Saturday, December 21, 2024
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व्यापमं महाघोटाले का जिन्न फिर जागा…….सुप्रीम कोर्ट के पारित निर्देशों के पालन में सरकार ने 45 परिवहन आरक्षकों की नियुक्ति 12 सालों बाद की निरस्त

भोपाल/इंदौर-25 सित.24

व्यापमं महाघोटाला उजागर करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और प्रदेश कांग्रेस जीतू पटवारी के मीडिया सलाहकार के.के.मिश्रा ने व्यापमं के माध्यम से हुई “परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012” में हुई अनियमितता से संदर्भित एक विशेष अनुमति याचिका क्र.29239/2014 को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश दिनांक 29.8.23 और 20.4.24 के परिपालन में प्रदेश सरकार द्वारा अपने जारी आदेश के पत्र क्रमांक-1391 दिनांक 13.9.24 (संलग्न) के माध्यम से 12 सालों बाद अवैध तरीक़े से की गई 45 नियुक्तियों को निरस्त किए जाने का बड़ा खुलासा करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री, वर्तमान केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराजसिंह चौहान और तत्कालीन परिवहन मंत्री,मौजूदा उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा से नैतिकता के नाते त्यागपत्र दिये जाने की मांग की है।

इस परीक्षा में हुई……

अनियमितता,भ्रष्टाचार,घपले,घोटाले की विस्तृत जानकारी देते हुए मिश्रा ने बताया कि शिवराज-सरकार के दौरान विभिन्न श्रेणी के पदों हेतु भर्ती एवम् व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश के लिए कुल 168 परीक्षाएं आयोजित की गईं,जिसमें 1 लाख 47 हज़ार परीक्षार्थियों ने हिस्सा लिया था।शासकीय विभागों-उपक्रमों के अलावा लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं इसमें शामिल नहीं थी।इन विभिन्न परीक्षाओं में हुए प्रामाणिक भ्रष्टाचार,घपलों, घोटालों को कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता ने रूप में मैंने 21 जून,2014 को उजागर किया था,इसमें “परिवहन आरक्षक परीक्षा भर्ती घोटाला” भी शामिल था।।।।

उक्त परीक्षा में सरकार ने मई,2012 को व्यापमं के माध्यम से 198 परिवहन आरक्षकों की भर्ती की अधिसूचना समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाई थी, कांग्रेस का आरोप था कि इसमें बिना किसी सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति बग़ैर स्वीकृत 198 आरक्षकों की भर्ती के विरुद्ध 332 आरक्षकों का चयन कर लिया गया,आरक्षण व महिला आरक्षकों के आरक्षण का पालन न करते हुए तत्कालीन परिवहन मंत्रालय ने तो बाक़ायदा चयनित परिवहन आरक्षकों को उनके फ़िज़िकल टेस्ट भी न कराए जाने बाबत एक सरकारी पत्र भी जारी किया ? जबकि नियमानुसार पुलिस भर्ती सेवाओं में ऐसे टेस्ट अनिवार्य हैं,यहां तक कि चयनित अभ्यर्थियों की मेरिट सूची तक परिवहन विभाग ने सार्वजनिक क्यों नहीं की,ऐसा क्यों हुआ…..?

पूर्व केंद्रीय मंत्री,तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव व पार्टी के मुख्य प्रवक्ता के रूप में के.के.मिश्रा ने व्यापमं महाघोटाले की सच्चाई सार्वजनिक होने तक विभिन्न जांच एजेंसियों एसटीएफ़,एसआईटी और सीबीआई को अपने आरोपों से संदर्भित सभी दस्तावेज भी सौंपे थे।….…

कांग्रेस के इन प्रामाणिक-गंभीर आरोपों से तिलमिलाई सरकार की ओर से परिवहन मंत्री भूपेन्द्रसिंह ने 23 जून,2014 को ली गई पत्रकार-वार्ता में कांग्रेस के आरोपों को मिथ्या बताते हुए 316 परिवहन आरक्षकों की एक अहस्ताक्षरित सूची जारी की, उन्होंने मीडिया से यह भी कहा कि इस परीक्षा सहित सभी परीक्षाओं में चयन पारदर्शी तरीक़े से हुआ है।कांग्रेस के काफ़ी दबाव के बाद अंततः भोपाल के एसटीएफ़ थाने में 39 आरोपितों के ख़िलाफ़ अपराध क्रमांक 18/14 दिनांक 14.10.14 को विभिन्न धाराओं-420,467,468,471(क),120 -B, 3(1-2)4,आईटी एक्ट65-66,भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-13(1) (डी)/13(2) FIR दर्ज की गई। जांच में कई खुलासे सामने आए,कई अभ्यर्थियों के अस्थाई पते तक ग़लत पाए गये…!

मिश्रा ने कहा कि अनियमितता/ भ्रष्टाचार के माध्यम से चयनित अभ्यर्थियों को 2013 में तत्कालीन परिवहन आयुक्त संजय चौधरी (IPS) के हस्ताक्षरित आदेश से नियुक्तियां दी गई, मामला प्रकाश में आने के बाद भयभीत 17 अभ्यर्थियों ने नियुक्ति आदेश प्राप्त हो जाने के बावजूद भी विभाग को अपनी ज्वाइनिंग ही नहीं दी और अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 45 कार्यरत आरक्षकों की सरकार को नियुक्ति रद्द करने के आदेश देना पड़े !! देश की शीर्ष अदालत के निर्देश के बाद राज्य सरकार का उक्त आदेश इस परीक्षा के परिणामों / नियुक्तियों में हुए भ्रष्टाचार,अनियमितता,घपलों,घोटालों की स्वीकार्यता को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य है*!

♦️*यादव-मिश्रा ने कहा कि व्यापमं महाघोटाले और उसमें शामिल परिवहन आरक्षक परीक्षा में तत्कालीन शिवराजसिंह सरकार के ख़िलाफ़ हमारे द्वारा लगाये गये प्रामाणिक आरोप अब सही साबित हो गये हैं, इससे खिन्न होकर सरकार के द्वारा मेरे (मिश्रा के) विरुद्ध दायर मानहानि प्रकरण में ज़िला न्यायालय,भोपाल से 2 वर्षों की सजा व अर्थदंड करवाया था, हालांकि मैं सर्वोच्च न्यायालय से ससम्मान बरी हुआ,

वहीं तत्कालीन परिवहन मंत्री के ओएसडी की भी इसमें संलिप्तता पाई गई थी! लिहाज़ा,ये दोनों ही नैतिकता के नाते अपना त्यागपत्र दें। त्यागपत्र न देने की स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव इन्हें अपने पदों से बर्खास्त करें ताकि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ संघर्ष और जीरो टॉलरेंस को लेकर उनकी वास्तविक हक़ीक़त सामने आ सके। वहीं तत्कालीन मंत्री भूपेन्द्रसिंह जिन्होंने इस भ्रष्टाचार को छुपाते हुए मीडिया को ग़लत जानकारी परोसी, वे भी सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगे*।*

के.के.मिश्रा, मीडिया सलाहकार,अध्यक्ष -मप्र कांग्रेस कमेटी*

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