उमा की मध्यप्रदेश में सक्रियता से भाजपा में बेचैनी
धीरज चतुर्वेदी
मुलाक़ात हुई, क्या बात हुई, यह बात किसी से ना कहना। मध्यप्रदेश कि राजनीति में भी सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही खिचड़ियों के प्रकार पकने शुरू हो गये है।
उमाभारती की मध्यप्रदेश की सियासी जमीन पर सक्रियता। मंगलवार को उमा ओर सिंधिया कि मुलाक़ात के कई मायने निकाले जा रहे है। इस नये गुल से गुलज़ार होती भाजपा कि तस्वीर ने उन लोगो कि बेचैनी बढ़ा दी है जो उमा के धुर विरोधी रहे है। क्या एक नया खेमा ताकतवर हो रहा जो सियासत कि पलटी में भूकंप के झटके जैसा होगा, इसका चित्रण भविष्य में देखने को मिल सकता है।
प्रवचन से राजनीती के सफर में उमा भारती को अपनों से ही ठोंकर मिली है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कि दादी राजमाता विजयराजे सिंधिया के आशीर्वाद से ही उमा भारती ने अपना सियासी रास्ता खोला था। कई बार सांसद ओर फिर कांग्रेस कि दिग्विजय सिंह के 15 वर्ष के कार्यकाल को उखाड़ने के लिये जा बीजेपी में कोई चेहरा नहीं था। तब उमा भारती को अहम् जिम्मा सौपा गया.।
बीजेपी ने वर्षो बाद सत्ता सुख चखा। उमा भारती मुख्यमंत्री बनी। महज कुछ महीनों बाद ही वह अपनों का शिकार हो गई। हुगली के मामले ने उमा भारती को एहसास करा दिया कि भाजपा ने उनका इस्तेमाल किया.। कांग्रेस से सत्ता छीनने वाली साध्वी उमा को बीजेपी ने उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया जहाँ विद्रोह के सिवाय उनके पास कोई रास्ता नहीं था। अलग पार्टी बनाई। 2008 के विधानसभा चुनाव में उमा कि पार्टी का संतोषजनक प्रदर्शन नहींरहा यहाँ तक कि स्वयं उमा भारती तक टीकमगढ़ से पराजित हो गई। उमा कि फिर बीजेपी में वापसी हुई लेकिन उन्हें मध्यप्रदेश कि राजनीती से अलगथलग कर दिया गया। यहाँ तक कि 2013 के विधानसभा चुनाव में जब मोदी लहर में बीजेपी ने चारो ओर जीत दर्ज की तब उमा भारती का भतीजा राहूल लोधी अपने गृह टीकमगढ़ जिले कि खरगापुर सीट से पराजित हो गया।
बीजेपी में उमा के धुर विरोधियों ने सन्देश दिया कि उमा भारती का अपने गृह क्षेत्र में ही वजूद ख़त्म हो चुका है। उमा भारती का मध्यप्रदेश निकाला कर दिया गया। उत्तरप्रदेश के चरखारी से वह विधायक निर्वाचित हुई। बाद में झाँसी से सांसद चुनी गई। पिछला लोकसभा चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा। इधर 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा कि सत्ता को उखाड़ फेका गया। सियासत में कब क्या ओर कैसे हो जाये इसका आंकलन करने वाले महारथी भी फेल है। सिंधिया कि बगावत के बाद बीजेपी कि वापसी तो हो गई लेकिन तलवार अभी भी लटकी हुई है।
मध्यप्रदेश में भाजपा के कर्मठ निष्ठावानों को जिस तरह सिंधिया का सिक्का चल रहा है। उसने बीजेपी के अंदर विद्रोह कि चिंगारी सुलगा दी रखी है। चूकि भाजपा का दिल्ली हाई कमान पूरी तरह सिंधिया पर भरोसा जताकर मध्यप्रदेश कि मुख्य लीडरशीप को ताक पर रखे है। साथ ही मध्यप्रदेश में 25 विधानसभा के उपचुनाव पर बीजेपी सत्ता का भविष्य निर्धारित है। इस चक्रव्यूह सियासत में उमा भारती ओर सिंधिया कि मुलाक़ात का आम नहीं खास बना देता है। ऐसे समय जब उमा भारती ने मध्यप्रदेश में घुसपैठ कर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। जिसका नतीजा कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न लोधी का दो रोज पहले 12 जुलाई को बीजेपी कि सदस्यता लेने से सामने आया है। उमा भारती के आशीर्वाद से ही यह दल बदल हो सका। यहाँ तक कि प्रद्युम्न लोधी को निगम का अध्यक्ष भी बना दिया गया है।
इन हालतो में उमा भारती एक बार फिर बीजेपी के लिये संकटमोचक साबित हो सकती है। महत्वपूर्ण है कि उपचुनाव कि 25 सीटे वह है जहाँ उमा भारती का जातिगत समीकरण फिट बैठता है। यानि लोधी बाहुल्य सीटों पर उमा भारती अचूक अस्त्र साबित हो सकती है। मुलाक़ात बाद उमा भारती का यह कहना कि नाम के अनुरूप ज्योतिरादित्य का प्रकाश मध्यप्रदेश ओर पूरे देश में फैलेगा। यह शब्द मध्यप्रदेश कि राजनीती में सुगबुगाहट जैसे है। जो बीजेपी नेताओं के क्षत्रपों के हाथ पैर फूलाने जैसे है।
सिंधिया ने भी उमाभारती से पारिवारिक रिश्तो का जिक्र कर नये समीकरणों के संकेत दिये है। क्या यह माना जाये कि मध्यप्रदेश कि सियासत जमीन कुछ नया इतिहास रचने कि ओर बढ़ रही है यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगा।