आईएफएस संजीव चतुर्वेदी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट ( एनुअल कॉन्फीडेंशियल रिपोर्ट ) में शून्य प्रविष्टि देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. जस्टिस आर. भानुमति और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि कैट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल) चेयरमैन की प्रशासनिक शक्तियां अन्य न्यायाधीशों से ज्यादा है लेकिन न्यायिक शक्तियां अन्य न्यायधीशों के बराबर हैं. इसलिए कैट चेयरमैन की एकलपीठ का फैसला दो न्यायधीशों के फैसले को दरकिनार नहीं कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केन्द्र सरकार पर 25 हजार रुपए की पेनाल्टी लगा दी है.
क्या था पूरा मामला ?
संजीव चतुर्वेदी अपने एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट ) में बेहद खराब रिमार्क और खराब नंबर दिए जाने को लेकर नैनिताल कैट की डिविजन बेंच के पास फरियाद लेकर पहुंचे. दरअसल संजीव का एसीआर ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में सीवीओ (मुख्य सतर्कता अधिकारी) रहने के दरमियान खराब लिखा गया था. संजीव का आरोप था कि ये उनके साथ ज्यादती की गई है क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कई मामलों का खुलासा किया था.
इस मामले में कैट चेयरमैन ने नैनिताल डिविजन के दो जजों की बेंच की सुनवाई पर रोक लगाते हुए मामले को दिल्ली ट्रांसफर करने का आदेश दे दिया था. संजीव चतुर्वेदी ने कैट चेयरमैन के आदेश को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जहां उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कैट चेयरमैन के आदेश को खारिज करते हुए कहा था कि कैट की एकलपीठ खंडपीठ के आदेश को नहीं पलट सकती है साथ ही उत्तराखंड की हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार पर 25 हजार की पेनाल्टी लगा दी थी.
उत्तराखंड हाई कोर्ट के इसी आदेश को केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत में चुनौती देते हुए कहा कि उत्तराखंड हाई कोर्ट ने उनका पक्ष जाने बगैर आदेश पारित कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अपने आदेश में उत्तराखंड हाई कोर्ट का फैसला सही है और सरकार की इस दलील को ठुकरा दिया कि सरकार के पक्ष की सुनवाई उत्तराखंड हाई कोर्ट में नहीं हुई थी.
कौन हैं संजीव चतुर्वेदी ?
संजीव चतुर्वेदी 2002 बैच के आईएफएस ऑफिसर हैं जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं. संजीव हरियाणा कैडर के ऑफिसर हैं जिन्होंने वहां रहते हुए हरियाणा फॉरेस्ट्री स्कैम को उजागर किया था और उन्हें तत्कालीन मुख्य मंत्री भुपेन्द्र सिंह हुडा के गुस्से का शिकार होना पड़ा था.
संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ कई केस किए गए थे और मामले को मीडिया में तूल पकड़ता देख तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को इसमें दखल देना पड़ा था. संजीव साल 2010 में सेंट्र्ल डैप्यूटेशन पर दिल्ली आए और साल 2012 में उन्हें ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट में डिप्टी सेक्रेट्री और मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर तैनात किया. इस दौरान भी ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट में कई मामलों में उनका नाम मीडिया की सुर्खियों में रहा.
संजीव रमन मैग्सैसे एवार्ड विनर हैं और उन्हें यह अवार्ड साल साल 2015 में अदम्य साहस,वीरता और ईमानदार अधिकारी के तौर पर काम करने के लिए दिया गया. साल 2011 में संजीव को एस आर जिंदल प्राइज और साल 2009 में मंजूनाथ शनमुगम इंटीग्रिटी एवार्ड से भी नवाजा गया. फिलहाल संजीव चतुर्वेदी उत्तराखंड सरकार में कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च विंग मे तैनात हैं.