जंगली हाथियों की मौत पर कृषि, वन और पशु चिकित्सा विभाग की राय जंगली हाथियों की मौत से भारी विवाद उपज गया, कृषि विभाग, वन विभाग और पशु चिकित्सा विभाग की अलग – अलग राय
उमरिया – जिले के विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बीते दिनों हुई जंगली हाथियों की मौत ने नया मोड़ ले लिया है, ग्रामीणों से लेकर जानकार और कृषि विभाग के अधिकारी कोदों खाने से मौत को लेकर संशय व्यक्त किया है, जबकि इस अलग अलग राय होने के बाद से जांच रिपोर्ट सहित बांधवगढ़ प्रबंधन पर सवाल खड़े हो रहे हैं, कृषि विभाग और पशु चिकित्सा विभाग ने जंगली हाथियों की मौत पर अपने अपने बयान दिये हैं, जिस पर बांधवगढ़ नेशनल पार्क में हलचल मच गई है। मामला है बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हुई 10 जंगली हाथियों की मौत का, जिनकी मौत को लेकर हर रोज नये बयान सामने आ रहे हैं, अभी हाल ही में कृषि विभाग और पशु चिकित्सा विभाग ने अपने बयान जारी किये हैं, वहीं अगर किसानों की बात करें तो उनका मानना है कि कोदों खाने से जब इंसान, मवेशी नहीं मरते तो बुद्धिमान हाथी कभी नहीं मर सकता है। वहीं कृषि विभाग ने बताया है कि अगर कोदों फसल में फंगस लगी थी तो यह बात वन विभाग ने नहीं बताई है, रही बात बात रिपोर्ट की तो वह बांधवगढ़ प्रबंधन ही जाने, जबकि पशु चिकित्सा विभाग के डाक्टर का मानना है कि तमाम रिपोर्ट में हाथियों की मौत कोदों खाने से होना बताया जा रहा है, परंतु हाथी का मरना कहीं न कहीं संशय पैदा कर रहा है। किसान झल्लू चौधरी का कहना है कि हाथी खितौली तरफ मरे हैं, कभी ऐसा नही हुआ है, हम तो दसों दिन भगाते हैं, रोज खाते हैं एक भी मवेशी नही मरते, अभी वो बगल के खेत मे चरा रहा है, हमारे खेत मे जबर्दस्ती मवेशी घुसा रहा है तो हम मना किये हैं कि यहां न लाओ।वहीं दूसरे किसान सुरजन सिंह का कहना है कि हाथी की मौत कोदो खाने से नही होगी, अधिक खा लें तो हम नही जानते हैं।वहीं महिला किसान सुकवरिया बाई का कहना है कि इसको जानवर खाते हैं, भैस, गाय सभी खाते हैं, आदमी भी खाते हैं कहां कोई मरता है, इसको खाकर हाथी नहीं मर सकते हैं यह सब फर्जी बात है गरीबों को डरवाया जा रहा है, अब गरीबों को डरवाया जा रहा है अगर मर रहे हैं तो अब सरकार का होता तो कोई नहीं बोलता।इस मामले में जब उप संचालक कृषि संग्राम सिंह मराबी से बात किया गया तो उनका कहना है कि हाथियों की मौत का कारण कोदो की फसल का होना बताया जा रहा है, पर कोई देखा नही है कि उसमें फफूंद लगा था या नही लगा था, वैज्ञानिकों के द्वारा बताया गया है कि पौधों की फसल यदि गीली है और उसको काट कर ढेरी लगा दी जाय और पानी बरस जाय और पानी के बाद धूप लगती है तो ऐसी स्थिति में उसके अंदर जो नमी रहती है उससे फफूंद लग जाती है,
वहां के किसान ने भी नही देखा और फारेस्ट वालों ने भी नही देखा कि वहां ढेर लगा था या नही लगा था, या किसान ढेर लगा कर रखे थे तो हाथी ने उसको खाया इस बात को बताने वाला कोई नही है तो हम यह नही कह सकते हैं कि कोदो की फसल को ही खाने से हुई है, न ही हम उस पर कोई प्रतिक्रिया देना चाहेंगे।वहीं इस मामले में जब उप संचालक पशु चिकित्सा विभाग डा. के के पाण्डेय से बात की गई तो उनका कहना है कि फारेस्ट वालों ने पब्लिक को बताया कि कोदो की फसल खाये हैं तो फंगल इंफेक्शन होने से मर गये, जितनी जगह सैम्पल जांच के लिए भेजी गई थी, उसमें बताया गया है कि कोदो खाने से जो एसिड बनता है, फंगल इन्फेक्शन हो जाता है जो एसिड बनता है उसको सीपीए बोलते हैं उससे मौत होना बताया गया है, वहीं जब पूंछा गया कि ग्रामीण कहते हैं कि गाय – बैल खाते हैं तो उनकी मौत नही होती है, इस कहे कि गाय – बैल कितना खाते हैं, वैसे कुछ गाय बैल में थोड़ा बहुत प्रोब्लम होती है पर उसकी मात्र पर निर्भर करता है, कितनी मात्रा में खाये और कौन सा कोदो फंगल इन्फेक्टेड था या नही था, इंफेक्शन यदि नही था तो कोदो से मौत नही होगी, मौत फंगस से होती है, कोदो से नही होती है।गौरतलब है कि यदि उप संचालक कृषि की बात मान लें तो किसानों की कोदो की फसल खेत मे खड़ी थी और खड़ी फसल में कभी फंगस नही लगती है। जिससे लगता कि हाथी किसी अन्य घटना के शिकार हुए और वन विभाग अपनी कमी छिपाने के लिए आनन फानन में किसानों की खड़ी फसल को जोतवा कर जलवा दिया ताकि कोई साक्ष्य ही बचे और देश के प्रधानमंत्री के मोटे अनाज को बढ़ावा देने के सपने को चकनाचूर कर दिया।