। आज जब 3 साल बीत गए तब करीब 3 साल बाद 1 सितंबर 2023 को सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन पर एक समिति बनाई है। इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को मनोनीत किया गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 18 से 22 सितंबर के विशेष सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन पर सरकार बड़ा फैसला ले सकती है। आपको बता दें कि भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन प्रणाली लागू होने के बाद पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे। यानि कि अगर साल 2024 में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं तो उसी वर्ष सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव भी होंगे। आपको बता दें कि आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। प्रधानमंत्री मोदी को दिसंबर 2015 में विधि आयोग ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से विकास कार्यों पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 2015 में सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए। PM मोदी ने जून 2019 में पहली बार औपचारिक तौर पर सभी पार्टियों के साथ इस मसले पर विचार विमर्श के लिए बैठक बुलाई थी। तब केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ BJP नेता रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि देश में कमोबेश हर महीने चुनाव होते हैं, उसमें खर्चा होता है। आचार संहिता लगने के कारण कई प्रशासनिक काम भी रुक जाते हैं। हालांकि, कई पार्टियों ने विरोध दर्ज कराया था। वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर 2019 में सर्वदलीय बैठक हुई थी, जिसकी अध्यक्षता पीएम मोदी ने की थी। उस वक्त सपा, टीआरएस, शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियों ने इस सोच का समर्थन किया था। वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संसद तभी कानून बना सकती है जबकि इसके लिए दो-तिहाई राज्यों की रजामंदी हो।