प्रियंका गांधी वाड्रा के कांग्रेस महासचिव बनाए जाने और लखनऊ में रोड शो के बाद उत्तर प्रदेश का राजनीतिक समीकरण बदलने लगा है. कांग्रेस से दूरी बनाने वाली समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की तरफ से अब कांग्रेस को लेकर कुछ ऐसी बातें कही जाने लगी हैं जिनमें कांग्रस के साथ नजदीकी दिखाने के संकेत मिल रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी कांग्रेस से गठबंधन के पक्ष में है वहीं बीएसपी प्रियंका की यूपी में एंट्री के बाद राजनीतिक हालात पर पैनी नजर बनाए हुए है. यूपी में त्रिकोणीय संघर्ष होगा या फिर बीजेपी विरोध की राजनीति के आधार पर कांग्रेस भी एसपी और बीएसपी गठबंधन का हिस्सा होगी इस पर मंथन चल रहा है.
कांग्रेस पूरे दमखम से यूपी में उतर आई है और उसे 25 के आसपास सीट दी जाती हैं तो सम्मानजनक माना जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो आगामी लोकसभा में बीजेपी विरोधी राजनीति के नेता के तौर पर राहुल गांधी उभर कर सामने आ सकते हैं.
बीजेपी विरोधी राजनीति का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ!
सवाल बड़े प्रदेश और वहां के राजनीतिक दल की हैसियत का है. अखिलेश और मायावती उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को गठबंधन में सम्मानजनक तरीके से शामिल करते हैं तो 80 लोकसभा सीटों वाले प्रदेश के दो बड़े दल कांग्रेस के साथ होंगे वहीं दूसरे बड़े प्रदेश बिहार में आरजेडी राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के विरोध में नहीं है. ध्यान रहे बिहार में 40 लोकसभा सीट हैं.
वहीं महाराष्ट्र जो कि 48 लोकसभा सीटों वाला प्रदेश है वहां एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन तय है. जाहिर है मायावती, अखिलेश यादव, शरद पवार,चंद्रबाबू नायडू अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी विरोधी राजनीति का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ ही होगा.
बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं और वहां कांग्रेस और सीपीएम का गठबंधन होना तय है. ऐसे में सीपीएम और कांग्रेस साथ दिखाई पड़ रहे हैं. इस हालत में ममता और तेलंगाना के केसीआर और ओडिशा के नवीन पटनायक की एंटी बीजेपी और एंटी कांग्रेस गठबंधन की सोच धरातल पर असरदार साबित नहीं हो पाएगी.
जाहिर है यूपी में अखिलेश यादव और मायावती औपचारिक तौर पर कांग्रेस के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं तो इस कदम को कांग्रेस नेतृत्व को स्वीकार करने में परेशानी नहीं होगी.
महागठबंधन की परिकल्पना होगी साकार ?
बीजेपी विरोधी ज्यादातर पार्टियों के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ये मैसेज देने में कामयाब हो सकेगी कि महागठबंधन की उसकी कल्पना लगभग साकार हो चुकी है. जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ समझौता और तमिलनाडु में डीएमके,आंध्र प्रदेश में टीडीपी, बिहार में आरजेडी, यूपी में एसपी और बीएसपी, पश्चिम बंगाल में सीपीएम, झारखंड में जेवीएम और जेएमएम,और महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ गंठबंधन कर पाने की सूरत में कांग्रेस के महागठबंधन बनाने की कल्पना मूर्त रूप ले लेगी. ऐसे में ओडिशा के बीजेडी, पश्चिम बंगाल की टीएमसी और तेलंगाना के केसीआर पर भी जरूरत पड़ने पर कांग्रेस के खेमे में शामिल होने का दबाव होगा.
तीसरी मोर्चे की संभावनाओं पर लगेगा विराम!
कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है और उसकी मौजूदगी देश के तमाम राज्यों में है. ऐसे में ममता, केसीआर और नवीन पटनायक की ये सोच कि तीसरा मोर्चा तैयार हो जिसका नेतृत्व कांग्रेस और बीजेपी दोनों के हाथ से बाहर हो धरातल पर नहीं उतर सकता है. ममता पिछले दिनों कोलकाता में 22 पार्टियों का समर्थन हासिल कर ये मैसेज देने में कामयाब रही थी कि आने वाले समय में बीजेपी विरोधी राजनीति की केंद्र बिंदु वो हो सकती हैं. लेकिन प्रियंका गांधी की एंट्री और एसपी बीएसपी के इसको लेकर बदलते स्टैंड से ये साफ होने लगा है कि कांग्रेस की स्वीकार्यता बीजेपी विरोधी मुख्य दलों में बढ़ने वाली है.
ऐसे में बीजेपी अगर 2014 के प्रदर्शन से चूकती है और कांग्रेस का प्रदर्शन बिहार और यूपी सहित अन्य गठबंधन वाले प्रदेश में बेहतर होता है तो कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करना बीजेपी विरोधी पार्टियों की मजबूरी होगी. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद राहुल गांधी का तेवर पूरी तरह बदला हुआ दिखाई पड़ने लगा है. हाल के दिनों में राहुल का आत्मविश्वास बढ़ा है और यूपी में प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रोड शो के बाद हतोत्साहित कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में नई जान आई है ।
ऐसे में कांग्रेस की तरफ से प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुआई में पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतरने की योजना है. जाहिर है बीजेपी विरोधी वोटों का बंटवारा कैसे रुके इसकी चिंता मायावती और अखिलेश यादव को हो रही है. इसलिए एसपी- बीएसपी गठबंधन में कांग्रेस को लाने की कोशिश शुरू हो गई है. अगर यह कोशिश परवान चढ़ी तो इसका साफ राजनीतिक संकेत होगा और बीजेपी विरोधी राजनीति के केंद्र में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बनकर उभरेंगे.