ललितपुर. जिला मुख्यालय शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर विंध्याचल पर्वत श्रेणी पर स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर बहुत ही अद्भुत एवं अद्वतीय है। दूर-दूर से भगवान भोले के भक्त गण यहां
पर दर्शन करने के लिए आते हैं। ऐसा बताया जाता है कि यह मंदिर बहुत ही चमत्कारिक है। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में जो नंदी मंदिर के बाहर विराजमान हैं, उनके कान में अपनी मनोकामना कह देने मात्र से ही वह पूरी हो जाती है।
मंदिर के पुजारी लक्ष्मण दास जी महाराज बताते हैं। कस्बा पाली स्थित भूत भगवान नीलकंठेश्वर मंदिर जिले के प्रमुख शिव मंदिरों में से अपना विशेष स्थान रखता है। करीब 13 सौ साल पुराना
चंदेल कालीन राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यूं तो साल भर यहां पर धार्मिक कार्यक्रमों की धूम बनी रहती है, लेकिन शिवरात्रि पर यहां आस्था का
सैलाब उमड़ पड़ता है। यह मंदिर अपनी कोख में हजारों साल पुरानी संस्कृति और सभ्यता को छुपाए हुई है।
कस्बा पाली आसपास का क्षेत्र पुरातत्व पर्यटन स्थलों की खान माना जाता रहा है। सीढ़ियों को चढ़कर इस मंदिर तक पहुंचा जाता है। सीढ़ियों के दोनों ओर झरना भी बहता है।हालांकि यह विहंगम दृश्य बरसात के मौसम में ही देखने को मिलता है।
यह हुआ था चमत्कारः.मुगल शासन काल में जब औरंगजेब मंदिरों को तोड़ने का काम कर रहा था, औरंगजेब की सेना इस मंदिर को भी तोड़ने के लिए एवं भगवान की मूर्ति खंडित करने के लिए आई थी। औरंगजेबके सैनिक ने नीलकंठेश्वर की प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार से प्रहार कर दिया था।इससे प्रतिमा को चोट लगने वाले स्थान से दूध की धारा बह निकली थी। यह चमत्कार देख
मुगल सेना भोलेनाथ को मन ही मन प्रणाम कर वहां से चली गई थी।
झरने का पानी बना देता है निरोगी
यहां के स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस मंदिर के नीचे जो झरना साल भर रहता है। चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात। झरने का पानी कभी नहीं सूखता। यह पानी कहां से आता है? इस बात
की भी जानकारी किसी को नहीं है। लेकिन इस पानी में इतना चमत्कार है कि जो भी इस पानी को लगातार सेवन करता है उसकी काया हमेशा निरोगी बनी रहती है उसे कोई रोग शोक
बीमारी नहीं घेर सकती। पहाड़ों की कंदराओं से बहने वाला अद्वितीय औषधीय गुणों से युक्ततः
इसका पानी यहां आने वाले लोगों को लोगों की सारी थकान हर लेता है।