नरेंद्र मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन कानून CAA को अपने मध्यप्रदेश में लागू न होने देने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री कमलनाथ क्या इस मामले में चूक कर गए? नाथ ने इस कानून के खिलाफ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ मार्च भी निकाला था। दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी के साथ सांकेतिक उपवास पर भी बैठे थे। कमलनाथ ऐसे पहले नेता हैं, जिन्होंने CAA अधिनियम में जो है उसे अनदेखा कर जो नहीं है, उसे देखने का आह्वान किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संसद में पेश और दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा द्वारा बहुमत से पारित इस कानून के मामले में राजनीतिक मंच पर वाकई कमलनाथ कहीं चूक कर गए या फिर जानबूझकर कर किनारा कर लिया?
सवाल इसलिए क्योंकि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास अपने विरोध को मुखरता प्रदान करने का एक सुअवसर था। 126 वें संविधान संशोधन विधेयक पर राज्य विधानसभा की सहमति देने के लिए आहूत विशेष सत्र के दौरान कमलनाथ CAA कानून को वापस लेने की मांग सम्बंधी प्रस्ताव विधानसभा से पारित करा सकते थे। पारित कराने की कोशिश तो कर ही सकते थे। ऐसा कर लेते तो कम्युनिस्ट सरकार वाले केरल के बाद वे दूसरे मुख्यमंत्री होते ,जो यह प्रस्ताव पारित करता। कांग्रेस शासित किसी राज्य के वे पहले चीफ मिनिस्टर होते जो दूसरे राज्यों के लिए मिसाल पेश करता। लेकिन, मध्यप्रदेश विधानसभा का दो दिवसीय सत्र नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की आहट के बिना ही समाप्त हो गया। उधर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह CAA विरोधी प्रस्ताव पास करने वाले पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री का खिताब ले उड़े। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उनका अनुसरण करते दिख रहे हैं।
तो बात कमलनाथ की। क्या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने जानबूझकर कर नागरिकता कानून विरोधी प्रस्ताव से किनारा कर लिया! या वे यह कदम उठाना भूल गए? अथवा नागरिकता कानून का विरोध अब कोई मुद्दा नहीं है? केंद्र की राजनीति में 40 सालों का सुदीर्घ अनुभव रखने वाले कमलनाथ चतुर सुजान सियासतदान हैं। यूं ही नहीं अपने बाल सखा संजय गांधी और उन्हें तीसरा बेटा मानने वालीं इंदिरा गांधी के जाने के बाद भी दशकों से वे दिल्ली में अपना राजनीतिक रसूख बरकरार रखे हुए हैं। सियासी बयार की समझ है उन्हें। सम्भवतः इसीलिए राग नागरिकता का गायन एक खास प्रहर तक करने के बाद उन्होंने सुर बदल लिया। अब तो इस कानून की जमकर मुखालफत करने वाले कांग्रेसी कानूनविद कपिल सिब्बल भी कह रहे हैं कि कोई राज्य नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने से इंकार नहीं कर सकता। ऐसा करना भी संभव नहीं है क्योंकि संविधान के अनुसार नागरिकता का विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। यही वजह रही होगी, जो कमलनाथ और उनकी मध्यप्रदेश कांग्रेस ने विधानसभा के फ्लोर का इसके लिए उपयोग नहीं किया। कमलनाथ इसे लेकर सवाल जवाब होने से पहले ही दावोस निकल गए, जहां उन्हें वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की सालाना बैठक में शामिल होना है।
- मनीष पाठक