छत्तीसगढ़ के धमतरी में वनदेवी के नाम से महशूर डोंगरी वाली लोल्लर दाई की महिमा अपरंपार है….बीहड जंगल के बीचोबीच विराजित अनादिकाल से माँ लोल्लर दाई की जात्रा का कार्यक्रम पिछले 25 सालों आयोजित की जा रही है….जिसमे स्थानीय 12 गाँव की देवी देवता पहुँचते है….चैत्र नवरात्र के दसमी पर्व पर मनाई जाने वालों जात्रा में आसपास के अलावा दूसरे जिलों से भी लोग पहुँचते है….और माता की पूजा कर आशीर्वाद माँगते है…..पूर्वज बताते है कि माँ लोल्लर दाई भगवान शिव के अंश से अवतरित हुए है…सिहावा पर्वत से लोढा के सामान लुढ़कते हुए महानदी के साथ चल रहे थे….तभी सप्तर्षि के कहने पर माँ लोल्लर बरारी के बीहड जंगल मे विराजित हो गई है….माता के विराजमान होने के बाद स्थानीय लोगो ने पूजा कर माता का आशीर्वाद ले रहे है…..जिसकी ख्याति अब दूर दूर तक फैल गई है…..।
दरअसल अनादिकाल से विराजित वनदेवी डोंगरी वाली श्री लोल्लर दाई की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है…..धमतरी से 15 किमी दूर बरारी के बीहड़ जंगल के बीचोबीच विराजित माँ लोल्लर दाई की महिमा अपरंपार है….यहाँ चैत्र और कुंवर नवरात्र में आस्था के ज्योत जलाए जाते है….दोनो नवरात्र के मौके पर मेले मड़ई का आयोजन किया जाता है जिसे देखने दूर दूर से लोग पहुँचते है…और माता का आशीर्वाद लेते है…मंदिर ट्रस्ट से जुड़े समिति के लोग बताते है कि….माँ लोल्लर दाई भगवान शिव के अंश से अवतरित हुए है….जो सिहावा पर्वत से लोढा के सामान लुढ़कते हुए महानदी के साथ चल रहे थे…..समुद्र में विलीन होने जा रही थी….तभी सप्तऋषियो के निवेदन किया कि….माता आप बरारी के जंगल मे विराजित हो जाइये यहाँ पर आपकी पूजा पाठ होगी….
आपकी सम्मान इस जंगल मे होगी…एक दिन ये जगह स्वर्ग बनेगी…सप्तऋषि के कहने पर माता विराजित हो गई…और इस क्षेत्र के लोग माता की पूजा पाठ कर आशीर्वाद ले रहे हैं…बताते है कि चैत्र और कुंवर नवरात्र में भक्त मनोकामना ज्योत जलाते है….जहाँ पर उनकी मनोकामना पूरी होती है….माता की महिमा के बारे मंदिर के सचिव बताते है कि…..कोई जानवर जंगल मे चलते वक्त रास्ता भुल जाते है…तो माता उसे घर पहुँचा देते है…बरारी और उसके आसपास यदि पानी आकाल की छाया रहती है तो यहाँ के ग्रामीण सियानो के दूवारा माता का पूजा पाठ कर अपनी समस्या माता के पास रखने के बाद ग्रामीणों घर के चौखट पर चढ़ते माता अपनी कृपा बरसा देती है….माता की स्थापना 1998 में हुई है….लेकिन पूर्व से ही माता अनादिकाल से विराजित है..प्रजलित नही होने कारण सिर्फ स्थानीय लोग ही माता का आशीर्वाद लेते थे….अब माता की ख्याति दूर दूर तक फैल गई है….लोग माता का दर्शन करने के लिए इस जंगल मे आ रहे है…पहले लोल्लर दाई माता का दर्शन सिर्फ पुरुष लोग ही करते थे…महिलाओं को आने पर पाबंदी थी….लेकिन मंदिर ट्रस्ट समिति बनने के बाद ग्रामीणों ने बैठक कर माता का दर्शन करने के लिए महिला और बच्चे भी पूजा पाठ कर आशीर्वाद ले रहे है….।
माँ लोल्लर दाई की महिमा यही तक नही रुकी चैत्र नवरात्र में यहाँ पर जात्रा का कार्यक्रम बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है…जिसमे स्थानीय 12 गाँव के देवी देवता पहुँचते है…जात्रा का उद्देश्य ये है कि…वनोपज से मिलने वाली फल फूल जैसे….65 प्रकार की वनोपज चार,चिरोंजी,आम,तेंदू समेत अन्य फल को पहले देवी देवता में चढ़ाने के बाद उसको यहाँ के लोग खाते है…और यही से वनोपज को खाने की शुरुआत इस क्षेत्र में रहने वाले लोग शुरू करते हैं…और जात्रा को देखने बड़ी दूर दराज से लोग इस बीहड़ जंगल मे पहुँचते है और मेल मड़ई का भरपूर आनंद लेते है….माता लोल्लर दाई सभी की मनोकामना पूरी करती है….।बाईट……तेजेन्द्र कुंजाम…..स्थानीय निवासी….गमछा लगाया हुआ…. जे एस यादव……पूर्व सरपँच पति बरारी गाँव धमतरी…..पिंक टीशर्ट में……वीओ….बहरहाल माता लोल्लर दाई की दर्शन के लिए लोग बड़ी आस्था और विश्वास के साथ यहाँ पहुँचते है…नवरात्र पर्व के दसमी में 25 सालों से आयोजित हो रही जात्रा में शामिल होने के लिए लोगो की भीड़ इस बीहड़ जंगल मे जुटती है….और माता का आशीर्वाद लेते है।